लेखक-अरविंद जयतिलक
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल नाह्यान की ‘वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट’ में सहभागिता और विकास में सहयोग का संकल्प रेखांकित करता है कि दोनों देश आपसी रिश्ते को धार देने को तैयार हैं। दोनों देशों के आपसी संबंधों में घनिष्ठता, उत्साह और विश्वास का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रपति नाह्यान ने अपने एक्स पर कहा कि ‘दोनों देशों की साझेदारी में लगातार विस्तार हो रहा है।’ गौर करें तो दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्ते लगातार नई ऊंचाई छू रहे हैं और समय की कसौटी पर खरे हैं। गत वर्ष प्रधानमंत्री मोदी की संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की यात्रा के दौरान दोनों देश आर्थिक क्षेत्र में क्रांतिकारी पहल करते हुए अपनी करेंसी रुपये और दिरहम में व्यापार समझौता शुरु करने पर सहमत हुए। आरबीआई और संयुक्त अरब अमीरात के सेंट्रल बैंक के बीच संपन्न हुए समझौते के तहत दोनों बैंक एक फ्रेमवर्क तैयार करेंगे जिसमें क्राॅस-बार्डर ट्रांजैक्शन के लिए लोकल करेंसी का इस्तेमाल करेंगे। निःसंदेह इस पहल से दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा। तब प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त अरब अमीरात से प्रगाढ़ होते संबंध और शहजादे शेख से भाई जैसा मिलने वाले प्यार को निरुपित करते हुए कहा कहा था कि भारत का हर व्यक्ति आपको एक सच्चे दोस्त के रुप में देखता है। प्रधानमंवत्री मोदी और राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल नहयान के बीच इतने अधिक मधुर संबंध है कि तब प्रिंस रहे मोहम्मद बिन जायद अल नहयान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यूएई के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘आॅर्डर आॅफ जायद’ से नवाजा और उन्हें अपना भाई बताते हुए ‘अपने दूसरे घर’ आने के लिए आभार जताया था। तब राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल नहयान ने प्रधानमंत्री मोदी के सम्मान में दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा समेत दुबई फ्रेम, एडनाॅक बिल्डिंग एवं एमिरेट्स पैलेस को तिरंगे के रंग से रंग दिया था। गौर करें तो दोनों देशों के बीच बढ़ती प्रगाढ़ता कई मायने में महत्वपूर्ण है। ऐतिहासिक, राजनीतिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक व आर्थिक कारणों से अरब देश सदैव ही भारत की विदेश नीति में विशिष्ट महत्व का विषय व केंद्र बिंदू रहे हैं। यह क्षेत्र भारत के विदेश नीति के रक्षा संबंधित पहलूओं को प्रभावित करता है और इसी को ध्यान में रख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त अरब अमीरात से निर्णायक संबंध जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। यह इसलिए भी आवश्यक है कि इस क्षेत्र में नए क्षेत्रीय कुटनीतिक-आर्थिक संबंध तेजी से बनते-बिगड़ते रहे हैं। इन परिस्थितियों के बीच संयुक्त अरब अमीरात की भारत से बढ़ती प्रगाढता अति महत्वपूर्ण है। अच्छी बात है कि संयुक्त अरब अमीरात संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का समर्थन कर चुका है। दोनों देश आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में साथ मिलकर चलने का भी संकल्प ले चुके हंै। फिलहाल भारत को अरब देशों से ऐसे दीर्घकालिक एवं सुसंगत रणनीति के तहत काम करने की जरुरत है ताकि वह इस क्षेत्र की अपेक्षाएं एवं सरोकार को फलीभूत कर सके। अच्छी बात यह है कि भारत और यूएई दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण प्रतिरक्षा सहयोग बना हुआ है। अरसे से भारत अपनी संस्थाओं में संयुक्त अरब अमीरात के रक्षा कार्मिकों को विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण प्रदान करता रहा है और भारत भी संयुक्त अरब अमीरात द्वारा आयोजित रक्षा कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेता है। याद होगा गत वर्ष पहले संयुक्त अरब अमीरात के प्रदर्शनी निगम द्वारा आयोजित किए गए सर्व अंतर्राष्ट्रीय प्रतिरक्षा प्रदर्शनी में भारत ने शिरकत की थी। इसी तरह फरवरी 2007 में बंगलौर में आयोजित किए गए ‘एयरो इंडिया शो’ में भाग लेने के लिए संयुक्त अरब अमीरात ने भी अपने अधिकारियों को भेजा था। जून 2003 में द्विपक्षीय प्रतिरक्षा आदान-प्रदान के लिए संयुक्त प्रतिरक्षा सहयोग समिति यानी ज्वाइंट डिफेंस को-आॅपरेशन कमेटी के गठन के लिए एक मसौदे पर हस्ताक्षर भी किए गए। भारतीय नौसेना के पोतों ने संयुक्त अरब अमीरात की अनके सदभावना यात्राएं की। मौजूदा समय में भी तटरक्षक स्तर पर भी दोनों के बीच सहयोग बना हुआ है। ज्वाइंट डिफेंस को-आॅपरेशन कमेटी के प्रावधानों के अनुसार मार्च 2007 में आयोजित हुई इसकी पहली बैठक में संयुक्त अरब अमीरात की पांच सदस्यीय प्रतिरक्षा टीम एंटी एयरक्राॅफ्ट गन एल-70 के जांच के लिए भारत आयी। इससे साफ संकेत मिला कि संयुक्त अरब अमीरात की भारतीय प्रतिरक्षा हार्डवेयर के प्रति अभिरुचि है। यह भारत के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि है। वर्ष 2008 में बतौर विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा की और उसी वर्ष संयुक्त अरब अमीरात के विदेशी व्यापार मंत्री शेख लुबना अल कासिमी ने भी भारत की यात्रा की। फिक्की ने उन्हें वर्ष की सर्वश्रेष्ठ सफल महिला के खिताब से नवाजकर दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक पहलुओं को मजबूती दी। दोनों देशों ने एकदूसरे के हितों को ध्यान में रख ढेरों समझौते किए जो अब फलदायी साबित हो रहे हैं। उदाहरण के लिए दोनों देशों ने प्रत्यपर्ण संधि, आपराधिक एवं सिविल मामलों में आपसी विधिक सहायता संधि, सिविल एवं वाणिज्यिक मामलों में सहयोग के लिए विधिक एवं न्यायिक समझौता किया जो सन 2000 से ही लागू है। इस संधि के तहत दोनों देश अपराधियों के हस्तांतरण के अलावा आपसी विधिक सहायता को मूर्त रुप दे सकते हैं। चूंकि यह क्षेत्र नशीली दवाओं का अड्डा बनता जा रहा है इसलिए दोनों देशों ने नशीली दवाओं और मस्तिष्क पर खतरनाक असर डालने वाले तत्वों की तस्करी रोकने के लिए 1994 में समझौता किया। इसी तरह 1975 में सांस्कृतिक समझौता और 1989 में नागरिक उड्डयन समझौता हुआ। सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए सन 2000 में अमीरात न्यूज एजेंसी तथा प्रेस ट्रस्ट आॅफ इंडिया के बीच समझौता हुआ। सेबी और अमीरात प्रतिभूति एवं पण्य प्राधिकरण के बीच भी समझौता हुआ। साथ ही प्रत्यायन गतिविधियों में तकनीकी सहयोग के लिए ईएसएमए तथा नेशनल एक्रिडेशन बोर्ड फाॅर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लेबोरेटरीज के बीच समझौते हुए। दूरदर्शन के ब्राॅडकास्टिंग काॅरपोरेशन महानिदेशालय अर्थात प्रसार भारती तथा अमीरात केबल टीवी मल्टीमीडिया एलएलसी के बीच चैनल प्रबंधन समझौते को सन् 2000 में आकार दिया गया। इस समझौते के अनुसार दूरदर्शन संयुक्त अरब अमीरात में डाउन लिंकिंग तथा वितरण कर सकता है। दोनों देशों के बीच दिसंबर 2006 में मैन पाॅवर सोर्सिंग इनकाॅरपोरेशन के एक मसौदे पर भी समझौता हुआ। इतिहास पर दृष्टि डालें तो इस क्षेत्र से भारत का सामाजिक व व्यापारिक संबंध शताब्दियों का रहा है। इतिहास से जानकारी मिलती है कि भारत से मसाले व कपड़े अमीरात क्षेत्र को और अमीरात क्षेत्र से मोती व खजूर भारत को भेजे जाते रहे हैं। चूंकि पश्चिमी तट विशेष रुप से मालाबार तट में भारत के व्यापारिक अड्डे शारजाह एवं दुबई हैं, इस नाते भी दोनों क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक व व्यापारिक संबंधों में मिठास बनी हुई है। उसी का नतीजा है कि आज संयुक्त अरब अमीरात में तकरीबन पैंतीस लाख से अधिक भारतीय कामगार हैं जो न सिर्फ रोजी-रोटी कमा रहे हैं बल्कि अपनी गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा भारत भेजकर भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती दे रहे हैं। संयुक्त अरब अमीरात से ही 15 अरब डाॅलर भारत आता है। गौर करें तो अरब देशों में संयुक्त अरब अमीरात एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक एवं व्यवसायिक हब है तथा साथ ही सिंगापुर एवं हांगकांग के बाद विश्व में तीसरा प्रमुख पुनर्निर्यातक केंद्र भी। यही वजह है कि यह इराक, ईरान, सीआइएस देशों तथा अफ्रीका आदि बाजारांे के लिए स्रोत केंद्र बना हुआ है। भारत संयुक्त अरब अमीरात का दूसरा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है वहीं संयुक्त अरब अमीरात भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है। साथ ही वह कच्चे तेल का तीसरा और एलएनजी-एलपीजी का दूसरा सबसे बड़़ा स्रोत है। मौजूदा समय में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 84 अरब डाॅलर है। माना जा रहा है कि दोनों देशों के आर्थिक व कुटनीतिक संबंधों में और भी मजबूती आएगी और व्यापारिक साझेदारी को नया आयाम मिलेगा।

(लेखक राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषक हैं)