लेखक~डॉ. के.विक्रम राव

♂÷अंततः राम को अब ठौर मिल जाएगी पांच सदियों तक अपनी जन्मस्थली से दर-ब-दर रहे| अब मर्यादा पुरुषोत्तम की घर वापसी तय हो गई।अयोध्या मसले पर आज सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय के बाद हर भारतीय नागरिक को पुरातत्ववेत्ता के. के. मोहम्मद, न्यायमूर्ति एस. नजीर अहमद और मुद्दई इकबाल अंसारी का आभार मानना चाहिए। मोहम्मद की खोज से अदालते आलिया ने पाया कि मस्जिद खाली स्थल पर निर्मित नहीं हुई थी।कर्णाटक से आये न्यायमूर्ति अहमद ने समग्रता की दृष्टि अपनाकर आस्था को कानून से पृथक रखा।मोहम्मद जब कानूनी आदेश के तहत अयोध्या में खुदाई कर रहे थे तो कथित सेक्युलर जन तथा बाबरी एक्शन समिति के लोग मजाकिया लहजे में कहते थे कि पड़ोसी चीन अपने रॉकेट से चाँद पर जा रहा है इधर भारत जमीन के नीचे जा रहा है। मगर इसी खुदाई से मिली वस्तुओं ने स्थल का सही रूप दिखाया, मसलन शूकर की प्रतिमा का खुदाई पर मिलना हिन्दुओं के लिए तो यह वराह अवतार (भगवान) हैं।मुसलमान तो मूर्तिभंजक रहे वे भला सुअर की मूर्ति कैसे संवारेंगे?
इसी परिवेश में चौरान्नवे वर्ष के विधिवेत्ता वैष्णव मतावलम्बी के. पाराशरण की तारीफ करनी होगी, जिन्होंने अद्भुत वाक्पटुता से अपने इष्ट राम का मुकदमा लड़ा और जीता, मुद्दई इक़बाल अंसारी का बयान राष्ट्रहित में रहा कि वह समीक्षा याचिका दायर नहीं करेगे हर एक को यह निर्णय स्वीकारना चाहिए, कहा अंसारी ने।
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला इसलिए भी स्वीकार्य है क्योंकि मायावती के गॉडफादर कांशीराम ने कहा था “न मन्दिर बने, न मस्जिद वहाँ शौचालय बना दो।” इसीलिए आशंका भी थी कि कहीं इसी ढर्रे पर कोई तीसरा उपाय न थोप दिया जाय। इस्ताम्बुल (तुर्की) में ऐसा ही हुआ था| वहाँ प्राचीन हागी सोफिया चर्च था| खलीफा ने इस्लामी साम्राज्य बनते ही उसे मस्जिद में बदल दिया मुस्तफा कमाल पाशा ने अपनी सेक्युलर धुन में उस मस्जिद को म्युजियम बना दिया, इमारत न ईसाई रही और न इस्लामी।
आज राममनोहर लोहिया की याद आ रही है | नवभारत टाइम्स (2 दिसम्बर 1992) के अंक में (विद्यानिवास मिश्र सम्पादक थे) मैने अयोध्या पर लिखा था तब लोहिया और पुणे के हमीद दलवाई (मुस्लिम सत्य शोधक मंडल के अध्यक्ष) ने आन्दोलन की योजना बनाई थी। इसके तहत मुस्लिम युवाओं की टोलियाँ तैयार की जातीं जो अयोध्या, काशी और मथुरा में सत्याग्रह करतीं सरकारों को इस संघर्ष से विवश कर देतीं कि बादशाहों ने अपने अपरिमित राज सत्ता का जबरन दुरपयोग कर अपनी बहुसंख्यक रियाया के बुनियादी धार्मिक अधिकारों का हनन किया था।अतः गणतंत्रीय पंथनिरपेक्ष भारत में इस ऐतिहासिक अन्याय का खात्मा किया जाय।गंगा, सरयू और यमुना तट पर हिन्दुओं को उनके इबादत का हक़ वापस लौटा दिया जाय मगर लोहिया का असमय निधन हो गया,फिर भी एक तिहाई अन्याय का सर्वोच्च न्यायालय ने अंत कर दिया खण्डित ही सही।
÷लेखक भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष व वरिष्ठ पत्रकार/स्तम्भकार हैं÷