लेखक~डॉ.के. विक्रम राव
÷कल (18 जुलाई 2023) से इंदिरा गांधी से भी काफी ऊंचा कद नरेंद्र मोदी का हो गया है। सोनिया गांधी-नीत 26-दलीय “इंडिया” गठजोड़ ने 39-दलीय राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को सत्ता से अपदस्थ करने का प्रण किया है। पहले वाला नाम “संप्रग” (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) भाता था। छोटा, मीठा, रवादार ! वंदे भारत जैसी द्रुतगामी। अब कहलाएगा भाराविसग (भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन) लंबा, मालगाड़ीनुमा, खड़बड़ाता ! हालांकि 1977 में जिस जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी को हराया था उसमें केवल पांच पार्टियां थीं :जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी, लोक दल, सोशलिस्ट पार्टी और संस्था-कांग्रेस। क्या संयोग रहा कि गत लोक सभा चुनाव में राहुल गांधी अपने स्वर्गीय पिता राजीव गांधी के पारंपरिक अमेठी सीट से हार गए। ठीक जैसे 1977 में पड़ोसवाली रायबरेली सीट से दादी इंदिरा गांधी। यूं तो सोनिया-गठजोड़ का संक्षिप्तिकृत नाम बड़ा लुभावना है : “इंडिया” (INDIA)। मानो विरोधी सब विदेशी हों। मगर इस पांच-अक्षरीय गठजोड़ में अक्षर “डी” पर बड़ा भ्रम सर्जा था। कुछ ने कहा डेमोक्रेटिक है क्योंकि सोनिया-कांग्रेसी बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी है। फिर स्पष्टीकरण हुआ कि “डी” के मायने डेवलपमेंटल (विकासात्मक) है। मगर महत्वपूर्ण और अत्यंत रुचिकर शब्द आखिरीवाला है : “ए” (एलाइंस) इसको इत्तेहाद कहेंगे। उर्दू का नाम इस नवसृजित मोर्चा के बहुत माफिक बैठेगा, क्योंकि उर्दू में गठबंधन का इसका समानार्थी है। कांग्रेस के वोट बैंक को भाएगा भी। उद्धव ठाकरे की शिवसेना के दैनिक “सामना” के संपादक संजय राउत का मानते रहे कि भारत के मुसलमानों को मताधिकार से वंचित कर दिया जाए। संस्थापक बाल ठाकरे तो बढ़ती मुस्लिम आबादी के कारण सदैव चिंतित रहा करते थे। वे शरद पवार और दाऊद इब्राहिम की यारी की हमेशा चर्चा करते रहते थे।
इस इंडियन शब्द से मोदी-गठबंधन भरपूर लाभ उठा सकता है। बापू (महात्मा गांधी) के युग से इंडिया-बनाम-भारत का घर्षण होता रहा। नेहरू-कांग्रेस को गवर्नर जनरल माउंटबेटन और एडविना का अनुरागी बताया जाता रहा। यूं सोनिया तो निखालिस रोमन है। राहुल और प्रियंका यूरेशियन। तो ये लोग हैं जो अब “इंडिया” गठबंधन के नेता बनेंगे। बेंगलुरु की बैठक में बहुतेरों की भाषा भी अंग्रेजी थी। मापन्ना मलिकार्जुन खरगे इस सदी में प्रथम गैर-नेहरू वंश के पार्टी मुखिया बने। गत लोकसभा चुनाव में मुस्लिम-बहुल गुलबर्ग से हारकर पिछवाड़े से राज्यसभा में प्रवेश वे कर पाए थे। भाजपा के उमेश जाधव से वे पराजित हो गए थे। इक्यासी-वर्षीय खरगे कन्नड़भाषी हैं, उर्दू-मिश्रित हिंदी बोलने में प्रयासरत हैं। खुली सभा में उन्होंने गरजकर बता दिया कि कांग्रेस अब प्रधानमंत्री पद की दावेदार नहीं है। पता नहीं इसमें राहुल-प्रियंका की सहमति थी ? यूं भी नीतीश ने जब पटना में (23 जून 2023) गठबंधन की पहली बैठक रखी थी तो वे आस लगाये रहे कि प्रधानमंत्री के लायक वे सबसे अधिक माने जाएंगे। कम से कम संयोजक बना दिये जाएंगे। भले ही फिर से उनके संगी बने, किन्तु कभी शत्रु रहे, लालू प्रसाद यादव कहीं लंगडी न लगा दें। ऐसा लालू कर चुके हैं जब अखिलेश यादव के स्वर्गीय पिता मुलायम सिंह यादव एक रात तक मनोनीत प्रधानमंत्री रहे। भोर में लालू ने धोबी पाटा मारा। मुलायम रह गए। नतीजन सिंचाई के ओवरसीयर एच. डी. देवगौड़ा की लॉटरी खुल गई थी। कल की बैठक में गौड़ा की जनता दल (सेक्युलर) के नेता और पुत्र कुमारस्वामी आमंत्रित नहीं थे। पड़ोसी तेलंगाना के के. चंद्रशेखर राव की भारतीय राष्ट्र समिति तथा आंध्र के जगनमोहन रेड्डी की वाईएस आर कांग्रेस को नहीं बुलाया गया था। बहन कुमारी सुश्री मायावती को भी नहीं।
आशंका है कि एक आफत भी इसी सप्ताह आ सकती है। अगर सर्वोच्च न्यायालय ने राहुल गांधी के लोकसभा निर्वाचन को निरस्त करने वाले न्यायिक निर्णय पर रोक लगा दी तो। तब प्रधानमंत्री पद के दर्जनों दावेदारों में राहुल को मिलाकर एक और की बढ़ोतरी हो जाएगी। यूं भी नीतीश के अलावा ममता बनर्जी, शरद पवार, फारूक अब्दुल्ला, खरगे, मायावती आदि सब कमर कसे बैठे हैं। सीटी बजने की प्रतीक्षा है। अब पड़ताल करना होगा की जमानत पर रिहा हुए नेता लोग भी पीएम बन सकते हैं ? सजायाफ्ता लालू यादव स्वास्थ्य के कारण अब पीएम नहीं बनना चाहेंगे। हालांकि चारा चोरी के आरोप पर प्रायश्चित तो काफी वे कर चुके हैं। तुलनात्मक रूप से देखें कि पिछले गैरभाजपाई यूपीए सरकार में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने में माकपा के सरदार हरकिशन सिंह सुरजीत का बड़ा हाथ था। उनके मार्फत येचूरी सीताराम और प्रकाश करात तब बेताज के राजा थे दिल्ली के। इधर की उधर करते रहे। मगर प्रश्न है कि ममता बनर्जी अपने घोर शत्रु माकपा को कितना पनपने देंगी ? हाल ही के पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में उनकी तृणमूल कांग्रेस ने मार्क्सवादी कार्यकर्ताओं की लाशें बिछा दी थीं। हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा था।
फिलहाल इस वक्त मोदी-नीत राजग को सर्वाधिक लाभ है। सोनिया-कांग्रेस के संसदीय नेता और बंगाल पार्टी अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी अपनी हरकतों से उन्हें काफी फायदा पहुंचा रहे हैं। वे और ममता बनर्जी तेल तथा पानी जैसे हैं। कभी भी नहीं मिल सकते। लोकसभा में बंगाल की 42 सीटें हैं। इनमें ममता के पास 22 और सोनिया गांधी की केवल दो।
क्या संयोग है ? कल से आरंभ हो रहे संसद का मानसून सत्र भी एक रिहर्सल होगा इस नए सहयोग-मोर्चा का। गठबंधन सदन में कितना सौहार्द तथा समन्वय संजो पाएगा ? यह भी एक सूचक होगा। इसमें दिख जाएगा कि ये 26 दल इस सत्र में आपस में कितना सामीप्य स्थापित कर पाते हैं। समस्या आएगी केरल से जहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को माकपा शासन की पुलिस ने कैद कर लिया था। तनाव दोनों दलों में अभी भी बरकरार है।

÷लेखक IFWJ के नेशनल प्रेसिडेंट व वरिष्ठ पत्रकार/स्तम्भकार हैं÷