(मुकेश शर्मा)
(ग्वालियर)
अमर क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के परिवार की 26 बीघा कृष्ण जमीन को दबंगो ने वर्षों से है कब्जाई,इस बार भी काट ली फसलें
कलेक्टर,एसडीएम के यहां सैकड़ों बार चक्कर लगाने के बाद भी नही हो रही कोई सुनवाई बताया शहीद के परिजन जितेन्द्र सिंह तोमर ने
मेरे पास बिस्मिल परिवार की कृषि भूमि पर अतिक्रमण की कोई शिकायत नही आई कहा एसडीएम ने
16 फरबरी 2024 की सुबह ग्वालियर से तैयार होकर हमारी टीम आखिरकार दोपहर भर यात्रा करके क्रांतिवीर रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ के पैतृक गाँव ‘बरबाई’ पहुंच गई। परिवार का दर्द सुनने के बाद दिल दिमाग झनझनाते हुए कह उठा कि कैसे कहें शहीद मेव जयते?
देश के लिए कुर्बान हुए क्रांतिवीर रामप्रसाद बिस्मिल के परिवार को सरकार ने सन् 1947 पट्टा दिया था 37 बीघा का जिसमें से 26 बीघा जमीन आज भी है दबंगों के कब्ज़े में है। दरअसल यह परिवार शहीद बिस्मिल के पिता श्री मुरलीधर के बड़े भाई का है। 8-9 साल से खेती की यह जमीन पर दबंगों ने कब्जा कर रखा है। इसके लिए बिजेंद्र सिंह तोमर दर दर भटक रहे हैं। स्थानीय सरकार और अधिकारियों से कई बार इसकी गुहार लगा चुके हैं। लेकिन उनकी फरियाद यहां सुनने वाला कोई नही है। 65वर्षीय विजेंद्र सिंह तोमर को इसलिए अपने तीनो बच्चों को न पढ़ा पाने का मलाल भी है, बड़ा बेटा अनिल दिल्ली में मजदूरी कर रहा है। वे रुखे गले से बताते हैं कि चार साल से फसल नसीब नहीं हुई है। इस बार मुवाअजा मिला है लेकिन राशन कार्ड अभी बना है। इसलिए राशन मिल रहा है उसी से गुजारा हो रहा है। मकान आज तक नहीं बन पाया है। जानवर के नाम पर मात्र एक भैंस दरवाजे पर बंधी है। थोड़ी बहुत जो पुश्तैनी जमीन है उसे दूसरे के कुंए से पानी निकाल कर खेत का पेट भरना पड़ता है।
आज भी मुफलिसी के आलम में बिस्मिल का यह पुश्तैनी परिवार कच्चे मकान में रहने को अभिशप्त है। न तो प्रशासन उनकी जमीन को छुड़वा पा रहा है और न ही सरकार कोई सुध ले रही है। शहीद का नाम लेने वाले न ही यहां के सियासतदां। मुरैना जिले की अंबाह तहसील का बरबाई गांव क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल का पैतृक गांव है। बिस्मिल अविवाहित थे, लेकिन उनके खानदानी छोटे भाई भीकम सिंह और बड़े भाई कोक सिंह के पुत्र आज भी बरबाई में अपने कच्चे पुश्तैनी मकान में रह रहे हैं। मैनपुरी षड्यंत्र केस में जब रामप्रसाद बिस्मिल पर वारंट जारी हुआ तो वे सुरक्षित ठिकाने तलाश में चंबल घाटी की गोद में खिंचे चले आए। इस दौरान उन्होने बरबाई में 3 महीने 11 दिन रहकर खेती किसानी में अपने आप को संलग्न कर लिया था। हमने भी दिन में डेरा बरबाई में जमा लिया था। सरकार और प्रशासन की बेरुखी के चलते परिजन अब प्रधनामंत्री निवास तक परिवार सहित पैदल यात्रा करने की तैयारी में है।

पहली महिला डकैत पुतली बाई के गाँव में
17 फरबरी 2024 को सोचा कि बरबाई का जायजा लिया जाय। स्थानीय लोगों ने गांव में एक गली से गुजरने पर बताया गया यह पुतली का घर है। चंबल घाटी के इतिहास में पुतलीबाई का नाम पहली महिला डकैत के रूप में दर्ज है। मुरैना के अम्बाह तहसील के बरबाई गाँव में गरीब मुस्लिम परिवार में जन्मी गौहर बानो को परिवार का पेट पालने के लिए नृत्यांगना बनना पड़ा। इस पेशे ने उसे नया नाम दिया-पुतलीबाई। शादी-ब्याह और खुशी के मौकों पर नाचने-गाने वाली खूबसूरत पुतलीबाई पर सुल्ताना डाकू की नजर पड़ी और वह उसे जबरन गिरोह के मनोरंजन के लिए नृत्य करने के लिए अपने पास बुलाने लगा। डाकू सुल्ताना का पुतलीबाई से मेल जोल बढ़ता गया लिहाजा दोनों में प्रेम हो गया। इसके बाद पुतलीबाई ने अपना घर बार छोड़ कर सुल्ताना के साथ बीहड़ों में रहने लगी। सुल्ताना के बाद पुतलाबाई गिरोह की सरदार बनी और 1950 से 1956 तक बीहड़ों में उसका जबरदस्त आतंक रहा। पुतलीबाई पहली ऐसी महिला डकैत थी, जिसने गिरोह के सरदार के रूप में सबसे ज्यादा पुलिस से मुठभेड़ हुई। छोटे कद की दुबली-पतली फुर्तीली पुतलीबाई एक हाथ से ही राइफल चलाने में महारत हासिल थी। बीहड़ में अपनी निडरता और साहस के लिए जानी जाने वाली डाकू पुतलीबाई 23 जनवरी, 1956 को शिवपुरी के जंगलों में पुलिस इनकांउटर में अपने प्रेमी कल्ला गुर्जर के साथ मारी गई।
पुतली का गाँव बरबाई का गांव आज भी उसी दौर की याद दिलाता है। कभी यहां 18-20 मुस्लिम परिवार थे जो अब गाँव छोड़ कर पलायन कर गये हैं।यहां मंदिर की जगह में यह तालाब है इस पर भी भूमाफियों की कुदृष्टि पड़ने से कब्ज़ा होते होते सिकुड़ गया है। आज तक इस तालाब का सौंदर्यीकरण नहीं हुआहै। लगता हैं सरकार के नुमाइंदों को यहां जाने की फुर्सत ही कहां है?
बिस्मिल लाइब्रेरी आबाद होने से पहले उजड़ गयी
क्रांतिवीर रामप्रसाद बिस्मिल के पैतृक गांव बरवाई में करीब पांच बीघे का शहीद पार्क बना है। जिसमें उनकी प्रतिमा भी लगी है। इस पार्क में अमर शहीद के जन्मदिवस और शहादत दिवस पर विविधि आयोजन हर साल होते हैं जिसमें शहर से भी गणमान्य लोग शामिल हेते हैं। लेकिन शहीद पार्क की दुर्दशा से सभी अनजान हैं। गौरतलब है कि शहीदी पार्क में 30 साल पहले लाइब्रेरी का भवन तामीर हुआ था। जिसकी छत अब जमीन पर गिर चुकी है। इतना ही नहीं आज तक यहाँ कोई एक किताब भी नहीं पहुंची है। जबकि इस गाँव की आबादी करीब 7000 के लगभग बताई जाती है। वैसे बिस्मिल ने अपने जीवन में 11किताबें लिखी थी। उस दौर में बिस्मिल की कुल आठ मूल पुस्तकें प्रकाशित हो पाई थी और उन्होंने आधा दर्जन बांग्ला व अंग्रेजी पुस्तकों का अनुवाद किया था। यहाँ पर किताबें आज तक न पहुंचना क्रांतिवीर के नाम पर मजाक नहीं तो और क्या है?
बरबाई में बिस्मिल पार्क की देखभाल करने वाला हार्ड तोमर वहां उपस्थित नहीं मिला। पार्क में लगे हैंडपंप की मोटर कई सालों से ख़राब है। इसलिए यहाँ पौधे की सिंचाई भी नहीं हो पा रही है। पानी के अभाव में कई पौधे सूख कर खत्म हो गए हैं। इस पार्क को एक माडल बनाया जा सकता था। अफसोस इसका कोई पुरसा हाल नहीं है।
इस बाबत जब एसडीएम अंबाह अरविन्द माहौर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मेरे पास बिस्मिल परिवार की कृषि भूमि पर अतिक्रमण की कोई शिकायत नहीं आई है,ऑफिस में आई होगी। जब पूछा कि ऑफिस के कागज आप तक नहीं आते तो ज़बाब था कि ऑफिस में आकर मिलो तब बताऊंगा।
2: पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के प्रिजन जितेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि मेरे पिताजी कई वर्षो से एस डी एम,कलैक्टर सहित सभी अधिकारियों के सैकड़ों चक्कर लगा चुके है उन सभी शिकायतों की कॉपियां मेरे पास हैं तथा सरकार द्वारा दिए गए पट्टे की कॉपी भी है।
आज तक हमारी न तो किसी अधिकारी ने सुनी और न नेता ने बस साल में दो बार हमारे परिवार को शासन प्रशासन याद करता है एक बिस्मिल जी के शहीदी दिवस और एक जन्म दिवस पर परंतु हमारी जमीन आजतक दबंगो के कब्जे से मुक्त नहीं हुई इस वर्ष भी हमारी जमीन पर खड़ी फसल दबंगों ने काटली।