लेखक~सुभाषचंद्र
♂÷कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीवी नरसिम्हा की बेंच ने ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी के खिलाफ सुनवाई से हटा कर एक तरह उनका अपमान ही किया है और वह भी मीडिया को दिए गए एक कथित इंटरव्यू की वजह से जिसमें उन्होंने अभिषेक के बारे में कथित तौर पर कुछ टिप्पणी की थीं।
पहले सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से गंगोपाध्याय के इंटरव्यू पर रिपोर्ट मांगी थी और गत दिन यह आदेश पारित किया है।
इस आदेश के तुरंत बाद जस्टिस गंगोपाध्याय ने “सुप्रीम कोर्ट के Secretary General को निर्देश दिया था कि आज रात 12.15 बजे तक वे उनके कथित इंटरव्यू की Official Translation और हाई कोर्ट के Registrar General की सुप्रीम कोर्ट को भेजी गई रिपोर्ट, दोनों की Original copy उनके चैम्बर में प्रस्तुत करें जिसकी वह प्रतीक्षा करेंगे,इन दोनों दस्तावेजों से पारदर्शिता लाने में मदद होगी”
जस्टिस गंगोपाध्याय के निर्देशों से जाहिर है कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों से बहुत ज्यादा आहत हैं और उन्हें वह बर्दाश्त नहीं कर पा रहे।
केवल इंटरव्यू में अभिषेक के बारे में कुछ देना कोर्ट में उस पर सुनवाई करते हुए कोई ऐसा कारण नहीं होना चाहिए कि जज को हटा कर उसे अपमानित किया जाए। कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के एक जज पर आरोप लगा था कि उन्होंने ऐसे केस की सुनवाई कर दी जिसमें उनका अपना वकील पुत्र एक पक्ष का वकील था और यह एक गंभीर दुराचरण था।
पहले सुप्रीम कोर्ट ने 13 अप्रैल के हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई थी जिसमें अभिषेक बनर्जी के खिलाफ शिक्षक भर्ती घोटाले में CBI / ED की जांच के लिए कहा गया था।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश अभिषेक बनर्जी की उनके खिलाफ जांच रोकने की याचिका पर दिए गए हैं जिसमें उसने कहा था कि जो लोग CBI /ED की गिरफ्त में हैं उन पर उसका नाम लेने के लिए दबाव डाला जा रहा है।
इसके बाद ही जस्टिस गंगोपाध्याय का कथित इंटरव्यू सामने आया परंतु यह कहीं नहीं बताया गया कि उन्होंने अभिषेक बनर्जी के बारे में ऐसा क्या कह दिया कि सुप्रीम कोर्ट उखड़ गया और पिछले दिन सुनवाई से ही हटा दिया और सच्चाई यह है कि इस आदेश से अभिषेक बनर्जी को सुप्रीम कोर्ट का परोक्ष समर्थन मिल गया।
देश की उच्चतम न्यायालय में बैठ कर न्यायाधीश कई बार अपना संयम खो कर असंमयित भाषा बोलते देखे गए हैं जिससे समाज का सौहार्द ही खतरे में पड़ जाता है। वर्तमान में CJI डीवाई चंद्रचूड़ की महिला पुरुष की परिभाषा ने ही बखेड़ा खड़ा किया हुआ है और वह किसी भी मीडिया चैनल को दिए इंटरव्यू से भी खतरनाक है।
कुछ दिन पहले 29 मार्च को Hate Speech पर सुनवाई करते हुए जस्टिस केएम जोसेफ ने पेरियार का नाम लेते हुए ब्राह्मणों की हत्या का समर्थन कर दिया था और वह भी किसी भी इंटरव्यू से खतरनाक था।
इसके अलावा विगत में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पारदीवाला ने जिस तरह नूपुर शर्मा को बेइज़्ज़त किया था वह अपने आप में सबसे बड़ी Hate Speech थी जिससे राजस्थान राज्य के उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या को समर्थन मिल गया था।
गत दिनों एक हाई कोर्ट के जज ने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ आवाज़ उठाई है तो कल को और भी उठा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के जज भी अनेक बार कई सभाओं में भाषण देते देखे जा सकते हैं जहां मीडिया भी उपस्थित होता है, ऐसे में किसी जज ने यदि एक इंटरव्यू दे दिया तो उसे क्या Freedom of Speech का अधिकार नहीं है ,आप दूसरों पर पाबंदी लगा सकते हैं बशर्ते वो खुद पर भी लगाई जाएं।
अब अंतिम रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस AS Bopanna और जस्टिस Hima Kohli ने जस्टिस गंगोपाध्याय के निर्देश पर Improper and against Judicial Discipline के खिलाफ बता कर रोक लगा दी है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं, सुभाष चन्द्र विधिक मामलों के जानकार हैं)