★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
{एक महीने से थे कोरोना से संक्रमित,चंडीगढ़ के PGIMER में चल रहा था इलाज़, ऑक्सीजन लेबल गिरने हुआ निधन,पीएम मोदी ने कहा भारत ने महान खिलाड़ी खो दिया}
[अंतिम संस्कार के दौरान राज्यपाल, केंद्रीय खेलमंत्री रिजूजू, हरियाणा के खेलमंत्री संदीप सिंह समेत अन्य लोग रहे मौजूद]
(पाकिस्तान बनने के बाद वह भारत आये थे रास्ते मे उनके माता पिता की हत्या कर दी गयी थी,दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में भी दिन गुजारने वाले मिल्खा सिंह ने जिंदगी में किया बहुत संघर्ष)
♂÷भारत के महान धावक मिल्खा सिंह का अंतिम संस्कार शनिवार को चंडीगढ़ के मटका चौक स्थित श्मशान घाट में किया गया. मिल्खा सिंह का लगभग एक महीने तक कोरोना संक्रमण से जूझने के बाद शनिवार को चंडीगढ़ के पीजीआईएमईआर में निधन हो गया. वह 91 वर्ष के थे. मिल्खा सिंह को अंतिम विदाई देने के लिए केंद्रीय खेल मंत्री किरेन रिजिजू, पंजाब के राज्यपाल वीपी सिंह और हरियाणा के खेल मंत्री संदीप सिंह सहित कई लोग मौजूद रहे.
सिंह की हालत शाम से ही खराब थी और बुखार के साथ ऑक्सीजन भी कम हो गई थी. वह यहां पीजीआईएमईआर के आईसीयू में भर्ती थे. उन्हें पिछले महीने कोरोना हुआ था और बुधवार को उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई थी. उन्हें जनरल आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया था. गुरूवार की शाम से पहले उनकी हालत स्थिर हो गई थी. उन्होंने अस्पताल में भर्ती होने से पहले पीटीआई से आखिरी बातचीत में कहा था, ‘चिंता मत करो. मैं ठीक हूं. मैं हैरान हूं कि कोरोना कैसे हो गया. उम्मीद है कि जल्दी अच्छा हो जाऊंगा.’
पीएम मोदी ने जताया शोक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के महान धावक मिल्खा सिंह के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि भारत ने ऐसा महान खिलाड़ी खो दिया जिनके जीवन से उदीयमान खिलाड़ियों को प्रेरणा मिलती रहेगी. मोदी ने ट्वीट किया, ‘मिल्खा सिंह जी के निधन से हमने एक महान खिलाड़ी को खो दिया जिनका असंख्य भारतीयों के ह्रदय में विशेष स्थान था. अपने प्रेरक व्यक्तित्व से वे लाखों के चहेते थे. मैं उनके निधन से आहत हूं.’ उन्होंने आगे लिखा, ‘मैंने कुछ दिन पहले ही श्री मिल्खा सिंह जी से बात की थी. मुझे नहीं पता था कि यह हमारी आखिरी बात होगी. उनके जीवन से कई उदीयमान खिलाड़ियों को प्रेरणा मिलेगी. उनके परिवार और दुनिया भर में उनके प्रशंसकों को मेरी संवेदनायें.’
स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े खिलाड़ियों में से एक मिल्खा को जिंदगी ने काफी जख्म दिए, लेकिन उन्होंने अपने खेल के रास्ते में उन्हें रोड़ा नहीं बनने दिया. विभाजन के दौरान उनके माता-पिता की हत्या हो गई. वह दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में छोटे-मोटे अपराध करके गुजारा करते थे और जेल भी गए. इसके अलावा सेना में दाखिल होने के तीन प्रयास नाकाम रहे. यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि इस पृष्ठभूमि से निकलकर कोई ‘फ्लाइंग सिख’ बन सकता है. उन्होंने हालात को अपने पर हावी नहीं होने दिया. उनके लिए ट्रैक एक मंदिर के उस आसन की तरह था जिस पर देवता विराजमान होते हैं. दौड़ना उनके लिए ईश्वर और प्रेम दोनों था. उनके जीवन की कहानी भयावह भी हो सकती थी, लेकिन अपने खेल के दम पर उन्होंने इसे परीकथा में बदल दिया.
पदकों की बात करें, तो मिल्खा सिंह एशियाई खेलों में चार स्वर्ण और 1958 राष्ट्रमंडल खेलों में भी पीला तमगा जीता. इसके बावजूद उनके कैरियर की सबसे बड़ी उपलब्धि वह दौड़ थी जिसे वह हार गए. रोम ओलंपिक 1960 के 400 मीटर फाइनल में वह चौथे स्थान पर रहे. उनकी टाइमिंग 38 साल तक राष्ट्रीय रिकॉर्ड रही. उन्हें 1959 में पद्मश्री से नवाजा गया था. वह राष्ट्रमंडल खेलों में व्यक्तिगत स्पर्धा का पदक जीतने वाले पहले भारतीय थे. उनके अनुरोध पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उस दिन राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा की थी।
मिल्खा ने अपने कैरियर में 80 में से 77 रेस जीती. रोम ओलंपिक में चूकने का मलाल उन्हें ताउम्र रहा. अपने जीवन पर बनी फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ के साथ अपनी आत्मकथा के विमोचन के मौके पर उन्होंने कहा था, ‘एक पदक के लिये मैं पूरे कैरियर में तरसता रहा और एक मामूली सी गलती से वह मेरे हाथ से निकल गया.’ उनका एक और सपना अभी तक अधूरा है कि कोई भारतीय ट्रैक और फील्ड में ओलंपिक पदक जीते.
