लेखक~मुकेश सेठ
ये लेखक के निजी विचार है
♂÷प्रोनॉय रॉय और चिदंबरम के भ्रष्टचार की कहानी किसी फार्मूला हिंदी फिल्म से कम नहीं, गौर फरमाइयेगा ।
बात सन 2006 की है, एक ईमानदार और साहसी इनकम टैक्स आधिकारी संजय श्रीवास्तव को NDTV के एकाउंट्स की रूटीन जाँचपड़ताल करते करते प्रोनॉय रॉय और राधिका रॉय द्वारा की गयी करोडो की हेरा फेरी का पता चलता है। काफी दबाव के बावजूद संजय अपनी जाँच आगे बढ़ाते रहते हैं, कुछ और चौकाने वाले तथ्य सामने आते है। उधर बात वित्त मंत्री चिदंबरम तक पहुचा दी जाती है, साम दाम दंड भेद सभी नीतियों का प्रयोग होता है पर संजय बात नहीं मानते। अन्ततोगत्वा वो सस्पेंड कर दिए जाते है, चार्ज शीट होती है, एक महिला सहकर्मी (जिसका पति NDTV का कर्मचारी है) द्वारा उन पर रेप का जघन्य आरोप लगाया जाता है। यहाँ तक संजय को पागल घोषित करने की तैय्यारी भी होती है और ये सब चिदंबरम के आदेश पर होता है ।
उधर संजय को भी एक साहसी पत्रकार-ऍस गुरुमूर्ति का साथ मिलता है। वह इस मामले में न्यायलय की शरण में जाते है , अन्य स्रोतों से भी जाँच आगे बढती है। 150 करोड़ डॉलर के विदेशी धन को प्रोनॉय रॉय और चिदंबरम द्वारा मिलकर 33 फर्जी कंपनियों की मार्फ़त सफ़ेद करने का मामला सामने आता है। लेकिन होता हवाता कुछ नहीं क्योकि सोनिया/मनमोहन जी की ईमानदार सरकार थी, बागो में बहार ही बहार थी, सब मिलबांट कर खा पी रहे थे लूटखसोट रहे थे। देश की जनता चुपचाप देख रही थी ।
लेकिन तब तक मई 2014 आ जाता है , गहरी कालिमा के बीच सूर्य का उदय होता है, रुकी जाँच पुनः आगे बढती है, कोर्ट के आदेश होते है और सीबीआई जाँच अपने हाथ में ले लेती है। अँधेरा पूरी तरह से छट जाता है ।
अब चिदम्बरम प्रोनॉय रॉय आदि के खातो की जाँच मुकम्मल हो चुकी है, अन्य सुरागो के लिए छापे पड़ रहे है तो उधर भ्रष्टचारियों का समूह भी एकजुट होकर आखिरी लडाई की तैय्यारी कर रहा है।
अब तो फिल्म की आखिरी दो रीले ही बाकी है घटनाचक्र काफी तेजी गति से घूम रहा है लेकिन विजय तो सत्य की ही होगी ये तय है।