लेखक~सुभाषचंद्र
सेशन और हाई कोर्ट दोनों में अपराध तो मान ही लिया उनके पैरवीकार दिग्गज वकीलों ने
♂÷पूर्व काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सूरत सेशन कोर्ट में ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने के काम में RS Cheema वरिष्ठ वकील, किरीट पान वाला और वकीलों की टीम लगी थी जिसका Supervision सुप्रीम कोर्ट के दिग्गज वक़ील व मनमोहन सरकार में केंद्रीय क़ानून मन्त्री रहे अभिषेक मनु सिंघवी कर रहे थे।
केवल वकील ही अपील दायर कर सकते थे मगर राहुल गान्धी के साथ कई मुख्यमंत्री और पार्टी कार्यकर्ताओं का बड़ा दल साथ में गया,किसी वकील ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह नहीं दी और शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी ने यह बात कोर्ट में उठा भी दी कि ऐसा तमाशा करके ये लोग अदालत पर दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं।
सेशन कोर्ट में राहुल के वकीलों ने अजीबोगरीब दलील दी कि नरेंद्र मोदी को स्वयं शिकायत करनी चाहिए थी जबकि शिकायत भाजपा नेता पूर्णेश मोदी ने की है जिसके खिलाफ कोई बयान नहीं दिया राहुल ने।
यह बात कह कर वकीलों ने मान लिया कि राहुल ने बयान तो दिया और यह उनके खिलाफ जा सकता था। कोर्ट में भी यही दलील दी गई कि मोदी कोई समुदाय है ही नहीं तो फिर मानहानि का सवाल ही नहीं उठता। कहीं कोई अफ़सोस नहीं था राहुल को वो बयान देने के लिए – सेशन कोर्ट ने अपील ठुकरा दी और सारे वकीलों की हवा निकाल दी।
हाई कोर्ट में मोर्चा सम्हाला अभिषेक मनु सिंघवी ने और उन्होंने भी राहुल का अपराध स्वीकार कर लिया। सिंघवी ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने 2 वर्ष की अधिकतम सजा देकर गलती की है जबकि 3 से 6 महीने की भी सजा दी जा सकती थी।
इसका मतलब साफ़ था कि सिंघवी ने स्वीकार किया कि राहुल ने अपराध तो किया परंतु सजा अपराध की गंभीरता के अनुसार नहीं दी गई , पूर्णेश मोदी के दायर शिकायत के लिए सिंघवी ने कहा कि राहुल के खिलाफ केस राजनीति से प्रेरित है।
बहुत अच्छे सिंघवी जी, राहुल के खिलाफ केस राजनीति से प्रेरित हो गया तो फिर राहुल गांधी ने जो सारे मोदी सरनेम के लोगों को “चोर” कहा, वो क्या कोई “धार्मिक प्रवचन” था – वो जो मर्जी बोलते फिरेंगे लेकिन कोई उसके खिलाफ शिकायत करने का भी अधिकार नहीं रख सकता?
सिंघवी ने नवजोत सिंह सिद्धू, हार्दिक पटेल और डॉ सुब्रमण्यम स्वामी की मांगों का जिक्र करते हुए हाई कोर्ट से अपील पर बहस करते हुए कहा कि राहुल का अपराध “गंभीर श्रेणी” के अपराधों में नहीं आता जिसके लिए अधिकतम सजा दी जाए – यानी कितनी सजा देनी चाहिए, यह तय करने का अधिकार भी जज को नहीं देना चाहते सिंघवी साहब।
सिंघवी ने कहा कि डॉ सुब्रमण्यम स्वामी तो मानहानि के कानून को ही ख़तम करने के लिए कह चुके हैं। अब यह कहते हुए सिंघवी भूल गए कि डॉ स्वामी तो बहुत कुछ कहते हैं, तो फिर वो जो कुछ भी कहते हैं उन सब बातों को भी आप मान लोगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकीलों में शुमार सुब्रमण्यम स्वामी ने ही हेराल्ड घोटाले का केस किया हुआ है और माँ-बेटे के लिए तो वो खुलेआम कई बार कह चुके हैं कि इनके पास कोई शैक्षिक डिग्री नहीं हैं?
कुल मिला कर देखा जाए तो राहुल गांधी के वकीलों ने ही उसका केस पूरी तरह कमजोर कर दिया – शायद यही कारण है कि हाई कोर्ट ने भी कोई अंतरिम राहत नहीं दी और मामला ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद तक के लिए लटक गया।
वैसे अभिषेक मनु सिंघवी बिना हाई कोर्ट के फैसले की प्रतीक्षा किए, सुप्रीम कोर्ट में Special Leave Petition लगा सकते हैं यह कहते हुए कि मामला गंभीर है, हाई कोर्ट ने फैसला नहीं किया, आप कर दीजिए – ऐसा सुप्रीम कोर्ट को करने की Power है।
याद कीजिए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री व वर्तमान में पीएम नरेन्द्र मोदी पर गुजरात दंगो को लेकर अनगिनत आरोप लगाने वाली तीस्ता सीतलवाड़ पर फ़र्जी कहानी गढ़ने व करोड़ों के रक़म को अपने एनजीओ के माध्यम से हड़पने के केस में जमानत अर्जी गुजरात हाई कोर्ट में लंबित थी लेकिन कांग्रेसी दिग्गज नेता और मनमोहक सरकार में केंद्रीय क़ानून मन्त्री रहे वक़ील कपिल सिबल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया और हाई कोर्ट के आदेश दिए बिना भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित से सीतलवाड़ को जमानत पर छोड़वा दिया।
ऐसा सिंघवी राहुल गान्धी के लिए भी सुप्रीम कोर्ट में मांग कर सकते हैं।
सीतलवाड़ जमानत मामलें में तो चर्चा उस दौरान यह भी रही कि कपिल सिब्बल ने जमानत भी बगैर सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए एक फ़ोन कॉल पर दिलवा दी थी।
वैसे सांसदी गवां चुके काँग्रेस नेता राहुल गांधी अब नहीं कहते कि – “मैं माफ़ीवीर सावरकर नहीं, राहुल गांधी हूं और सच के साथ रहता हूं”
(लेखक विधि मामलों के ज्ञाता हैं और यह उनके निजी विचार है)