लेखक~अरविंद जयतिलक
♂÷यह विश्व समुदाय को चिंतित करने वाला है कि चीन धोखाधड़ी के जरिए अपने गुणवत्ता विहीन उत्पादों को भारत समेत दुनिया भर के सभी देशों के बाजारों में पाट रहा है। हाल ही में खुलासा हुआ है कि भारत के प्रतिबंध के बावजूद भी अपने गुणवत्ता विहीन सेब को भारतीय बाजार में पहुंचाने में कामयाब हो रहा है। गौरतलब है कि भारत सरकार ने पेस्टीसाइड टेस्ट में फेल होने के बाद चीन से आयातित होने वाले सेब पर वर्षों पहले से प्रतिबंध लगा रखा है।इसके बावजूद भी चीन अपना सेब बाघा बॉर्डर के जरिए अफगानी सेब के नाम पर भारतीय बाजारों में भेज रहा है। जानना आवश्यक है कि भारत सरकार ने मित्र देश होने के नाते अफगानी सेब के आयात पर कस्टम ड्यूटी और टैक्स माफ किया हुआ है।चीन इसका फायदा उठाते हुए अपने खराब सेब को अफगानी सेब की आड़ में भारतीय बाजारों में भेज रहा है। क्योंकि चीन के सेब पर दुनिया के अधिकांश देशों ने प्रतिबंध लगा रखा है,लिहाजा उस आर्थिक नुकसान की भरपाई वह भारतीय बाजारों में करना चाहता है। किसी भी देश से आयात होने वाले खाद्य उत्पाद का फिजियोसेनेट्री टेस्ट ऑनलाइन सर्टिफाइड किया जाता है या फिर उसकी गुणवत्ता परखने के बाद उसके आयात की अनुमति दी जाती है।इस प्रक्रिया की कसौटी पर चीन का सेब फेल होने के कारण भारत सरकार ने उसके आयात की अनुमति नहीं दी है। लेकिन जान पड़ता है कि चीन के सेब की निगरानी ठीक ढंग से नहीं हो पा रही है,जिससे वह अपने सेब को भारतीय बाजारों तक पहुंचाने के मकसद में कामयाब हो रहा है। इसका दुष्परिणाम यह होगा कि इस खराब सेब के इस्तेमाल से न सिर्फ उपभोक्ताओं का स्वास्थ्य खराब होगा बल्कि भारतीय सेब बागानों के मालिकों को भी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा।
उल्लेखनीय है कि बेनोमाइल,कारब्रील, डीडीटी डायाजिनोंन,फेंरिमोल,फेथियोंन,लिनुरान,एमईएमसी,मिथाइल पेराथियोन, सोडियम सायनाइड, थियोटोन,ट्राइडमॉर्फ,ट्राईफ्लोरेलीन, जैसे पेस्टीसाइड हैं जिनका खाद्य उत्पाद में इस्तेमाल होता है। ये स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है,इनमें से कई पेस्टिसाइड जिस पर कि प्रतिबंध लगाया जा चुका है चीन उनका धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहा है। पेस्टिसाइड उन रासायनिक जैविक पदार्थों का मिश्रण होता है जिनका उपयोग कीड़ों मकोड़ों से होने वाले दुष्प्रभाव को कम करने,उन्हें मारने या बचाने के लिए किया जाता है, क्योंकि कीड़े मकोड़ों फ़सलो को पूरी तरह बर्बाद कर देते हैं और किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है, लिहाजा उनका इस्तेमाल होता है। चीन आज भी फल और सब्जियों को पकाने उन्हें तरोताज़ा बनाये रखने में इस्तेमाल करता है, लेकिन दुनिया के अधिकांश देशों में तैयार उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया है।इन प्रतिबन्धों की फेहरिस्त में इनका सेब भी शामिल है। यह उचित है कि कश्मीरी सेब उत्पादको ने भारत सरकार से चीन से चोरी छिपे हो रहे ज़हरीले सेब के आयात पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। यहां ध्यान देना होगा की गुणवत्ता और भरोसे के मामलें में सिर्फ़ चीन का सेब ही नही उसके कई अन्य उत्पादों की विश्वसनीयता अब शक के दायरे में आ गई है। दुनिया समझने लगी है कि चीन सीमित संसाधनों की उपलब्धता के कारण मैन्युफैक्चरिंग में घटिया कच्चे माल का इस्तेमाल कर रहा है और न्यूनतम मजदूरी के बूते अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपना घटिया और सस्ता माल उतार रहा है ।उसके इस खेल से थोड़े दिनों तक जरूर आर्थिक फायदा हुआ लेकिन अब उसके उत्पादों की मांग दुनियां में तेजी से घटने लगी है।जबकि दूसरी ओर भारतीय उत्पाद अपनी उच्च गुणवत्ता के कारण दुनिया भर में लोकप्रिय हो रहे हैं।विगत कुछ वर्षों में चीन के मुकाबले भारतीय उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी है।गत वर्ष पहले यूरोपीय संघ और दुनिया के 49 बड़े देशों को लेकर जारी “मेड इन कंट्री इंडेक्स”(एमआईसीआई- 2017) में उत्पादों में गुणवत्ता के मामले में चीन भारत से 7 पायदान नीचे है। इंडेक्स में भारत को 36 अंक और वह चीन को 28 अंक मिले हैं। इंडेक्स में शीर्ष स्थान पर जर्मनी और दूसरे स्थान पर स्विट्जरलैंड है।जानना आवश्यक है कि स्टैटिस्ता ने अंतरराष्ट्रीय शोध संस्था डालिया रिसर्च के साथ यह अध्ययन दुनियाभर के 43034 उपभोक्ताओं के सन्तुष्टि के आधार पर किया था।उल्लेखनीय है कि सर्वे में शामिल है देश दुनिया की 90% आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं लिहाजा सर्वे की विश्वसनीयता को खारिज नहीं किया जा सकता।सर्वे में उत्पादों की गुणवत्ता,सुरक्षा मानक, वसूली विशिष्टता ,एडवांस तकनीक,भरोसेमंद सही उत्पादन व प्रतिष्ठा को शामिल किया गया है।इन मानको पर चीनी उत्पादो का खरा न उतरना न सिर्फ़ उसकी बदनामी भर है बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरनाक संकेत हैं। चीन भले ही अपनी इंजीनियरिंग,कारीगरी से अपने उत्पादों को दुनिया के बाजारों में पाटकर फुले न समाता हो पर वह दिन दूर नहीं जब उसकी हालत 19वीं सदी के समापन के दौर की उस जर्मनी जैसी होगी जो अपने गुणवत्ता विहीन उत्पादों के लिए दुनिया भर में बदनाम हुआ। तब जर्मनी भारी मात्रा में अपने घटिया और बड़े ब्रांड उत्पादों की नकल करके बनाये गए उत्पादों को ब्रिटेन निर्यात करता था। इससे ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था चरमरा गई और उत्पादों से बचने के लिए “मेड इन लेवल”की शुरुआत करनी पड़ी। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि आने वाले वर्षों में दुनिया के देश चीनी उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दे।अभी भारत ने चीन से दूध,दूध उत्पादों और कुछ मोबाइल फोन समेत कुछ के आयात पर प्रतिबंध लगाया है। यह उत्पाद निम्न स्तरीय और सुरक्षा मानकों की कसौटी पर खरे नही उतर पाए थे। भारत ने 23 जनवरी 2016 को भी चीनी खिलौनों के आयात पर प्रतिबंध लगाया था।फ़िर चीन को विश्व व्यापार संगठन में अपनों आंकड़ो से साबित करना पड़ा कि उसके उत्पाद बढ़िया है।दुनिया के देशों में भी चीन के घटिया उत्पादों पर प्रतिबंध लगना शुरू हो गया है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार विशेष रूप से अमेरिका,यूरोप में चीन के घटिया उत्पादों की बिक्री घटी है।पिछली दीपावली में भारत में चीन के उत्पादों की बिक्री 60% गिरी है। लोगों ने मिट्टी के दीए जलाए, स्वयं चीन के कारोबारियों का कहना कि प्रतिस्पर्धा की वजह से पिछले साल 5 साल में उत्पादों की कीमत में करीब 90% तक कटौती कर चुके हैं। उनकी मानें तो पिछले 3 सालों में मजदूरी 2 गुना बढ़ने गुणवत्ता पर ध्यान देने से चीन में बने सामान भी सस्ते नहीं रह जाएंगे। अगर चीन उत्पादों की गुणवत्ता पर ध्यान देता है तो स्वाभाविक रूप से उत्पादों की कीमत में वृद्धि होगी और कीमत बढ़ने से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उसकी मांग प्रभावित होगी।
गौरतलब है कि चीन की सरकार अपने उत्पादको को सामान बनाने से लेकर निर्यात तक में भारी रियायत देती है और उसका फायदा उत्पादकों को मिलता है। लेकिन चूंकि अब मांग घटने से चीन की अर्थव्यवस्था डांवाडोल होने की स्थिति में है ऐसे में चीन सरकार के लिए अपने उत्पादों को भारी रियायत दे देना आसान नहीं होगा। दूसरी ओर चीन अपने उत्पादों को सस्ता बनाने के लिए पहले मुद्रा का अवमूल्यन कर चुका है, ऐसा बार-बार नहीं कर सकता।कुल मिलाकर चीनी उत्पादों के बुरे दिन शुरू हो गए हैं और इसके लिए चीन की सरकार स्वंय जिम्मेदार है। आखिर वे मुनाफ़े के लिए दुनियां को कब तक बरगलाती रहेगी। मजेदार बात यह है कि अगर चीन का बाज़ार गिरता है तो उसका सीधा फायदा भारत को मिलेगा। देखा भी जा रहा है दुनिया भर में भारतीय उत्पादों की मांग बढ़ रही है।भारत में “मेक इन इंडिया” कार्यक्रम के बूते देशी व विदेशी सभी कंपनियों गुणवत्ता परक उत्पादों की बादशाहत कायम कर रहीं हैं।

÷लेखक प्रसिद्ध समीक्षक व विदेशी मामलों के ज्ञाता हैं÷