लेखक- राजेंद्र द्विवेदी
आखिर मुख्य निर्वाचन आयुक्त पद से 18 फरवरी 2025 को राजीव कुमार सेवानिवृत्त हो जायेंगे। इन्होंने पद को कलंकित किया। ऐसे आचरण और व्यवहार तथा निर्णय लिए जिससे समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने आयोग को मृतक बताकर सफ़ेद चादर से ढकने का काम करना पड़ा।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या को लेकर राहुल गांधी जिस तरह से घेराबंदी और तथ्यों के साथ आरोप निर्वाचन आयोग पर लगा रहे हैं उसका जवाब आयोग नहीं दे पा रहा है।
आयोग के गठन के 25 जनवरी 2025 को 75 वर्ष पूरे हो गए। इस बीच टीएन शेषन एक ऐसा नाम है जिसने आयोग की ताकत का राजनीतिक दलों को एहसास कराया। टीएन शेषन ने निष्पक्ष चुनाव कराने के जितने भी मानक बनाये उसे लागू किया था। जिसका प्रभाव यह रहा कि बिहार में लालू जैसा मुख्यमंत्री भी टीएन शेषन से कापता रहा। चुनाव में बड़े पैमाने पर बूथ कैप्चरिंग एवं हत्याएं होती थी। लोकसभा चुनाव 1984 में 24, 1989 में 40 और 1985 बिहार विधानसभा में 63 और 1990 में 87 लोग मारे गए थे। बाहुबलियों का आतंक था। शेषन ने बोगस वोटिंग रोकने के लिए मतदाता पहचान पत्र, खरीद फरोख्त, चुनाव खर्च निर्धारण, बूथ कैप्चरिंग रोकने के लिए केंद्रीय बालों की तैनाती जैसे अहम फैसले किये थे। बिहार चुनाव बूथ कैप्चरिंग के लिए बहुत बदनाम था। शेषन ने गुंडा राज को रोक कर निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए बिहार में 650 पैरा मिलिट्री फोर्स भेजा था। शेषन का ऐसा दवाब हो गया था कि नेता डरने लगे थे कि गड़बड़ी हुई तो चुनाव निरस्त हो जायेंगे। शेषन ने बिहार में 4 बार चुनाव रद्द भी किये। संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब- द ब्रदर्स बिहारी में लिखा है कि लालू यादव तो शेषन से इतना तंग आ चुके थे कि रोज उन्हें लानत भेजते। एक बार तो उन्होंने कह दिया था, “शेषनवा को भैंसिया पे चढ़ाकर के गंगाजी में हेला देंगे।”
टीएन शेषन द्वारा आयोग के ताकत का एहसास सभी राजनीतिक दलों को था और वह कम ज्यादा जरूर रहा लेकिन जैसा राजीव कुमार के समय हुआ ऐसा कभी नहीं था। राजीव कुमार ने टीएन शेषन के उस आदर्श और निष्पक्ष चुनाव कराके लोकतंत्र की गहरी हुई जड़ों को अपने तमाम निर्णयों से कमजोर कर दिया है। एक तरह से कह सकते हैं कि टीएन शेषन आयोग का स्वर्णिम युग तो राजीव कुमार का कार्यकाल आयोग का कलंकित काल कहा जा सकता है।
सितम्बर 2020 में निर्वाचन आयुक्त के रूप में 14 मई 2022 तक राजीव कुमार के तमाम निर्णय गतिविधियां आरोपों में रही लेकिन 15 मई 2022 मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनने के बाद सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। आयोग की साख ख़त्म कर दी। मुख्य निर्वाचन आयोग के पद को कलंकित किया है। जो आचरण और निर्णय राजीव कुमार ने भाजपा को जिताने के लिए अपनाया। विपक्ष के शिकायत और आवाज को दबाने का कार्य किया उसके लिए वास्तविक रूप से जो छवि और साख भारत निर्वाचन आयोग की जनता में गिरी है उसकी समीक्षा के लिए शब्द नहीं है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में भारत निर्वाचन आयोग की भूमिका बहुत अहम होती है। क्योंकि निष्पक्ष निर्वाचन से ही जनता की भावना के अनुसार जन प्रतिनिधि चुने जाते हैं।
महाराष्ट्र में शिवसेना पार्टी के विवाद को लेकर भारत निर्वाचन आयोग ने एकनाथ शिंदे की टीम को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दे दी है और शिवसेना का ‘तीर-कमान’ चुनाव चिह्न भी शिंदे गुट को दे दिया है।
इसी तरह एनसीपी पार्टी और चुनाह चिन्ह शरद पवार के भतीजे अजित पवार को दे दिया। शिवसेना और एनसीपी पार्टी तोड़े जाने और मान्यता देने पर कई सवाल है जिसका जवाब आज भी आयोग के पास नहीं है।
राजीव कुमार के मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनने के बाद 20 राज्यों हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मिजोरम, नागालैंड, राजस्थान, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, महाराष्ट्र, हरियाणा, ओडिशा, झारखण्ड, सिक्किम, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, दिल्ली में चुनाव हुए।
सभी राज्यों के चुनाव में मतदान प्रतिशत, मतदाता सूची, आचार सहिंता उल्लंघन सहित बहुत सारे आरोप गैर भाजपा दलों द्वारा तथ्यों के साथ लगाया जाता रहा। यह आरोप भी लगते रहे कि आयोग निष्क्रिय है भाजपा को चुनाव जिताने की हर स्तर पर मदद कर रहा है। जिन 20 राज्यों में चुनाव हुए उनमें 9 राज्यों में भाजपा की सरकार बनी।
सबसे बड़ा आरोप लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर है। जिसमें राजीव कुमार ने किस तरह से मतदान प्रतिशत को अप्रत्याशित रूप से 1 हफ्ते बाद 7-8% बढ़ा दिया। कई ऐसे सीटें है जहाँ पर प्रत्याशी के समर्थक खुलेआम सूची लेकर बूथ पर मत देने की बात करते रहे। लेकिन आयोग ने करवाई नहीं की। पहले ईवीएम को लेकर सवाल उठते थे जिस पर काफी बहस भी हुई। उच्चतम न्यायालय तक मामला गया लेकिन विरोध करने वाले आयोग में मीटिंग के दौरान साबित नहीं कर पाए कि ईवीएम में गड़बड़ी होती है जिस पर विपक्ष ईवीएम पर ज्यादा आक्रामक नहीं हो पाया। क्योकि राज्यों के चुनाव में तेलंगाना, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु में ईवीएम से ही गैर भाजपा सरकारें बनी थी। इसलिए ईवीएम का विरोध बहुत कारगर नहीं हो पाया। लेकिन संदेह के घेरे में आज भी ईवीएम की वोटिंग बनी हुई है।
महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव को लेकर राहुल गाँधी ने आयोग पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं उनका कहना है कि 5 साल में लोकसभा चुनाव में 32 लाख और 5 महीने के भीतर 7 लाख नए मतदाता कैसे जुड़ गये। राहुल ने इलेक्शन कमीशन से वोटर लिस्ट की सूची मांगी है। जिसे आयोग नहीं दे रहा है। राहुल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश के आबादी के बराबर मतदाता कैसे बढ़ा है।
इनके पहले हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा सीटों की सूची दी जिसमें आकड़ों की जादूगरी करके भाजपा को जिताया गया था। इस शिकायत पर भी आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की। दिल्ली की विधानसभा चुनाव में केजरीवाल मतदाताओं की संख्या बढ़ाने, भाजपा नेताओं द्वारा खुलेआम पैसा, कपड़ा, जूता, साड़ी बांटने का आरोप तथ्यों के साथ भेजते रहे और दिल्ली में नाक के नीचे आचार संहिता की धज्जियां उड़ती रही और आयोग निष्क्रिय रहा। उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनाव में अखिलेश यादव प्रशासन और योगी सरकार के खिलाफ आचार सहित का उल्लंघन तथा बूथ कैप्चरिंग करने, सपा समर्थक को मतदान करने से रोके जाने और मतगणना में हेरा फेरी जैसे गंभीर आरोप तथ्यों के साथ आयोग से शिकायत करते रहे। परिणाम कुछ नहीं रहा कोई करवाई नहीं हुई।
आज़ादी के बाद 25 जनवरी 1950 को विधानसभा-लोकसभा चुनाव कराने के लिए भारत निर्वाचन आयोग का गठन किया गया। जिसे मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है। 75 वर्षों में राजीव कुमार 25वें मुख्य निर्वाचन आयुक्त है। इसके पहले सुकुमार सेन (21 मार्च 1950-19 दिसंबर 1958) पहले निर्वाचन आयुक्त हुए। इन 75 वर्षों में एक ही ऐसा नाम है टीएन शेषन। जिसने भारत निर्वाचन आयोग की ताकत एवं पहचान को स्थापित किया। इसके पहले जितने भी मुख्य निर्वाचन आयुक्त होते थे वह चुनाव में पारदर्शिता एवं निष्पक्ष चुनाव कराने का प्रयास करते रहे। इन दौरान भी विपक्ष द्वारा कांग्रेस सरकार के पक्ष में कार्य करने का आयोग पर आरोप लगे लेकिन उसमें अधिकांश आरोप राजनीतिक थे। 1980 के बाद सियासत में बदलाव आया। भारी संख्या में बाहुबली चुनाव लड़े और बूथ कैप्चरिंग की गंभीर शिकायतें होती रही। 1980-90 दशक के बीच उत्तर भारत में बाहुबलियों का नेक्सस बना और बूथ कैप्चरिंग करके निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विधानसभा और लोकसभा में जनप्रतिनिधि बन गए।
बिहार में बूथ कैप्चरिंग को लेकर फोटो और बूथ कैप्चरिंग करने वालों के बयान भी छपते रहे। लेकिन 1990 में टीएन शेषन मुख्य निर्वाचन आयुक्त बने उन्होंने कई सुधार किये। निष्पक्ष चुनाव कराया। टीएन शेषन के बनाये मानक को उनके उत्तराधिकारी धीरे-धीरे कमजोर करते रहे। सत्ता पक्ष के लिए काम किया लेकिन आयोग गठन के 75 वर्ष में जब राजीव कुमार अपना कार्यकाल पूरा करके मुख्य निर्वाचन आयुक्त पद से रिटायर हो रहे हैं तो इन दौरान आयोग ने टीएन शेषन के स्वर्णिम युग को राजीव कुमार ने कमजोर करके साख को गिराया है। यह कह सकते है कि उन्होंने मुख्य निर्वाचन आयुक्त की गरिमा को कलंकित किया है।
लोकतंत्र में भारत निर्वाचन आयोग की अहम भूमिका होती है। जितनी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ चुनाव होते है लोकतंत्र की जड़ें उतनी अधिक मजबूत होती है। राजीव कुमार ने तमाम आरोपों का जवाब नहीं दिया जिससे उनके निष्पक्षता पर गंभीर सवाल है उनके निर्णयों से लोकतंत्र की जड़ें कमजोर हुई है।
आयोग पर पहली बार सवाल नहीं उठे हैं। इसके पहले भी आयोगों से शिकायत होती थी। इस पर जांच करवाई भी होती रही। कभी भी ऐसा नहीं रहा कि आयोग एकपक्षीय सरकार के समर्थन में खड़ा दिखाई दिया हो।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं)