★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
{दुनियां की सबसे बड़ी तेल निर्यातक कम्पनी है सऊदी अरब की आरामको 70 लाख बैरल तेल करती है प्रतिदिन निर्यात,सऊदी-अमेरिका के हित है जुड़े}
(हमला करने वाले यमन के अंसारुल्लाह ने कहा कि भविष्य में और भी हमले किये जा सकते हैं सऊदी अरब पर)
{ट्रम्प ने कहा ये हमला दुनिया की अर्थव्यवस्था पर डालेगा नकारात्मक प्रभाव तो अमेरिकी सीनेटर लेडसी ग्राहम ने कहा अमेरिका करे ईरानी तेल प्रतिष्ठानों पर हमले}

♂÷शनिवार को सऊदी अरब की आरामको तेल उत्पादन कम्पनी पर यमन सेना के ड्रोन हमले के बाद अमेरिका और सऊदी अरब बौखला गए हैं और यमन ईरान और उनके द्वारा समर्थित अंसारुल्लाह आंदोलन को कड़े सबक सिखाने के लिए कोई बड़े निर्णय ले सकते हैं, जिससे कि आने वाले दिनों में इसकी तपिश पूरी दुनियां में महसूस की जाएगी।
विदित हो कि सऊदी अरब की तेल निर्यातक कम्पनी आरामको दुनिया की सबसे बड़ी तेल निर्यातक कंपनी है इसकी मालिकाना हैसियत सऊदी शाही परिवार की है। यहां पूरी दुनिया के तेल उत्पादन के दसवें हिस्से का कारोबार होता है। आरामको तेल कंपनी प्रतिदिन 1 करोड़ बीस लाख बैरल तेल का उत्पादन कर सकती है और इस समय वह 70 लाख बैरल तेल हर दिन निर्यात कर रही थी, जो संसार की किसी भी तेल कंपनी से अधिक है।

सऊदी अरब के लिए जबरदस्त आर्थिक झटका माना जा रहा है यमनी ड्रोन हमला क्योंकि वहां पर हुए ड्रोन हमलों ने यहां से हो रहे तेल उत्पादन को भारी नुकसान पहुंचाया है।
ब्लूमबर्ग ने सऊदी अरब के उच्च स्तरीय सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी कि आरामको कंपनी ने इस हमले के बाद अपना तेल उत्पादन आधा करते हुए दैनिक 5 मिलियन बैरल कर दिया है। हालांकि सऊदी प्रशासन की ओर से कहा जा रहा था कि तेल उत्पादन में कोई कमी नहीं होने दी जाएगी।
इस तेल कंपनी के साथ सऊदी अरब और अमेरिका के हित बहुत गहरे जुड़े हुए हैं। आरामको पर हुआ हमला अमेरिकी के आर्थिक हितों के लिए बहुत बड़ा झटका है। इस हमले की वजह से सऊदी और अमेरिका बौखला गए हैं। जिसकी वजह से पूरी दुनिया पर युद्ध के बादल मंडराने लगे हैं।
सऊदी अरब और अमेरिका इस हमले के लिए ईरान को जिम्मेदार मानते हैं।

ईरान की समाचार एजेन्सी इरना की रिपोर्ट के अनुसार अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने शनिवार की रात सऊदी क्राउन प्रिंस बिन सलमान से टेलीफ़ोन पर बात की। जिसमें उन्होंने कहा कि अमेरिका, सऊदी अरब की रक्षा के लिए तैयार है। ट्रंप ने आरामको पर यमनी सेना के ड्रोन हमले की ओर संकेत करते हुए कहा कि यह हमला अमरीका और दुनिया की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा।
अमरीका के कट्टरपंथी माने जाने वाले सीनेटर लेड्सी ग्राहम ने सऊदी अरब के तेल प्रतिष्ठानों पर यमनी के ड्रोन हमले पर बौखलाते हुए अमरीका से जवाबी कार्यवाही और ईरान के तेल प्रतिष्ठानों पर हमले की मांग कर डाली।
रुस की समाचार एजेन्सी रशा टुडे की रिपोर्ट के अनुसार अमरीका के डेमोक्रेट सीनेटर लेड्सी ग्राहम ने शनिवार को यमनी सेना और स्वयं सेवी बलों की ओर से पूर्वी सऊदी अरब के तेल प्रतिष्ठानों पर भीषण हमले के बाद कहा कि अमरीकी सरकार को भी ईरान के तेल प्रतिष्ठानों पर हमला कर देना चाहिए।
कुछ प्रमुख वजहों से सऊदी अरब और अमेरिका को ईरान पर शक है कि उसके मदद के बग़ैर ड्रोन हमला कत्तई सम्भव नही है।
आरामको पर हमला बहुत सटीक इंटेलिजेन्स जानकारी के आधार पर किया गया है। जो कि यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के बस में नहीं है। जब तक ईरान उसकी मदद ना करे।
दूसरी बात यह है कि बक़ैक़ और हरैस आयल फ़ील्ड यमन की राजधानी सनआ से लगभग 1300 किलोमीटर दूर हैं तो इन ड्रोन विमानों ने इतनी लंबी दूरी कैसे पूरी की और उनका सुराग़ नहीं लगाया जा सका, कैसे ड्रोन विमानों को इतनी लंबी दूरी तय करने का ईंधन मिला? क्या यह विमान सअदा से ही उड़े थे।
तीसरी बात यह है कि क्या सऊदी अरब के भीतर कुछ गुट मौजूद हैं जो यमन की मदद कर रहे हैं?
चौथी बात यह है कि हो सकता है यह ड्रोन विमान किसी समुद्री जहाज़ द्वारा फारस की खाड़ी के इलाक़े में पहुंचाया गया हो और सऊदी तट के क़रीब पहुंचने के बाद वहां से इन ड्रोन विमानों ने उड़ान भरी हो। जिसकी संभावना सबसे ज्यादा है।
पांचवीं बात यह है कि हमला करने वाले अंसारुल्लाह ने कहा है कि भविष्य में सऊदी अरब पर और हमले किए जा सकते हैं। यह बिना किसी बड़े देश की शह के नहीं हो सकता है।
सऊदी अमेरिकी तेल प्रतिष्ठानों पर एक वर्ष के दौरान लगातार हमले होने से सऊदी व अमेरिका बौखला से गए हैं।
एक साल से कम अवधि में आरामको कंपनी से संबंधित प्रतिष्ठानों पर यह तीसरा हमला है। पहला हमला मई महीने में हुआ जब सात ड्रोन विमानों ने पूरब पश्चिम तेल पाइपलाइन के पंपिंग प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया था। दूसरा हमला 17 अगस्त को शैबा आयल फ़ील्ड पर हुआ था जो रोज़ाना लगभग पांच लाख बैरल तेल पैदा करता है। तीसरा हमला शनिवार की सुबह हुआ जो अब तक का सबसे बड़ा हमला था।
यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन पर इस घातक हमले का शक है। यह उस प्रतिरोधक मोर्चे का हिस्सा है जिसका नेतृत्व ईरान कर रहा है । अंसारुल्लाह आंदोलन और ईरान में आपस में घनिष्ट संबंध हैं।
पिछले कुछ वर्षों में बेहद आक्रामक हो गए हैं सऊदी अरब और अमेरिका जबसे क्राउन प्रिंस के हाथ मे सऊदी अरब की सत्ता हाथ मे आयी है ।
सऊदी अरब कुछ बरस पहले तक मध्यपूर्व के सबसे सुरक्षित देशों में से एक था लेकिन जब से क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान के हाथ में सत्ता आई है तबसे सऊदी अरब की नीतियां बेहद आक्रामक हो गई हैं। सऊदी अरब ने सीरिया व बहरीन में हस्तक्षेप किया और यमन में सीधे तौर पर युद्ध में उतर गया है।
इसकी वजह से उसका पुराना शत्रु ईरान भी घबरा कर जंग की तैयारी में जुट गया है। अमेरिका सऊदी अरब का सबसे पुराना और विश्वस्त सहयोगी है। इस इलाके में उसके आर्थिक हित दांव पर लगे हुए हैं। ऐसे में जंग जैसी किसी भी स्थिति में सऊदी अरब के पक्ष में उतरना उसकी मजबूरी होगी। पिछले कुछ दिनों में ईरान और अमेरिका के बीच जो तनाव बढ़ता हुआ दिख रहा है। उसमें सऊदी अरब की भूमिका सबसे अहम है।
लेकिन मध्य पूर्व में अगर हालात ऐसे ही बिगड़ते रहे तो दुनिया को जंग की आग से कोई नहीं बचा सकता है।