यह 27 अगस्त, 2017 की पोस्ट है जो आज ज्यादा समीचीन है, सम्यक भी| इसीलिए पेश है
【खवातीन की जंग चालू है】
लेखक~डॉ.के. विक्रम राव
♂हम श्रमजीवियों की शब्दावली में एक सुभाषित है, ”अभी तो यह अंगड़ाई है।“ अर्थत: मुस्लिम महिलाओं की आगे और लड़ाई हैं। अदालते आलिया ने तो इन्कलाब के लिए बस बिस्मिल्लाह कहा है। तहरीक में तेजी आनी बाकी है। झटके में तलाक कह देना, हलाला बनाये रखना, चार बेगमें पालना, हरम को बढ़ाना, उस अभागन का गुजारा भत्ता मारदेना (शाहबानो वाला), कोख को जनने की मशीन बना डालना, बुर्के की घुटन और चाहारदीवारी की घबराहट का खात्मा करने की जंग का बिगुल बज उठा है। बस आंचल को लाल रंगकर परचम लहराने की प्रतीक्षा है।
हिन्दु नारियों का ”सन सत्तावन“ तो छह दशक पूर्व (1957) आ गया था जब निजी कानून में सुधार प्रारंभ हुआ था। मगर प्रगतिशील मसौदा हिन्दू कोड बिल कट्टर धार्मिकों के विरोध से टुकड़ों में पेश हुआ। प्रतिगामी सनातनियों ने इस जनवादी प्रस्ताव का हलाल कर डाला जबकि आजाद देशवासी झटका चाहते थे। तब बहुपत्नी प्रथा गैरकानूनी बन गई। जवाहरलाल नेहरू ने जो चन्द नेक काम किये उनमें खास था हिन्दु विवाह प्रणाली सुधरे। अन्याय खत्म हो। हालांकि नेहरू ने दुखी होकर लन्दन के सोशलिस्ट दैनिक “गार्जियन” की संवाददाता ताया जेंकिंस से कहा था कि वह “अपनी मुस्लिम बहनों हेतु सुधार नही ला पाये”। उस वक्त ही सन्नत और शरियत पर निर्मित इस्लामी पाकिस्तान तीन तलाक को दफना चुका था। सोशलिस्ट अलजीरिया के अहमद बेनबेल्ला भी तुर्की वाली सेक्युलर राह पर चल निकले थे।
अतः भारतीय मुसलमान इतना नोट कर लें कि सोशलिस्ट सेक्युलर गणराज्य का संविधान अब मजहब के नामपर विषमता और शोषण बर्दाष्त कतई नहीं करेगा। सुप्रीम कोर्ट का संकल्प स्पष्ट है। बीस करोड़ की आबादी वाले मुसलमान अब दूसरे नम्बर पर बहुसंख्यक बन गये हैं। इस्लामी पाकिस्तान से कहीं अधिक मुसलमान अब हिन्दुबहुल भारत के बाशिन्दे हैं। केवल पारसी, जैन, बौद्ध आदि ही अक्लियत हैं। सरदार मनमोहन सिंह का जडमतिपूर्ण बयान कि ”भारत के संसाधनों पर मुसलमानों का प्रथम हक है“ मात्र वोटबैंक लूटनेवाला जरिया था। वोटरों ने तिरस्कृत कर दिया है। बजाय मिल्लत की प्रगति के दस वर्षों तक प्रधानमंत्री रहे सरदार जी केवल वोटबैंक की शाखाएं बढ़ाते रहे। अपनी मातृभूमि में ही हिन्दु शोषित हो गये। नतीजा नरेन्द्र दामोदरदास मोदी की बम्पर विजय है। अब आगे देश का क्या होगा ? सोनिया गाँधी के हाथ से सत्ता की रास तो जाती रही।
इस दौर में हिन्दु नारियों की प्रगति पर नजर डालें। उनका संघर्ष मन्द पड़ा रहा। कुछ पुरूष मनुस्मृति की हिमायत करते दिखे। इसमें अर्धांगिनियों को आधा ही स्थान दिया जाता रहा।
अब इन पुरूषों से पूछे कि मनु ने लिखा था कि मदिरापान करनेवाले की जीभ काट लेनी चाहिए तो इस नियम को ये हिन्दु पुरूष स्वीकारेंगे ? शराब पर पाबन्दी तो पैगंबर ने भी आयद की थी। तब समूची उर्दू शायरी खत्म हो जायेगी।
मनुवादी हिन्दू समाज में और भी अन्याय हैं। मसलन अफीम खिलाकर विधवा को चिता पर जबरन चढ़ा देना और सती बता कर महिमा मंडित करना। मृतका की सम्पति हथियाने हेतु कुटुम्बजन की साजिश करना। इसीलिए हिन्दू जगत अब अवतार पुरूष दूसरे दयाननन्द की बाट जोह रहा है।
तुलनात्मक तौर पर मुस्लिम समाज का अधिक खुलना और उदारवादी होना भारत के हित में है। कूरियन जोसेफ तथा रोहिन्टन नारीमन सरीखे आगेदेखू जजों की तारीफ करनी होगी कि मुस्लिम समाज में नरनारी की गैरबराबरी समाप्त करने की दिशा में तीन तलाक को अवैध करार दिया। कानून द्वारा क्रान्ति का उन्होंने उद्घोष किया है। अब पत्थर की लकीर नहीं, विवेकपूर्ण नीतियां समाज की यात्रा तय करेंगी। अकीदा अब अफीम जैसा नहीं होगा। दाढ़ी-टोपी अलगाववाद के निशान कहलायेंगे।
मगर तलाक के खात्मे के साथ आगे भी जनपक्षीय कदम उठाने होंगे। महजबीन बानो (अदाकारा मीना कुमारी) ने कहा था ”मेहर के साथ शबाब भी तो लौटाओ।“ क्या जवाब है तलाकपसन्द कठमुल्लों के पास ?
याद कीजिए अधेड निराश्रिता शाहबानो को महज ढाइ सौ रूपयों का गुजाराभत्ता रोकने के लिए सारे मर्द जमा हो गये थे। सर्वोच्च न्यायालय में हार गये तो उनलोगों ने कमजोर, नौसिखिया प्रधानमंत्री पर वोट की दहशत बनाकर कानूनी फैसला बदलवा ही डाला।
शाहबानो भले ही शिकस्त खा गई, मगर उसकी तलाकविरोधी जंग से इतिहास का नया अध्याय खुल गया है। तारीख अंगडाई ले रही है। मेहनतकशों ने लड़ाई से अपनी जंजीर तोड़ी, अब मुस्लिम महिलाएं भी संघर्ष द्वारा अपनी बेड़ियों को काटेंगी। कामातुरता पर से मजहबी आवरण फाड़कर, शौहरों द्वारा पहनाई हथकड़ियाँ तोड़कर। जंग अभी बाकी है मगर फतेह तय है।
÷लेखक वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार और आईएफडब्ल्यूजे के नेशनल प्रेसीडेंट हैं÷