लेखक- विजय
अमेरिकी नागरिक नाथन एंडरसन की हिंडनबर्ग रिसर्च की पिछले साल वाली रिपोर्ट के बाद कुछ एक्सपर्ट लोगों से बात हो रही थी, वे लोग भारतीय उधोगपति गौतम अडानी की बात से सहमत लग रहे थे कि हिंडनबर्ग का असली निशाना कहीं और है अडानी को सिर्फ मोहरा बनाया गया है। असल टारगेट भारत की विश्व में छवि खराब करना है।
हिंडनबर्ग की उस रिपोर्ट से भी बहुत कन्विंस्ड नहीं हो पाया था, लेकिन ये वाली राय भी अतिरेक लग रही थी। अडानी का बोलना समझ आए, लेकिन बाकी लोग जिनका अडानी से कोई लेना-देना नहीं, वे जब देश की बात करें तो क्या एक्सपर्ट लोग भी बहक गए हैं कि धुरंधर लोग भी मूर्ख हो सकते हैं।फिर अभी डेढ़ महीने पहले हिंडनबर्ग ने सेबी की शो कॉज नोटिस पर जिस झल्लाहट वाले अंदाज में जवाब दिया, उसने मेरा विचार थोड़ा करेक्ट किया।
यह वाली रिपोर्ट को पढ़ने के बाद मैं कन्विंस हो गया कि वास्तव में निशाना अडानी कभी था ही नहीं।
अब इस रिपोर्ट की बात करते हैं. हिंडनबर्ग ने इस बार निशाना एक दम वहीं पर लगाया है, जहां वास्तव में घाव करने का प्रयास हो रहा था। भारत की प्रतिष्ठा पर निशाना हुआ है सीधे, सेबी की छवि दुनिया के सबसे साफ मार्केट रेगुलेटर की है। भारत का शेयर बाजार जीडीपी से डेढ़ गुना आगे निकला है तो उसका पूरा श्रेय सेबी को है,अब सोचिए कि उस सेबी की इमेज खराब हो जाए तो भारतीय बाजार का क्या होगा?यह समझना बेहद जरुरी है।
चीन का शेयर बाजार (हांगकांग या मेनलैंड शंघाई) भारत से कई गुना बड़ा है,चीन की इकोनॉमी भी भारत से कई गुनी बड़ी है। अभी आर्थिक ताकत में अमेरिका को टक्कर देने की हैसियत हो गई है चीन की, उसके बाद भी चीन का शेयर बाजार इधर लगातार गिर रहा था।
कारण कि बड़े विदेशी इन्वेस्टर पैसे निकालने में लगे हुए थे, चीन में डोमेस्टिक फंड स्टेट से लगभग डायरेक्टली कंट्रोल होने के बाद भी विदेशी निवेशकों की सेलिंग को नहीं भर पा रहे थे।
भारत में स्टेट कंट्रोल्ड फंड की हैसियत बाजार को बहुत ज्यादा मूव कराने की नहीं है,हाल-फिलहाल में एक अच्छी बात हुई है कि देसी इन्वेस्टर्स ने अलग ही मोर्चा खोल दिया है, विदेशी निवेशक जितना बेच रहे हैं, उससे ज्यादा देसी लोग खरीद ले रहे हैं बाजार को इससे बहुत नुकसान हो नहीं रहा।सारा डैमेज कंट्रोल हो जा रहा है लेकिन हमेशा ऐसा संभव नहीं है कारण उतना पैसा नहीं निकल पाएगा।
अभी हो जा रहा है क्योंकि मार्केट 4-5 ट्रिलियन डॉलर का है इसे जाना है 20-25 ट्रिलियन डॉलर पर, वहां तक जाने के लिए विदेशी फंड चाहिए ही चाहिए और अगर भारत की विश्वसनीयता खराब हो जाती है तो विदेशी फंड आने में मुश्किलें आएंगी।
हिंडनबर्ग को फैक्ट रखना चाहिए था, हिंडरसन ने इतना माहौल बनाकर और डेढ़ साल से ज्यादा का समय लेकर रिसर्च के नाम पर अनुमान परोस दिया है, यह रिसर्च नाम की चिड़ियां की इज्जत के साथ गंभीर खिलवाड़ है। सेबी चेयरपर्सन माधबी पुरी और उनके हसबैंड के नाम पर जिस व्हिसलब्लोअर का बम फोड़ा गया है, वह 2015 का है। व्हिसलब्लोअर के आरोप के अलावा हिंडनबर्ग रिसर्च ने मीडिया रिपोर्ट्स को आधार बनाया है मीडिया रिपोर्ट्स, जो सूत्रों के हवाले से है। व्हिसलब्लोअर के आरोप साबित हुए? जवाब है नहीं,मीडिया रिपोर्ट्स साबित हुईं,जवाब है नहीं।
मान लेते हैं कि माधबी बुच सर्वशक्तिमान हैं और सेबी चीफ बनने से पहले भी उनके पास अमेरिकी राष्ट्रपति के बराबर ताकत थी, लेकिन हिंडनबर्ग वाले नाथन एंडरसन तो सो कॉल्ड रॉबिनहुड हैं, उन्हें दशक भर पहले के व्हिसलब्लोअर एलीगेशंस और मीडिया रिपोर्ट्स के पक्ष में रखने के लिए गिनती का एक फैक्ट नहीं मिल पाया,है न हैरानी की बात?
इन दो चीजों के अलावा दो और बड़ी भयानक जानकारी निकाली गई है सो कॉल्ड रिसर्च में।
एक कि माधबी और उनके हसबैंड की नेटवर्थ 10 मिलियन डॉलर है। क्या मजाक है! दोनों पति-पत्नी ने उम्रें गुजार दीं दिग्गज बैंकों और कंपनियों में टॉप पोजिशन पर काम करते हुए उसके बाद 10 मिलियन डॉलर का फिगर छोटा है, बहुत छोटा। दूसरा कि सेबी की मेंबर बनने से पहले माधबी ने अपनी होल्डिंग्स (मतलब जहां-जहां पैसे लगा रखे थे) को अपने हसबैंड के नाम ट्रांसफर कर दिया था। हिंडनबर्ग इसे खुलासा बता रहा है, जबकि यह बेहद सामान्य प्रक्रिया है। आप पब्लिक सेक्टर में घुसते हैं तो उसके पहले तमाम पद और पोजिशन छोड़ना पड़ता है, ताकि हितों का टकराव नहीं हो,तो जो एक दम मामूली प्रक्रिया है और जो करने के लिए नियम कहता है, वह करना गलत कैसे हो गया और उसे गलती बताकर 10 साल बाद किसी घिसी-पिटी रिसर्च का हिस्सा बनाना खुलासा कैसे हो गया? अगर माधबी बुच अपने होल्डिंग्स नहीं हटातीं और सेबी की मेंबर बन जातीं, तब भले गलत होता उस स्थिति में सवाल जायज लगते!
नाथन इस पूरे मामले में असल खिलाड़ी नहीं हैं खेल कोई और रहा है नाथन एंडरसन का सिर्फ कंधा है या फिर नाथन ने शिकार करने का कॉन्ट्रैक्ट (सुपारी कह सकते हैं) लिया है। पिछले साल जनवरी में पहली रिपोर्ट भी टाइम करके आई थी और इस बार भी टाइमिंग कैलकुलेटेड है। डेढ़ साल पहले आई रिपोर्ट में फिर भी मेहनत की गई थी इस बार तो सनसनी के नाम पर बकैती की गई है।
देश के लिए ये समय सच में बहुत क्रिटिकल आया है भारत अभी ऐसी स्थिति में है, जहां उसे पटरी से उतारने के लिए सारे तिकड़म भिड़ा दिए जाएंगे, यह काम चीन के साथ भी हुआ था। चीन को लोकतंत्र और लिबरल नहीं होने का फायदा मिल गया था।
भारत को बस लोकतंत्र और अंतर्निहित उदारता नुकसान न कराए, यही प्रार्थना रहे।
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं)