(राजेश बैरागी)
(गौतम बुद्ध नगर)
जनपद गौतमबुद्धनगर में डेढ़ महीना पहले ज्वार की भांति उठा किसान आंदोलन अब किस दिशा में जा रहा है? क्या एक दर्जन से अधिक ज्ञात अज्ञात संगठनों को मिलाकर बना संयुक्त किसान मोर्चा नामक संगठन भाकियू नेता राकेश टिकैत और जिले में किसान आंदोलन को इस सतह तक लाए डॉ रूपेश वर्मा के बीच वर्चस्व का शिकार हो गया है? इससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि क्या राकेश टिकैत अपने घरेलू क्षेत्र को छोड़कर अब नोएडा ग्रेटर नोएडा और विशेष रूप से यमुना एक्सप्रेस-वे क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं?
यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जनपद गौतमबुद्धनगर के किसानों के हितों की लड़ाई लड़ने का दावा कर रहे किसान नेताओं में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई है।ये नेता न केवल अलग अलग अधिकारियों से मिलकर अपनी बढ़त बनाने का प्रयास कर रहे हैं बल्कि एक दूसरे से सावधान रहने की एडवाइजरी भी जारी कर रहे हैं।आज बुधवार को नोएडा में ज्ञात अज्ञात चौदह किसान संगठनों ने बतौर संयुक्त किसान मोर्चा एक प्रेस वार्ता में किसानों से संबंधित मुद्दों पर फिर एक बार आंदोलन करने की हुंकार भरी।
यह वही संयुक्त किसान मोर्चा है जिसके बैनर तले गत 25 नवंबर को ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर धरने से शुरू हुए आंदोलन का अंत नोएडा में दलित प्रेरणा स्थल से लगभग डेढ़ सौ किसानों की गिरफ्तारी से हुआ था। गिरफ्तार होने वाले नेताओं में डॉ रूपेश वर्मा, सुखबीर खलीफा व पवन खटाना भी थे। इनमें से डॉ रूपेश वर्मा व सुखबीर खलीफा सबसे आखिर में लगभग एक महीने बाद जेल से रिहा हुए थे। जेल से रिहा होने के बाद रूपेश वर्मा ने एक साक्षात्कार में इस पोस्ट के लेखक से संयुक्त किसान मोर्चा बनने और मोर्चा के अन्य नेताओं द्वारा ठगे जाने का आरोप लगाया था। उन्होंने भाकियू नेता राकेश टिकैत और उनके स्थानीय पदाधिकारियों पर गद्दार होने तथा प्रशासन का दलाल होने का आरोप भी लगाया था। उन्होंने गत छः जनवरी को लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर किसान आंदोलन में फिर बढ़त बना ली थी।आज की प्रेस वार्ता में रूपेश वर्मा और सुखबीर खलीफा सरीखे नेता नहीं थे। प्रेस वार्ता कर रहे पवन खटाना और सुनील फौजी ने किसानों से किसी के बहकावे में न आने की एडवाइजरी भी जारी की।उनका संकेत रूपेश वर्मा आदि नेताओं की ओर था। उन्होंने लैंड पूलिंग पॉलिसी को भी सिरे से खारिज किया जबकि मुख्यमंत्री के साथ वार्ता में रूपेश वर्मा आदि नेताओं ने लैंड पूलिंग पॉलिसी पर सहमति जताई थी।
दरअसल किसानों की एक जैसी समस्याओं के लिए अलग-अलग और कभी संयुक्त किसान मोर्चा बनाकर लड़ने का दावा करने वाले सभी किसान नेताओं की असल लड़ाई अब अपने अस्तित्व को बरकरार रखने में बदलती जा रही है। सभी का प्रयास स्थानीय और शासन स्तरीय अधिकारियों व नेताओं से मुलाकात कर स्वयं को किसानों का बड़ा हितैषी साबित करने का है। इस वर्चस्व की जंग से किसान नेताओं को लाभ होगा, प्रशासन को भी लाभ हो सकता है और किसानों को?
उनका नंबर तो बाद में आएगा।