लेखक-अरविंद जयतिलक
आज विश्व प्रवासी पक्षी दिवस है। वर्ष 2006 में विश्व प्रवासी पक्षी दिवस की स्थापना के बाद से यह दिवस वर्ष में दो बार मई और अक्टूबर माह के दूसरे शनिवार को दुनिया भर में मनाया जाता है। विश्व प्रवासी पक्षी दिवस एक वार्षिक जागरुकता अभियान है जिसका उद्देश्य प्रवासी पक्षियों और उनके आवासों की संरक्षण की जरुरत पर प्रकाश डालना है। इस आयोजन के तहत प्रवासी पक्षियों उनके पारिस्थितिक महत्व और उनके समक्ष मौजूद चुनौतियों के प्रति जनमानस को जागरुक किया जाता है। इसे संयुक्त राष्ट्र की दो संधियों ‘वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर सम्मेलन एवं अफ्रीकन-यूरेशियन वाॅटरबर्ड एग्रीमेंट और एक गैर-लाभकारी संगठन एनवाॅयरमेंट फाॅर द अमेरिका के बीच एक सहयोगात्मक संयुक्त रुप से मनाया जाता है। भारत प्रवासी पक्षियों मसलन साइबेरियन क्रेन, ग्रेटर फ्लेमिंगो और डेमाॅस्सेल क्रेन जैसे पक्षियों के लिए घर जैसा है। ये अति सुंदर व मनमोहन प्रवासी पक्षी हर वर्ष सर्दियों और गर्मी के मौसम में भोजन, प्रजनन और घोंसले के शिकार के लिए भारत आते हैं। पक्षियों के बीच कई अलग-अलग प्रवासन देखने को मिलता है। अधिकांश पक्षी उत्तरी प्रजनन क्षेत्रों से दक्षिणी सर्दियों के मैदानों की ओर रुख करते हैं। हालांकि कुछ पक्षी अफ्रीका के दक्षिणी हिस्सों में प्रजनन करते हैं और सर्दियों में उत्तरी मैदान या क्षैतिज रुप से पलायन करते हैं। भारत कई प्रवासी पक्षियों का अस्थायी निवास स्थान है। भारतीय उपमहाद्वीप प्रमुख पक्षी फ्लाइवे नेटवर्क का भी अहम हिस्सा है। यह मध्य एशियाई फ्लाइवे आर्कटिक और भारतीय महासागरों के मध्य के क्षेत्रों को कवर करता है। सुखद पहलू यह है कि भारत ने मध्य एशियाई फ्लाइवे के तहत प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना शुरु की है। इसलिए कि भारत प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय का एक पक्षकार है। गौर करें तो सर्दियों के मौसम में तो भारतीय उपमहाद्वीप के विशेष क्षेत्र मसलन झील, आद्र्रभूमि या बैकवाटर प्रवासी पक्षियों का बसेरा बन जाता है। लेकिन चिंता की बात यह है कि भारत में प्रवासी पक्षियों के साथ-साथ अन्य पक्षियों की आबादी तेजी से घट रही है। वर्ष 2020 में संयुक्त राष्ट्र की ‘स्टेट आॅफ इंडियाज बर्ड्स की रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ था कि भारत में 79 प्रतिशत पक्षियों की तादाद घट गयी है। यह रिपोर्ट इसलिए विश्वसनीय है कि 867 प्रकार के पक्षियों का अध्ययन कर उनके दीर्घावधि (25 साल) और लघु अवधि (5 साल) के आंकड़े जुटाए गए तब इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया। रिपोर्ट के आंकड़ों पर नजर डालें तो जिन 261 प्रजातियों के दीर्घावधि आंकड़े सामने आए हैं उनमें 52 प्रतिशत की तादाद वर्ष 2000 से लगातार घटी है। इसी तरह जिन 146 प्रजातियों के लघु अवधि के आंकड़ों का विश्लेषण हुआ है उनमें से 80 प्रतिशत की तादाद कम हुई है। यानी गौर करें तो कुलमिलाकर 50 प्रतिशत की संख्या तेजी से गिरी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तकरीबन 10 प्रतिशत प्रजातियों की स्थिति बेहद चिंताजनक है और इन्हें खास संरक्षण की जरुरत है। आंकड़ों के मुताबिक तेजी से गिरावट वाले पक्षियों में शिकारी पक्षी व प्रवासी समुद्री पक्षी पिछले दशकों में सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। पर अच्छी बात यह है कि विगत वर्षों से गौरैया की संख्या स्थिर रही है। आंकड़ों के मुताबिक पिछले ढ़ाई दशकों में गौरैया की संख्या में कोई विशेष कमी नहीं आयी है। हालांकि दिल्ली, मुंबई समेत आधा दर्जन शहरों में इनकी संख्या घटी है। देश में प्रवासी पक्षियों का आना भी कम हो रहा है। देश की राजधानी दिल्ली में ओखला बर्ड सेंचुरी में प्रवासी पक्षियों का आगमन लगातार कम हो रहा है। पक्षी विज्ञानियों की मानें तो बर्ड सेंचुरी के आसपास बढ़ते वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण की वजह से प्रवासी पक्षी यहां आना पसंद नहीं कर रहे हैं। इसके अलावा दलदली और जल वाली भूमि का लगातार घटते जाना भी एक प्रमुख कारण है। जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध पश्चिमी घाटों पर वर्ष 2000 से पक्षियों की संख्या में 75 प्रतिशत तक कमी आयी है। याद होगा कि अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने वर्ष 2013 में भारत में देखे जाने वाले पक्षियों की दस प्रजातियों को बेहद गंभीर रुप से संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची में शामिल किया था। इनमें ग्रेट साइबेरियन क्रेन, गोडावण,, सफेद पीठ वाला गिद्ध, लाल-सिर वाला गिद्ध, जंगली उल्लू, स्पून बिल्ड सैंडपाइपर और सफेद पेट वाला बगुला प्रमुख था। इन पक्षियों की आबादी में गिरावट की मुख्य वजहों में आवास का नुकसान, संशोधन, बिखंडन, पर्यावरण प्रदूषण को प्रमुख रुप से जिम्मेदार माना गया। ग्लोबल वार्मिंग ने पक्षियों के अस्तित्व को और भी अधिक संकट में डाल दिया है। गौरतलब है कि भारत में विभिन्न प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं जिनमें गौरैया, कौआ, तोता, तीतर, चर्खी, शामा, भुजंगा, बया, मुनिया, लाल तूती, गिद्ध, कठफोड़वा, नीलकंठ, बसंता, महोखा, पतरिंगा, हरियल, हुदहुद और बटेर जैसे पक्षी आमजन के बेहद करीब माने जाते हैं। लेकिन इन लोकप्रिय पक्षियों की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है। पक्षियों के संरक्षणकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि दुनिया की सबसे वजनदार पक्षियों में से एक सोन चिरैया की प्रजाति लुप्त होने के कगार पर है। सोन चिरैया लगभग एक मीटर ऊंची होती हैं और इनका वजन 15 किलो होता है। सोन चिरैया को कभी भारत और पाकिस्तान की घास भूमियों पर देखा जाता था लेकिन अब ये एकांत भरे क्षेत्रों में ही देखने को मिलते हैं। पक्षी विज्ञानियों की मानें तो पृथ्वी पर मानव की गतिविधियों और जंगलों के विनाश के कारण पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियां पूरी तरह विलुप्त हो चुकी हैं। पक्षी विज्ञानियों का कहना है कि वर्ष 1500 से अब तक तकरीबन पक्षियों की 190 प्रजातियां पूरी तरह विलुप्त हो चुकी हैं। बिडंबना है कि विलुप्त होने की दर लगातार बढ़ती जा रही है। पक्षी विज्ञानियों के मुताबिक विश्व भर में तकरीबन 10000 प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं। इनमें से कुल 1200 प्रजातियां ऐसी हैं जो कि विलुप्त होने के कगार पर हैं। भारत से इतर बात करें तो हवाई द्वीप के लगभग 30 प्रतिशत पक्षियों की प्रजातियां नष्ट हो चुकी हैं। इसी तरह गुआम द्वीप पर पक्षियों की 60 प्रतिशत प्रजातियां पिछले तीन दशक के दौरान विलुप्त हुई हैं। पक्षी विज्ञानियों का कहना है कि पक्षियों की विलुप्ती के कई कारण हैं। उनमें उनके आवास का नष्ट होना, पक्षियों के भोजन के स्रोत का खत्म होना, प्राकृतिक आपदाएं, मौसम में बदलाव मुख्य कारण हैं। पक्षियों के शिकार और उनके अंडों के इस्तेमाल का कुप्रभाव भी उनकी तादाद पर पड़ता है। कभी-कभार तो किसी परभक्षी प्रजाति के आने के कारण भी पक्षियों की तादाद पर संकट मंडराने लगता है। अमूमन देखा जा रहा है कि मानव जाति कृषि कार्य से अधिक उत्पादन हासिल करने के लिए जमकर कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहा है। ये कीटनाशक पक्षियों के लिए जहरीले साबित होते हैं और इसकी वजह से पक्षियों के अंडे नहीं बन पाते हैं। लिहाजा धीरे-धीेरे उनकी प्रजातियां विलुप्त हो जाती है। किसानों द्वारा कीटनाशकों का इस्तेमाल पूरी तरह प्रतिबंधित होना चाहिए। इन कीटनाशकों में बेनोमाइल, कार्बरील, डीडीटी डायाजिनोन, फेनरिमोल, फेथियोन, लिनुरान, एमआईएमसी, मिथाइल पैराथियान, सोडियम सायनाइड, थियोटोन, ट्राइडमोर्फ, ट्राइफ्लारेलिन इत्यादि अत्यंत खतरनाक हंै। पक्षी विज्ञानियों का कहना है कि पक्षियों की कई प्रजातियां बेहद संवेदनशील होती हैं और इन्हें अनुकूल वातावरण में रहने की आदत होती है। किंतु वातावरण में थोड़ा भी बदलाव होता है तो उनके जीवन पर संकट मंडराने लगता है। आज की तारीख में जो पक्षी पूरी तरह विलुप्त हो चुके हैं उनमें डोडो, तस्मानियन इमु, कैरोलिना परेकीट, अरबी शुतुर्गमुर्ग, संदेश वाहक कबूतर विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं। उचित होगा कि समाज व सरकार तथा स्वयंसेवी संस्थाएं इन विलुप्त हो रहे पक्षियों को बचाने की दिशा में ठोस पहल करें।

(लेखक राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषक हैं)