★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
{बीते विधानसभा चुनाव में केजरीवाल तो लोकसभा चुनाव में ख़ूब चला था मोदी का जादू,8 फरवरी को होने वाले इलेक्शन में सवर्ण व मुस्लिग मतदाता निभायेंगे निर्णायक भूमिका}
[शाहीन बाग प्रदर्शन के चलते पीछे हुआ विकास का मुद्दा तो बीजेपी शाहीन बाग के मसले पर ही लड़ रही चुनावी युद्ध]
(मोदी,शाह योगी समेत तमाम दिग्गजों ने जमकर बहाया चुनावी मैदान में पसीना तो केजरीवाल एन्ड टीम ने भी की जीतोड़ मेहनत)
[उत्साहहीन काँग्रेस के चलते सीधी लड़ाई में तब्दील हुई दिल्ली चुनाव में मारेगी बाजी”आप”या बीजेपी दोहराएगी लोकसभा इलेक्शन का इतिहास]
♂÷देश की राजधानी दिल्ली प्रदेश में बहुमत के लिए 40 फीसदी वोट पाना जरूरी है ऐसे में
दिल्ली विधानसभा चुनाव की सियासी जंग फतह करने के लिए जहाँ आम आदमी पार्टी ने पूरी तरह से दुबारा सरकार बनाने के लिए चुनावी समर में ताक़त झोंक दी है तो वहीं बीजेपी ने पूरी भगवा ब्रिगेड को उतार किसी भी तरह से दिल्ली की सत्ता हासिल करने के लिए जुटी हुई है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत कई अन्य मुख्यमंत्री सहित तमाम बीजेपी नेताओं ने दिल्ली के चुनावी अखाड़े में जमकर पसीना बहाया है।
भारतीय जनता पार्टी ने शाहीन बाग में सीएए-एनआरसी के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन को चुनावी मुद्दा बना दिया है। शाहीन बाग मुद्दे पर आक्रमक रुख अख्तियार कर बीजेपी ने अपने कोर वोटबैंक को वापस लाने और विपक्ष के वोटबैंक को कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच बंटवारे की सियासी रणनीति पर चल रही है। दिल्ली की सियासी फिजा को बीजेपी ने बदलने की कोशिश की तो जवाब में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं।
दिल्ली में कुल मतदाताओं में 41% सवर्ण और 14% मुस्लिम हैं जो अहम पार्टियों में स्विंग करते रहते हैं, जिससे चुनाव के नतीजे प्रभावित होते हैं। इस समीकरण को साधने के लिए बीजेपी के कुछ नेताओं ने तो ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो #@&* को’, ‘बोली से नहीं मानेगा तो गोली से तो मान ही जाएगा’ और ‘ये लोग आपके घर में घुसेंगे, बहन बेटियों को #@& करेंगे’ जैसे विवादित बयान तक दे डाले हैं। हालांकि बीजेपी नेताओं के ये बयान शाहीन बाग के विरोधी प्रदर्शन की पृष्ठभूमि में दिए गए हैं।
दिल्ली में बीते पांच चुनावों विधानसभा और लोकसभा का विश्लेषण कर वोटिंग पैटर्न को समझने की कोशिश करे तो इससे साफ पता चलता है कि दिल्ली के सवर्ण मतदाता विधानसभा और लोकसभा में अलग-अलग तरह से वोटिंग करते हैं। लोकसभा चुनाव में सवर्ण वोटरों ने जहां बीजेपी को भरपूर समर्थन दिया तो विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी पर भरोसा जताया. इसी तरह मुस्लिम वोटर्स भी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में AAP और कांग्रेस के बीच झूलते रहे।
ऐसी स्थिति में बीजेपी दिल्ली में जीत की उम्मीद लगा सकती है अगर पार्टी सवर्ण वोटरों का समर्थन बरकरार रखती है। (2019 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को 75% सवर्णों के वोट मिले)।साथ ही अगर मुस्लिम वोट AAP और कांग्रेस में बंटते हैं। ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय और विधानसभा चुनावों के नतीजे बताते हैं कि अब अधिक वोटर आम चुनाव और विधानसभा चुनावों में अलग-अलग वोटिंग का पैटर्न दिखाने लगे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में एनडीए ने 2019 लोकसभा चुनाव में भारी जीत हासिल की। लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले और बाद में विधानसभा चुनाव वाले 6 राज्यों में से 5 में बीजेपी के हाथ से सत्ता निकल गई। दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य पर 2013 में जब से AAP का उदय हुआ है, निर्दलीय और BSP जैसी छोटी पार्टियां दौड़ से बाहर हो गई हैं।
दिलचस्प है कि बीजेपी अकेली पार्टी है जिसने 1993 के बाद दिल्ली में हुए सभी चुनावों (लोकसभा और विधानसभा) में हमेशा करीब एक-तिहाई या अधिक वोट हासिल किए। दूसरी बात ये बीजेपी को हमेशा विधानसभा चुनाव की तुलना में लोकसभा चुनाव में अधिक वोट मिले। 1993 के बाद से दिल्ली में ये 14वां चुनाव होने जा रहा है, पहले 7 लोकसभा और 6 विधानसभा चुनाव हो चुके है।
27 साल पहले 1993 में दिल्ली को 69वें संवैधानिक संशोधन के जरिए आंशिक राज्य का दर्जा मिला था और इसे नेशनल कैपिटल टेरेटरी ऑफ दिल्ली (NCT- दिल्ली) घोषित किया गया था. 8 फरवरी को दिल्ली में होने वाले मतदान में 1.47 करोड़ मतदाता हैं।
2009 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 35% वोट हासिल किए थे, बाकी 27 साल में दिल्ली में हुए सभी लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 40% से अधिक वोट हासिल किए। जहां तक दिल्ली विधानसभा चुनावों का सवाल है तो 27 साल में बीजेपी ने 1993 में 43% से अधिक वोट हासिल किए थे, और किसी भी विधानसभा चुनाव में यहां बीजेपी 40% के आकड़े को नहीं छू सकी।
ट्रेंड बताते हैं कि दिल्ली में जो पार्टी 40% या ज्यादा वोट हासिल करती है वही बहुमत के आंकड़े को पार करती है। बीजेपी को दिल्ली के एक-तिहाई वोटरों का समर्थन मिलता रहा है।दिल्ली में बीजेपी अपने परंपरागत वोटरों को लेकर तो आश्वस्त नजर आ रही है लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या शाहीन बाग प्रकरण से बीजेपी के खाते में 7 से 8 फीसदी अतिरिक्त वोट आ सकेंगे?
2013 से 2015 के बीच 15 महीने में दिल्ली ने तीन चुनाव देखे- एक लोकसभा चुनाव और दो विधानसभा चुनाव।इन तीनों चुनाव में बीजेपी को मिले वोटों में व्यापक उतार-चढ़ाव दिखा। 2013 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 33% वोट मिले और इसने 31 सीट जीतीं. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 47% वोट हासिल किए,यानि उसके वोटों में 14% की बढ़ोत्तरी हुई।2015 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 32% ही वोट मिल पाए और कुल तीन सीट पर जीत हासिल हुई। यानि 2014 लोकसभा चुनाव की तुलना में उसका वोट प्रतिशत 15% गिरा।
बताते है कि बीजेपी को सवर्णों का मजबूती से समर्थन मिला है। इस तरह के वोटर दिल्ली में 41% है जो किसी भी और वोटरों की श्रेणी से ज्यादा है।ये बीजेपी का कोर वोट बैंक है,यही वजह है कि बीजेपी 1993 के बाद से दिल्ली में जितने भी विधानसभा चुनाव हुए, उनमें करीब एक-तिहाई या अधिक वोट हासिल करने में सफल रही। सवर्णों में ब्राह्मण 13%, राजपूत 8%, वैश्य 7%, पंजाबी खत्री 5% और अन्य 8% हैं. बीते 5 चुनावों में बीजेपी को मिले सवर्णों वोटों का औसत प्रतिशत 50% रहा।
2019 लोकसभा चुनाव में, सवर्णों के 75% वोट बीजेपी को मिले जो 2015 विधानसभा चुनाव (40%) से करीब दुगने हैं। इसी तरह, 2014 लोकसभा चुनाव में सवर्णों के 56% वोट बीजेपी को मिले लेकिन 8 महीने बाद ही हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को इसी श्रेणी के 16% वोटों का घाटा हुआ।दिल्ली के कुल मतदाताओं में सवर्णों की हिस्सेदारी क्योंकि 41% है, इसका मतलब है कि 16% वोट घटने से बीजेपी को दिल्ली के कुल मतदाताओं के 6.5% वोट कम मिले।
वहीं AAP ने 2015 विधानसभा चुनाव में सवर्णों के 46% वोट हासिल किए, जो कि 2013 विधानसभा चुनाव से 21% अधिक थे। अगर बीजेपी 2015 में अपने सवर्ण कोर वोट बैंक पर कब्ज़ा बनाए रखती तो AAP को उस विधानसभा चुनाव में 8.6% कम वोट हासिल होते।
दिल्ली में मुस्लिम वोटरों के वोटिंग पैटर्न्स का विश्लेषण करने से पता चला कि AAP इस समुदाय में पकड़ मजबूत करती रही लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में ऐसा नहीं हुआ, उस चुनाव में मुस्लिम वोटरों ने AAP से ज़्यादा कांग्रेस पर भरोसा दिखाया।दिल्ली के वोटरों में मुस्लिम वोटरों की हिस्सेदारी 14% है. 2015 विधानसभा चुनाव में AAP को मुस्लिमों के 76% वोट मिले थे लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में AAP को 28% मुस्लिम वोट ही मिल सके यानि 2015 विधानसभा चुनाव की तुलना में AAP को 48% मुस्लिम वोटों का नुकसान हुआ।
वहीं, कांग्रेस को जहां 2015 विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों के 20% वोट ही मिल सके थे, वो वोट प्रतिशत 2019 लोकसभा चुनाव में बढ़ कर 66% हो गया. यानि कांग्रेस के लिए 46% के इस स्विंग का ये मतलब कुल वोटों का 6.4% का फायदा या घाटा हो सकता है।
आंकड़े बताते हैं कि सवर्ण और मुस्लिम वोटरों का वोट स्विंग दिल्ली चुनावों के नतीजों को आकार देने में निर्णायक कारक रहते हैं। बीजेपी चाहती है कि इस चुनाव में अपने सवर्ण वोट बैंक पर कब्जा बरकरार रखे, या उसमें कोई खास घाटा नहीं होने दे, साथ ही उसकी उम्मीद AAP और कांग्रेस में मुस्लिम वोटों का बंटवारा होने पर भी टिकी है।
दिल्ली के शाहीन बाग में CAA-NRC के विरोध में चल रहे प्रदर्शन ने बीजेपी को अपने कोर हिन्दू वोट, खास तौर पर सवर्ण वोट, को मजबूत करने का मौका दिया है। ये वोटर वैचारिक तौर पर बीजेपी के करीब रहे हैं लेकिन बीजेपी के लिए जो सबसे परेशानी वाली बात है वो है मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मुकाबले में कोई साख वाला स्थानीय चेहरा पेश नहीं कर पाना। क्या बीजेपी अपने सियासी जुए में सफल होती है या नहीं ये 11 फरवरी को आने वाले चुनावी परिणाम से ही साफ होगा।
