लेखक-सुभाषचंद्र
यह सब कुछ कोरोना काल में भी हुआ जब अलग अलग अदालतें वैश्विक संकट के समय केंद्र सरकार पर लट्ठ बजाती रहीं और कुछ जज अपशब्द तक बोलते रहे।
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस वीपी सांघी ने तो यहां कह दिया था कि “चोरी करो, भीख मांगो या उधार लो मगर दिल्ली को ऑक्सीजन दो”। उधर सुप्रीम कोर्ट भी 24 – 24 घंटे में हर याचिका पर जवाब मांग रहा था ऐसा लगता था अदालतों को मौका मिल गया था मोदी सरकार को टांगने का जबकि केजरीवाल की चोरी पकड़ी गई तो अदालत खामोश रही।
अब 12 नवंबर से उत्तराखंड की सुरंग में 41 श्रमिक फंसे हुए हैं, राज्य सरकार और केंद्र सरकार हर संभव कोशिश कर रही हैं।यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं मामले की निगरानी कर रहे हैं, सेना का भी सहारा लिया जा रहा है सभी कोशिशों से ख़ुशी की खबर मिली थी कि सभी श्रमिक कुशल से हैं जिन्हे भोजन और दवाइयां पहुंचाई जा रही हैह
लेकिन एक NGO “समाधान” ने उत्तराखंड हाई कोर्ट में याचिका लगा दी जिसमे आरोप मढ़ दिया कि ‘सरकार श्रमिकों को निकालने में चुनौती का सामना कर रही है लेकिन साथ ही यह भी कह दिया कि सरकार और कार्यपालिका फंसे हुए श्रमिकों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं।
अभी हो सकता है कोई याचिका सुप्रीम कोर्ट में भी दाखिल कर दी जाएगी।
इतने गंभीर आरोप के लिए हाई कोर्ट को NGO से सबूत मांगने चाहिए थे कि सरकार और कार्यपालिका श्रमिकों के जीवन से खेल रहे हैं, इस आरोप का आधार क्या है। इस बात का जवाब हाई कोर्ट को NGO से 48 घंटे में मांगना चाहिए था लेकिन हुआ इसके विपरीत,हाई कोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस मनोज कुमार तिवारी और जस्टिस पंकज पुरोहित की पीठ ने NGO की PIL को जैसे भगवान का संदेश समझ लिया और राज्य एवं केंद्र सरकार को 48 घंटे में रिपोर्ट पेश करने का “हुकुमनामा” जारी कर दिया कि बताइए कि श्रमिकों को निकालने के लिए क्या current operation and actions हुए हैं।
इस संकट के समय में अदालत कुछ मदद नहीं कर सकती तो इतना तो कर ही सकती है कि सरकार को बेवजह सवाल जवाब में न उलझाए।
सरकार के लिए श्रमिकों का rescue करना प्राथमिकता है या अदालत में अभी अधिकारियों की परेड कराना। कोई भी NGO मुंह उठा कर बकवास कर सकती है लेकिन अदालत को ऐसे आरोपों पर सोच समझ कर संज्ञान लेना चाहिए।
चार धाम यात्रा मार्ग पर पहले भी एक NGO ने टांग अड़ाई थी और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण काम 3 साल तक अटका रहा था।
सरकार किन दुर्गम परिस्थितियों में Yamunotri National Highway बनाने के लिए
Silkyara tunnel का निर्माण कर रही है, यह समझने की आवश्यकता है।
सरकार से रिपोर्ट तलब करने से बेहतर था दोनों मीलॉर्ड स्वयं ही मौके पर मुआयना करने चले जाते जिससे पता चलता वहां क्या हालात हैं – But the NGO must be questioned on its allegations against the government and its machinery और अगर वह कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे सकते तो उन पर मुकदमा चलाया जाए। किसी याचिकाकर्ता के लिए हलफनामे में दावा करना कि सरकार श्रमिकों के जीवन से खेल रही है, बहुत गंभीर है जिसका सबूत अदालत को मांगना चाहिए।

(लेखक उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और यह उनके निजी विचार हैं)