लेखक~सुभाषचंद्र
कपिल सिब्बल 50 साल के वकालती अनुभव के बाद भी सुप्रीम कोर्ट न जाकर बाहर ही निकाल रहे पीएम मोदी के विरूद्ध भड़ास
♂÷कल के लेख में मैंने Advocate CR Jaya Sukin की PIL का जिक्र किया था। जिसमें नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराने की मांग की गई थी, उसे सुप्रीम कोर्ट ने आज ख़ारिज कर दिया।
लगता है कि मनमोहन सरकार में केंद्रीय क़ानून मन्त्री रहे कपिल सिब्बल इसलिए ही खुद यह मामला सुप्रीम कोर्ट लेकर नहीं गए जबकि उन्हें तो 50 साल की वकालत का जबरदस्त अनुभव भी है, उन्होंने कितने ही केस जीते हों लेकिन इस केस में पता था की सुप्रीम कोर्ट में किरकिरी हो जाएगी और इसलिए सिब्बल ने बाजार में खड़े होकर मोदी पर भड़ांस निकालना ही ठीक समझा।
सिब्बल ने नए संसद भवन को गणतंत्र का प्रतीक बताया और राष्ट्रपति को गणतंत्र का मुखिया और यह सवाल किया कि बिना राष्ट्रपति द्वारा उद्घाटन कराए क्या सरकार गणतंत्र के मूल्यों का अवमूल्यन करना चाहती है ?
दूसरी तरफ अमित शाह ने जब कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपमान देश का अपमान है तो उस पर सिब्बल बिफर कर बोले कि मोदी देश नहीं है जिसकी निंदा न की जा सके।
समस्या यह है कि सिब्बल जरूरत से ज्यादा पढ़े लिखे हैं, पीएम मोदी देश नहीं है, यह सत्य है और मोदी ने अपने को ऐसा समझा भी नहीं मगर मोदी को मोदी के रूप में आपको हर समय अपमानित करने का अधिकार किसने दे दिया -जबकि आप लोग कहते थे “Indira is India and India is Indira”।
अब राष्ट्रपति की तो वकालत कर रहे हो और विपक्ष रोना पीटना मचा रहा है कि आदिवासियों का अपमान कर रही है मोदी सरकार क्योंकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू एक आदिवासी हैं।
तो भाई सिब्बल जी, पहले तो आप ही यह बता दीजिये कि क्या राष्ट्रपति पद पर चुनाव लड़ने के दौरान द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया था आपने, क्योंकि जिस समाजवादी पार्टी की मदद से आप राज्यसभा में बैठे है, उसने विरोध किया था द्रौपदी मुर्मू जी का।
सिब्बल जी अब आप यह बताइए कि –
-क्या इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए 24 अक्टूबर, 1975 को Parliament House Annexe का उद्घाटन नहीं किया था;
-क्या 15 अगस्त, 1987 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद भवन में नए पुस्तकालय का उद्घाटन नहीं किया था;
-वर्ष 2009 में असम विधानसभा भवन का शिलान्यास कांग्रेस के मुख्यमंत्री ने किया, राज्यपाल ने नहीं;
-मार्च, 2010 में तमिलनाडु विधानसभा के भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोनिया गांधी के साथ मिलकर क्यों किया, यह काम राज्यपाल से कराने की बात तो दूर, उन्हें आमंत्रित भीं नहीं किया गया;
- 3 दिसंबर, 2011 को मणिपुर विधानसभा भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने किया, राज्यपाल ने नहीं – आखिर किस हैसियत से सोनिया गांधी को ऐसा करने दिया गया न जबकि वह न तो उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर थी वह सिर्फ़ एक सांसद थी,और 2009 से 2011 सिब्बल उन्ही मनमोहन सरकार में केंद्रीय मंत्री थे;
-वर्ष 2018 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने नए विधानसभा भवन का उद्घाटन किया, राज्यपाल से नहीं कराया गया;
-फरवरी, 2019 में नीतीश कुमार ने विधानसभा के नए केंद्रीय कक्ष का उद्घाटन किया और राज्यपाल को आमंत्रित भी नहीं किया; और आज आप राष्ट्रपति के लिए तड़प रहे हैं;
-16 अगस्त, 2020 को छत्तीसगढ़ के नए विधानसभा भवन के भूमिपूजन में सांसद माँ-बेटे सोनिया गांधी और राहुल गांधी को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मुख्य अतिथि बनाया और उनका नाम शिलापट्ट पर भी लिखा – लेकिन राज्यपाल अनुसईया उईके जो एक आदिवासी थीं, उन्हें आमंत्रित भीं नहीं किया गया; तब यह आदिवासी प्रेम कहां गया था;
-इसी वर्ष 2023 में तेलंगाना के नए सचिवालय का उद्घाटन भी मुख्यमंत्री के सी राव ने किया और राज्यपाल को बुलाया तक नहीं।
राव , ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 5 बार राज्य की यात्रा के समय उनकी अगवानी करना तो दूर, उनसे मिले भी नहीं।
यह सब साबित करता है कि आप लोग मोदी से नफरत की आग में जल रहे हैं, क्योंकि आप लोगो को मोदी की भ्र्ष्टाचार विरोधी कठोर करवाई से डर लग रहा है।
(लेखक विधि मामलों के ज्ञाता हैं और यह उनके निजी विचार हैं)