लेखक- भूपेंद्र सिंह
अंततः बहुतों का दुलारा और “आत्मसम्मान का रखवाला” उक्रेन का राष्ट्रपति व्लामिदिर ज़ेलेंस्की ने वहीं काम किया जिसकी उम्मीद थी, यानी की प्याज भी खाया और जूते भी।
पेशे से कभी अमेरिका में कामेडियन रहे ज़ेलेंस्की ने यह लड़ाई इस आधार पर आगे बढ़ा रखी थी कि वह तभी समझौता करेंगे जब रूस उसकी जीती हुई भूमि वापिस कर देगा।
लेकिन महज कुछ ही दिनों में उन्हें पता चल गया कि दूसरों के सहारे बरकरार रखी गई संप्रभुता वास्तव में कोई संप्रभुता होती ही नहीं है।
वह एक समझौता भर होता है जिसमें दूसरा व्यक्ति एक समय तक आपके लिए काम देता है और बदले में फिर आप उसके लिए काम देते है।
ताजे दिए गए बयान में ज़ेलेंस्की ने रूस से अपनी भूमि के वापसी की माँग को समाप्त कर लिया है।
और कहा है कि वह केवल तीन शर्तों के साथ इस युद्ध को रोकने के लिए तैयार है।
पहला यह कि रूस मिसाइल, बम और लांग डिस्टेंस ड्रोन
का प्रयोग अब रोक दे,
दूसरा यह कि डिप्लोमेसी द्वारा विश्वास अर्जित किया जाये
और ऐसा रास्ता निकाला जाये कि अब आगे से युद्ध
की स्थिति ही न बने, और
तीसरा यह कि युद्ध बंधकों, अपहृत बच्चों आदि को
वापस कर दिया जाये।
अपनी तरफ़ से अब ज़ेलेंस्की की इसके अतिरिक्त कोई भी शर्त नहीं है। यानी न अब वह अपनी ज़मीन वापस चाहते है, न उस स्थान पर रूसियों द्वारा रेयर मिनरल के माइनिंग पर रोक चाहते हैं और न ही अपने क्षेत्र में अमेरिका के मिनिरल माइनिंग पर रोक चाहते हैं।
अब यह समझ के बाहर है कि आखिर वह यह युद्ध किसलिए लड़ रहे थे, सिवाय इसके कि अमेरिका की वामपंथ समर्थित हथियार लॉबी के हथियारों की बिक्री कराई जाये?
इस युद्ध से यूक्रेन और रूस के लाखों सैनिकों और नागरिकों की जान गई और दोनों देश डेढ़ से दो दशक पीछे चले गए।
न यूक्रेन को नाटो में एंट्री मिली, न ही उसकी टेरिटरी बची,
न मिनरल पर उसका एकाधिकार बचा, न लिखित सुरक्षा की गारंटी मिली। हाँ, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यह ज़रूर कहा है कि हम जब यूक्रेन में अपने कई बिलियन डॉलर का इन्वेस्टमेंट करेंगे (और रूस यूक्रेन के दक्षिण पूर्वी तरफ़ क़ब्ज़ाई ज़मीन में बड़ा निवेश करेगा) तो यह अपने आप ही सुरक्षा की गारंटी है।
ट्रम्प शुरुआत से कह रहे थे कि जिस दिन यूक्रेन और अमेरिका के हित एक हो जाएँगे, यूक्रेन अपने आप सुरक्षित हो जाएगा। अंततः सारी मूर्खता के बाद ज़ेलेंस्की उसी रास्ते पर लौट आये है।
यह उन लोगों के लिए सबक़ है जो किसी भावावेश में घटी घटना को आधार बनाकर किसी भी ऐरे ग़ैरे को अपने सिर पर बिठा लेते हैं। उससे बड़ा सबक़ यह है कि यदि आप अपने देश की संप्रभुता की रक्षा स्वयं से नहीं कर सकते तो आपका देश वास्तव में स्वतंत्र नहीं है, बल्कि वह उस देश का एक संरक्षित राज्य भर है जो उसकी रक्षा की जिम्मेदारी लेने का दावा करता है।
(लेखक वैदेशिक मामलों के जानकार हैं)