लेखक -सुभाषचंद्र
√ मुकदमों में देरी के लिए कहीं तो तय होनी चाहिये जिम्मेदारी!
कल मैंने दिल्ली हाई कोर्ट में नेशनल हेराल्ड के 3 साल से लटके केस के बारे में विस्तार से बताया था। दूसरा भी दिल्ली हाई कोर्ट में ही लटकता भटकता केस है, 2G स्पेक्ट्रम का, जिसमें सभी आरोपियों को बरी किये जाने वाले स्पेशल जज OP Saini के फैसले के खिलाफ CBI और ED की अपील 6 साल से लंबित है, और कौन जाने अभी जल्दी फैसला होगा या नहीं
CBI कोर्ट के जज OP Saini ने 21 दिसंबर, 2017 को (2008 के 2G घोटाले में) A RAJA समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। उसका एक वाक्य याद आता है कि ये केस एक फिल्म की कहानी जैसा लगता है जिसमें कोई दम नहीं है (ऐसा ही कुछ कहा था) और कहा था कि,
“राजा के विरुद्ध कुछ मिला जिससे साबित हो कि उसने षड्यंत्र किया, कुछ लोगों ने कलाकारी करके कुछ चुने हुए facts को जोड़ कर आसमान में एक घोटाला पैदा किया”
यह फैसला देकर जज सैनी ने CBI/ED को तो खाक में मिला ही दिया साथ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और CAG की रिपोर्ट को भी कूड़ेदान में डाल दिया और यह फैसले पर ऊँगली उठाने के लिए मजबूर करता है। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सोचा होगा जो CBI को Charge Sheet दायर करने के लिए कहा, और CAG क्या अनपढ़ थे जो आसमान में ही कहानी गढ़ दी। दिल्ली हाई कोर्ट ने राजा द्वारा स्पेक्ट्रम वितरण के लिए cut off date 1 अक्टूबर, 2007 से पीछे करके 25 सितंबर करने को गैर-कानूनी कहा था लेकिन सैनी साहब बूल गए, राजा का यह एक कदम, घोटाला साबित करने के लिए काफी था।
ED और CBI ने 19 और 20 मार्च 2018 में जज सैनी के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दायर कर दी थी यानी 6 साल पहले, मैं वकील नहीं हूं, मुझे तो इतना पता है कि अपील या तो स्वीकार (admit) होती है या नहीं होती या फिर सुनवाई के लिए स्वीकार हो कर सुनवाई के बाद ख़ारिज होती है या मान ली जाती है।
लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट जस्टिस ब्रिजेश सेठी ने 29 सितंबर, 2020 को इस केस में रोजाना सुनवाई के आदेश दिए जो 5 अक्टूबर, 2020 से होनी थी – सेठी साहब 30 नवंबर को रिटायर हो गए। अब 22 मार्च, 2024 को दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा के फैसले ने बताया कि अक्टूबर, 2020 से 4 साल तक कोर्ट अपील करने के लिए एक दूसरे Concept “Leave to appeal” पर सुनवाई कर रहा था।
जस्टिस शर्मा ने Leave to appeal पर सुनवाई करके Leave grant करके CBI की अपील admit कर ली,उन्होंने कहा कि सभी रिकॉर्ड देखने बाद कहा कि CBI जज के फैसले में कुछ Contradictions हैं जिसके गहराई से विश्लेषण की जरूरत है।
यानी अपील दायर होने के पूरे 6 साल बाद यह स्थिति है केस की, 4 साल तो Leave to appeal पर फैसला करने में लग गए और सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नेताओं के Cases में ट्रायल कोर्ट में एक साल में फैसले हो जाएं, लेकिन बड़ी अदालतों के लिए कोई बंदिश नहीं है, जब तक चाहें मौज कर सकते हैं।
दिल्ली हाई कोर्ट में इन 6 सालों में 6 चीफ जस्टिस रहे थे – Justice(s) गीता मित्तल, राजेंद्र मेनन, डी एन पटेल, विपिन सांघी, सतीश चंद्र शर्मा और अब हैं मनमोहन ,ये क्या करते रहे थे जो उन्हें पता नहीं था कि कोर्ट में क्या हो रहा है, बस केजरीवाल के केस फटाफट खत्म करते हैं।
हाई कोर्ट अगर 2018 में ही इस केस में अपील स्वीकार कर ट्रायल कोर्ट का फैसला पलट देता तो A Raja और कनिमोझी न केवल 2014 (16th लोकसभा) की सदस्यता खो देते बल्कि 2019 और 2024 का भी चुनाव भी न लड़ पाते सरकारी ख़ज़ाने का कितना माल लूट रहे होंगे ये लोग।
सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट नेशनल हेराल्ड और 2G मामलों में देरी के लिए अधिकारियों और जजों की जिम्मेदारी तय करें और सरकार को जजों को हटाने की सिफारिश करे क्या ऐसा करने की judicial fraternity हिम्मत करेगी!
मीलॉर्ड, केजरीवाल की चिंता छोड़िए, केस कब शुरू होगा, उपरोक्त मामलों की चिंता कीजिए।
(लेखक उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और यह उनके निजी विचार हैं)