★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
क्रांतिकारियों की मदद करने के शक में 22 जमींदारों को भी ब्रिटिश हुकूमत नें गोलियों से भुनवा दिया
मथुरा के भरतपुर नरेश सूरजमल की हवेली में 70 ठाकुरों को दी गयी थी फाँसी, आज खण्डहर बन चुकी हवेली अपने जीर्णोद्धार व बलिदान स्थल बनाये जाने का आज़ादी के समय से कर रही इंतजार
राजनीतिक दलों के तमाम लोग स्वतंत्रता के बाद से सांसद,विधायक मन्त्री बनते रहे किन्तु हवेली को बलिदान स्थल बनाने के लिए नही मिल पाया उनको वक़्त
♂÷उत्तरप्रदेश का मथुरा सिर्फ़ योगेश्वर,रणछोड़,रासरसैया व विश्व को गीता का ज्ञान देनें वाले देवकीनंदन भगवान श्रीकृष्ण के जन्मभूमि के रूप में भले ही संसार भर में ख्याति हो किन्तु इन्हीं मथुरावासियों नें वर्ष 1857 में अंग्रेजी दासता से माँ भारती की मुक्ति के लिए ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ क्रांति का उद्घोष कर दिया था।
जिसके परिणाम स्वरूप 70 ठाकुरों को धोखे से बुलाकर ब्रिटिश हुकूमत नें सामूहिक रूप से दे दी थी फाँसी।
इतिहास के पृष्ठों को पलटने पर 1857 की क्रांति की झलक आज भी मथुरा में देखने को मिल जाएगी।यहीं से शुरू हुआ था सन् 1857 का विद्रोह और यहां के 70 ठाकुरों ने दिया था सर्वोच्च बलिदान।
मथुरा की ऱज़ से उठी स्वतंत्रता समर की अग्नि ने पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया और परिणामस्वरूप दशकों बाद ही सही किन्तु भारत से अंग्रजों को भागना ही पड़ा।
अडींग की मिट्टी में आज भी ब्रजभूमि के रणबांकुरों की शौर्यगाथा के लहू की तपिश महसूस की जाती है।
अंग्रेजी हुकूमत ने ब्रज क्षेत्र में 1857 की क्रांति को कुचलने के लिए 70 ठाकुर ग्रामीणों को फांसी पर चढ़ा दिया था। महीनों तक ग्रामीणों पर बर्बर जुल्म ढाए गए।आज जो हवेली खंडहर के रूप में मौजूद है उसी भरतपुर नरेश सूरजमल की हवेली में हंसते-हंसते मौत को गले लगाने वाले आजादी के दीवानों की आज भी वह साक्षी बनी हुई है। मथुरा गोवर्धन मार्ग पर बसा गांव अडींग आजादी के शिल्पकारों की भूमि रहा है यहां के लोगों का स्वाधीनता आंदोलन में दिए गए शौर्यपूर्ण योगदान इतिहास के पन्नों पर अमिट है। अडींग में आजादी के आंदोलनों की बढ़ती संख्या के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने यहां पुलिस चौकी की स्थापना कर दी थी। 1857 के गदर के समय एक सिपाही अख्तियार ने बैरकपुर छावनी में कंपनी कमांडर को गोली से उड़ा दिया। इतिहास खंगालें तो बैरकपुर छावनी से मेरठ होते हुए देश में जगह जगह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की दिनोंदिन तेज़ होती ललकार सुनाई देने लगी थी।
मथुरा में भी क्रांति की लौ भभक उठी आज़ादी के मतवालों के रक्त उबलने लगे।
स्थानीय निवासी ठाकुर पदम् सिंह बताते है कि 30 मई 1857 को घटी इस घटना के बाद इस वीर ने अपने साथियों के साथ आगरा जा रहे राजकोष के साढ़े चार लाख रूपए को लूट लिया। तांबे के सिक्के और आभूषण छोड़ दिए गए।सरकारी राजकोष लूटने के लिए शहरवासी व विद्रोह करने वाले सिपाही सरकारी सुरक्षा कर्मियों से दिन भर जूझते रहे। इन फैक्ट्री विद्रोही सिपाहियों ने जेल तोड़कर क्रांतिकारियों को निकाला और दिल्ली की ओर कूच कर गए।
इतिहास बताता है कि 31 मई को इन लोगों ने कोसी पुलिस स्टेशन पर पुलिस बंगले में जमकर लूटपाट की। उन्होंने अंग्रेजों की मुखबिरी के संदेह में हाथरस के राजा गोविंद सिंह को भी वृंदावन स्थित कोसी घाट पर मौत के घाट उतार दिया।
विद्रोह की तीव्र होती जा रही ललकार के कारण तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर जर्नल आगरा ने विद्रोह को दबाने के लिए विशेष सैनिक टुकड़ी बुलाई। इन लोगों ने सराय में 22 जमीदारों को विद्रोहियों व क्रांतिकारियों की मदद करने में गोलियों से छातियां तोड़ डाली। अडींग के क्रांतिकारियों ने भी खजाना लूटने का प्रयास किया, यहां के 70 ठाकुर जाति के लोगों को पकड़कर बाद में अंग्रेजों ने ऐतिहासिक किले पर फांसी दे दी थी।
स्थानीय निवासी व मथुरा वासियों को दशकों से पीड़ा है की अब तक तमाम राजनीतिक दलों से बहुत लोग सांसद विधायक व मन्त्री बन चुके हैं किंतु मांग के बावजूद भी खण्डहर में बदलते जा रहे उस बलिदान स्थल हवेली को शहीद स्मारक बनवाने की कोशिश किसी ने भी नही की है।
वहीँ अब यहां स्थानीय लोग सरकार से शहीद स्मारक बनवाने की मांग की है जिससे कि वर्तमान व आने वाली पीढियां अपने पुरखों के द्वारा देश को आज़ाद कराने में दिए गए सर्वोच्च बलिदान को याद रख सके।