★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
CJI डीवाई चन्द्रचूड़ की अगुवाई वाली 5 सदस्यीय पीठ ने कहा इस मामलें में गवर्नर नें एकनाथ शिन्दे को सरकार बनाने के लिए निमंत्रित कर उचित किया
सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसले में कहा राज्यपाल का पहले फ़्लोर टेस्ट के लिए कहना और स्पीकर का शिन्दे गुट द्वारा मनोनीत व्हिप चीफ़ को नियुक्त का निर्णय ग़लत था
कोर्ट ने कहा राजनीतिक पार्टी के अंदरूनी विवाद के निपटारे के लिए फ़्लोर टेस्ट का इस्तेमाल नही किया जा सकता,गवर्नर को ऐसा कोई अधिकार नही है कि वह इसमें पक्षकार बने
सुप्रीम कोर्ट नें स्पीकर के ऊपर 16 विधायकों की अयोग्यता पर फैसला लेने के लिए छोड़ा
♂÷चूँकि उद्धव ठाकरे ने बगैर फ़्लोर टेस्ट का सामना किये ही स्वेच्छा से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था ऐसे में गवर्नर ने एकनाथ शिन्दे को सरकार बनाने के लिए निमंत्रित कर उचित किया था।
ऐसे में वह उद्धव ठाकरे की सरकार बहाली का ऑर्डर पास नही कर सकती।
आज गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ की अगुवाई वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ के इस बहुप्रतीक्षित फ़ैसले से पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के वाया सुप्रीम कोर्ट के जरिये पुनः अपनी सरकार बहाली की उम्मीद जहाँ छन से टूट गयी तो वहीं शिवसेना से 40 विधायकों को लेकर बीजेपी के साथ मिलकर सीएम बने एकनाथ शिन्दे,उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के लिए बल्ले बल्ले करने का दिवस साबित हुआ।
विदित हो कि शिन्दे सरकार का कार्यकाल अगले वर्ष तक समाप्त होने वाला है और अब फ़िलहाल उनकी सरकार पर कोई ख़तरा नही दिखता।

पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाने पर अदालत ने गवर्नर,सीएम एकनाथ शिन्दे,स्पीकर को इसमें नोटिस जारी कर पक्षकार बनाया था।
जिस पर इन पक्षों की तरफ़ से देश के दिग्गज वकीलों ने कई तारीखों पर अपनी अपनी दलीलें रखी थी,जिस पर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड़ द्वारा कुछ माह पूर्व इस मामलें को अपनी अगुवाई में 5 सदस्यीय संविधान पीठ गठित कर सुनवाई के लिए भेजा था।
आज गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से अपना फैसला सुनाया। पीठ में न्यायाधीश एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल रहे।उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि राज्यपाल का पहले फ्लोर टेस्ट के लिए कहना और स्पीकर का शिंदे गुट द्वारा मनोनीत व्हिप को नियुक्त करने का फैसला गलत था। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 16 विधायकों की अयोग्यता पर फैसला स्पीकर के ऊपर छोड़ दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि गोगावाले (शिंदे समूह द्वारा समर्थित) को शिवसेना पार्टी के व्हिप के रूप में नियुक्त करने का स्पीकर का निर्णय अनुचित था,कोर्ट ने कहा कि यह कहना कि पार्टी व्हिप विधायी दल नियुक्त करता है, इसका मतलब राजनीतिक दल के साथ उसकी गर्भनाल से काटकर अलग कर देने जैसा है। इसका अर्थ हुआ कि विधायकों का दल पार्टी से अलग हो सकता है, जो सही नहीं है।
अदालत ने कहा स्पीकर ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि दो व्यक्तियों प्रभु या गोगावले में कौन पार्टी द्वारा अधिकृत व्हिप जारी कर सकते हैं, स्पीकर को केवल राजनीतिक पार्टी द्वारा नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए।
एकनाथ शिंदे गुट के खुद को असली शिव सेना बताने को लेकर कोर्ट ने कहा कि अयोग्यता की तलवार लटकने के बाद खुद को मूल पार्टी कहना बचाव का आधार नहीं हो सकता है।
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के द्वारा सीएम उद्धव ठाकरे को फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाने पर भी कोर्ट ने प्रश्नचिह्न लगाए, पीठ ने कहा, “विपक्षी दलों ने कोई अविश्वास प्रस्ताव नहीं दिया, राज्यपाल के पास सरकार के विश्वास पर संदेह करने के लिए कोई ठोस वजह नहीं थी ऐसा भी संकेत नहीं था कि विधायक समर्थन वापस लेना चाहते थे।यह मान भी लें कि विधायक सरकार से बाहर निकलना चाहते थे, तो भी उन्होंने केवल एक गुट का गठन किया था।
संविधान पीठ ने आगे कहा राजनीतिक पार्टी के अंदरूनी विवाद के निपटारे के लिए फ्लोर टेस्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, राज्यपाल को ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वह इसमें पक्षकार बनें।
न्यायालय ने कहा, राज्यपाल ने शिवसेना के विधायकों के एक गुट के प्रस्ताव पर भरोसा करके यह नतीजा निकाल लिया कि उद्धव ठाकरे सरकार ने अधिकांश विधानसभा सदस्यों का समर्थन खो दिया है, विधायकों ने राज्यपाल से सुरक्षा को लेकर चिंता जताई लेकिन इससे सरकार के समर्थन पर कोई असर नहीं पड़ता।
राज्यपाल पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उनको पत्र पर भरोसा नहीं करना चाहिए था,पत्र में यह संकेत नहीं दिया गया था कि ठाकरे सरकार ने समर्थन खो दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि नेता देवेंद्र फडणवीस और 7 विधायक अविश्वास प्रस्ताव की मांग के लिए बढ़ सकते थे ऐसा करने से कोई रोक नहीं थी।
वहीं, अदालत ने उद्धव ठाकरे गुट की पूर्वस्थिति बहाल करने की मांग से इनकार कर दिया।
उच्चतम न्यायालय की गठित पीठ ने कहा, “पूर्व की स्थिति बहाल नहीं की जा सकती क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना किये बिना ही अपना इस्तीफा दे दिया था, ऐसे में राज्यपाल ने सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के समर्थन से एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई।
उधर इस फ़ैसले के आने के बाद से पक्ष व विपक्ष एक बार फ़िर एक दूसरे के ऊपर सियासी बयानबाजी के तीर छोड़ने में जुट गए हैं।