लेखक: अमित सिंघल
अंग्रेजो ने साउथ अफ्रीका को उपनिवेश बना लिया था लेकिन भारतीय उपनिवेश की तुलना में एक बड़ा अंतर था।
अंग्रेजो ने भारत को वित्तीय और संसाधनों का दोहन एवं अपने युद्धों के लिए सैनिक प्रदान करने के लिए किया था।
जबकि दक्षिण अफ्रीका (साथ ही ज़िम्बाब्वे एवं नामीबिया) का प्रयोग अपने लोगो को बसाने के लिए किया था। जिसे settler colonialism कहा जाता है।
Settler colonialism (अधिवासी उपनिवेशवाद) में विदेशी औपनिवेशिक शक्तियां स्थानीय जनसँख्या को विस्थापित करके भूमि पर स्थायी निवास स्थापित करती है, तथा संसाधनों और शासन पर नियंत्रण स्थापित कर लेती है।
वर्ष 1913 में साउथ अफ्रीका में अंग्रेज मूलनिवासी भूमि कानून (Natives Land Act 1913) लाए जिसके अंतर्गत इस देश की 87 प्रतिशत भूमि यूरोपियन को दे दी गयी जो उस समय वहां की जनसँख्या का 20 प्रतिशत थे। वहां के 80 प्रतिशत अफ्रीकन लोगो को बाकी 13 प्रतिशत भूमि से संतोष करना पड़ा।
भूमि के इसी अन्यायपूर्ण वितरण ने आगे चलकर रंगभेद की नीति को जन्म दिया। अर्थात, अफ्रीकन के लिए अलग कानून, अंग्रेजो के लिए अलग कानून। इसी नीति ने दोहरी अर्थव्यवस्था को भी जन्म दिया।
जब यह देश स्वतंत्र हुए या जब साउथ अफ्रीका ने वर्ष 1994 में रंगभेद नीति को समाप्त किया, तो इन देशो के नेताओ ने भूमि के न्यायपूर्ण वितरण का वादा किया।
सभी के साथ (अर्थात व्हाइट एवं ब्लैक निवासियों) “न्याय” के लिए एक नीति बनाई जिसे इच्छुक क्रेता, इच्छुक विक्रेता (willing buyer, willing seller) का नाम दिया गया। आशा यह थी कि व्हाइट लोग, जिनके पास अधिकतर – बहुत अधिक – भूमि थी, वे अपनी भूमि स्वैच्छिक रूप से राष्ट्र को यथोचित दाम पर बेच देंगे, जिसे फिर राष्ट्र ब्लैक लोगो में वितरित कर देगा।
हुआ यह कि कुछ व्हाइट लोग भूमि बेचने को तैयार हुए, लेकिन उन लोगो ने बाजार भाव या उससे अधिक कीमत की मांग की। अतः ऐसे कोई डील सम्भव नहीं हुई।
तभी रोबर्ट मुगाबे ने ज़िम्बाब्वे में वर्ष 2000 से ब्लैक निवासियों को व्हाइट स्वामित्व वाली भूमि जबरन, बिना किसी मुआवजा के, दिलवा दी। तभी ब्रिटेन एवं अमेरिका ने ज़िम्बाब्वे पर आर्थिक प्रतिबन्ध (सैंक्शंस) लगा रखा है। यद्यपि मुगाबे का तथाकथित आर्थिक कुप्रबंध, भीषण भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देना, चुनावी धांधली द्वारा सत्ता में बने रहना इत्यादि का भी ज़िम्बाब्वे की आज की स्थिति के लिए ज़िम्मेवार है।
इसके विपरीत साउथ अफ्रीका को लगातार तीन प्रबुद्ध राष्ट्रपति मिले – नेल्सन मंडेला, थाबो म्बेकी, कगलेमा मोतलांथे। इनकी नीतियों के कारण साउथ अफ्रीका ने तीव्र आर्थिक प्रगति की, साथ ही 2010 में विश्व कप फुटबाल का आयोजन भी किया। फिर भी वे भूमि का वितरण ब्लैक नागरिको में नहीं कर पाए।
लेकिन जैकब जुमा के भीषण भ्रष्टाचार ने लुटिया डुबो दी। स्वयं साउथ अफ्रीकन सरकार की न्यायिक जांच ने जुमा को स्टेट कैप्चर का दोषी पाया। जुमा को सजा हुई, लेकिन किसी ना किसी बहाने से जेल के बाहर है।
इस समय के राष्ट्रपति के निजी घर के सोफे से 4 लाख डॉलर चोरी हो गए थे (तभी इसका पता चला कि डॉलर वहां दबे थे; यह सत्य घटना रुचिकर है, लेकिन अधिक नहीं लिखा सकता; आप नेट पर Phala Phala Robbery टाइप करके अधिक जानकारी ले सकते है)।
इस आर्थिक एवं भूमि विषमता का परिणाम यह निकला कि आज साउथ अफ्रीका में विश्व में सबसे अधिक असमानता है।
वहां की राजधानी प्रिटोरिया, सबसे बड़े शहर जोहानेसबर्ग एवं अन्य शहरो में दिन-दहाड़े लूट लेते है। ट्रैफिक लाइट पर खड़ी कार के ड्राइवर को बन्दूक दिखाकर लैपटॉप, बैग, पर्स, फोन छीन लेते है। संयुक्त राष्ट्र का ऑफिस एक ऐसी बिल्डिंग में जिसमे जेल जैसी सुरक्षा व्यवस्था है। निजी घरो को जेल जैसी सुरक्षा बनाए रखनी होती होती है। गेस्ट को कॉलोनी में घुसने के लिए मेजबान से कोड लेना पड़ता है, जिसे एंटर करके पहले गेट से प्रवेश करते है। अगले गेट पर निजी सुरक्षाकर्मी जांच करता है, मेजबान से फोन पर कन्फर्म करता है। बाउंडरी वाल पर बिजली के नंगे तारो की बाड़ लगी होती है। राजधानी में पंचतारा होटल वाले कहते है कि सांयः 6 बजे के बाद टैक्सी लेकर जाए, चाहे आधा किलोमीटर ही जाना हो।
इस समय साउथ अफ्रीका में लगभग 8 प्रतिशत व्हाइट लोग बचे है। लेकिन उनके पास अभी भी 72 प्रतिशत भूमि है। तभी राष्ट्रपति रामाफोजा ने कानून बनाया कि सरकार राष्ट्रीय हित में भूमि का अधिग्रहण बिना मुआवजा के कर सकती है।
इसी कानून को लेकर उन्हें बड़के नेता के अनावश्यक रोष का सामना करना पड़ गया है।
एक बार सोचिए कि अगर अंग्रेज भारत में भी settler colonialism स्थापित कर देते, तो क्या होता?
साउथ अफ्रीका की स्थिति को संवेदनशीलता से देखने की आवश्यकता है।

(लेखक रिटायर्ड IRS अफ़सर हैं और यह उनके निजी विचार हैं)