लेखक- ओम लवानिया
यूँ तो बीतते वर्ष ने कई अप्रत्याशित पहलुओं को हमारे समक्ष रखा है किंतु अभी मेरा संदर्भ सिनेमाई परिपेक्ष्य है। और भारतीय सिनेमा से मलयालम इंडस्ट्री ने नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों वेव में नोटिफिकेशन जनरेट किया है।
नेगेटिव-यौन उत्पीड़न मामले में पूरी इंडस्ट्री बेनकाब हुई और कई बड़े चेहरे सामने आए। मामला खूब सुर्खियों में रहा।
पॉजिटिव-साथ ही मलयालम फ़िल्म इंडस्ट्री ने अपनी कंटेंट बेस्ड फिल्में सबका आकर्षण बना। मंजुम्मेल बॉयज, आवेशम, ब्रमयुगम, किष्किंधा कांडम, अट्टम, मार्को, गोट लाइफ आदि। अर्थात् अब मलयालम फ़िल्म इंडस्ट्री भी पैन भारत आने को तैयार है और अपनी दर्शक दीर्घा बना चुकी है।
भारतीय सिनेमा के कंटेंट को सर्वश्रेष्ठ तौर पर देखेंगे तो मेरे आकलन में कई सूची बनेगी।
एक्सपेरिमेंटल स्केल पर निर्विरोध युवा फ़िल्म मेकर नाग अश्विन ने कल्कि से बॉक्स ऑफिस और सिनेमाई तकनीक का बेहतरीन उदाहरण सेट किया है और आगे की कड़ियों से भारतीय सिनेमा को साइंस फिक्शन ज़ोनर में नेक्स्ट लेवल देंगे। ये जॉनर बहुत रिस्की रहता है। नाग ने रिस्क से इश्क़ करके दिखला दिया है।
मास मसाला परिवेश में पुष्पा ने 2024 और ट्रेड को कतई हैरान-परेशान किया है। बॉक्स ऑफिस बेहोश हो चला है। चौथे वीकेंड के बाद अल्लू अर्जुन की मास पैन भारत में सबसे बड़ी लकीर खींचकर अपने लाइफ टाइम में प्रवेश लेगी। इतना तय है कि ये रिकॉर्ड जल्द टूटने वाला नहीं है।
छोटे बजट में परफेक्ट सिनेमा में देखेंगे।
आर्टिकल-370, महाराजा, स्वातंत्र्य वीर सावरकर, सरीपोधा सनिवारम, हनुमान, लकी भास्कर, किल, चंदू चैंपियन, मुंज्या, अमरण, तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया, बघीरा आदि। ऐसी फ़िल्में जिनकी स्टोरी टेलिंग और कंटेंट ने स्लीपर हिट बनाया और दर्शकों को कुछ बढ़िया देखने को दिया। तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया और बघीरा में काफ़ी गुंजाइश थी फिर भी बढ़िया प्रयास रहा है।
स्त्री-2 और भूल भुलैया-3 ने अपने ब्रांड वैल्यू को कायम रखा है और निर्माताओं को अगले पार्ट्स बनाने का लालच भर दिया है। स्त्री-2, तो बढ़िया बनाई है।
भेरी बिग डिसपॉइंटमेंट की श्रेणी में द ग्रेटेस्ट ऑफ़ द ऑल टाइम, थंगालम, बड़े मियाँ छोटे मियाँ, कंगुवा, देवरा, सिंघम अगेन, इंडियन-2, फाइटर। ये सभी फ़िल्में बड़े बजट की थी और फ़िल्म मेकर्स ने फूंक दी। दर्शकों को इनसे बड़ी उम्मीदें थी किंतु इनका टूटना ही आख़िरी सत्य है।
लापता लेडीज ओवररेटेड फ़िल्म है इसे जबरन हाईअप देकर ऑस्कर में भेजा गया और पानी तक न माँगी, बाहर हो चली है। इसकी आड़ में दूसरी बेहतर फिल्में छूट गई। कई ऐसी फिल्में थी जिन्हें ऑस्कर में भेजा जाता और अच्छे से प्रमोशन होता तो कुछ कमाल कर सकती थी।
(लेखक फिल्म समीक्षक हैं)