लेखक~ओमप्रकाश सिंह
÷५ सितम्बर, २०२० को पूर्वांचल और देश के दूसरे प्रवास-प्रव्रजन प्रभावित इलाकों के आर्थिक-औद्योगिक विकास और उसके लिए जरूरी सांस्कृतिक बदलाव के लिए काम कर रही संस्था पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान द्वारा सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच को लेकर आयोजित हिन्दीभाषी समाज संवाद ने सोच-विचार के कई मुद्दे सामने रखे हैं। उनमें से यह एक-
श्री एम एन सिंह, श्री के,पी रघुवंशी और श्री पी एस पसरीचा समेत महाराष्ट्र के कुछ बड़े पुलिस अधिकारियों ने कुछ चैनलों में सुशांत सिंह राजपूत की मौत की मीडिया रिपोर्टिंग को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया है। उनका कहना है कि इससे, पुलिस की जो छवि गिर रही है, उसका आगे आनेवाले दिनों में पूरे समाज को खामियाजा उठाना पड़ेगा। बात जायज है. सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच को लेकर मुंबई पुलिस की भारी छीछालेदर हो रही है। अर्णव गोस्वामी का मुंबई पुलिस आयुक्त श्री परमबीर सिंह का नाम ले-लेकर उन्हें चुनौती देना सामान्य परिस्थितियों में शोभनीय नहीं है, उससे मुंबई पुलिस और मुंबई के पुलिस आयुक्त पद दोनों की अवमानना होती है।
लेकिन, यह स्थिति पैदा किसने की है?
स्वयं मुंबई पुलिस और मुंबई के पुलिस आयुक्त ने।
६५ दिन तक इन्क्वेस्ट (अन्वीक्षण) चलता रहे और कोई एफआईआर तक न दर्ज़ हो, तो पुलिस को इस अंधी सुरंग में किसने ठेला? क्राइम सीन को नष्ट कर दिया जाए, ये किसने किया? गले पर फांसी के फंदे का किस तरह का निशान है, वह हत्या है या आत्महत्या; इसे किसने नहीं देखा? मौत के दो घंटे के भीतर ही महाराष्ट्र के गृहमंत्री तक ने घोषित कर दिया कि सुशांत ने आत्महत्या की है, यह क्यों, कैसे और किसकी रिपोर्ट पर , और किसके इस भरोसे पर हुआ कि पुलिस इस बात का खंडन नहीं करेगी? आधी रात बहुत हड़बड़ी में पोस्ट मार्टम क्यों कराया गया? उस पर मौत का समय तक क्यों नहीं लिखा गया, या नहीं लिखा गया तो क्यों नहीं लिखवाया गया? विसरा का नमूना १२ घंटे बाद क्यों लिया गया?
पुलिस की तो जानकारी में था कि सुशांत के आसपास कुछ गड़बड़ चल रही है, तो मौत के बाद भी उस गड़बड़ी को खंगालने की कोशिश क्यों नहीं हुई? दुनिया को यह सन्देश कैसे गया और किसने जाने दिया कि मुंबई पुलिस जांच को दबा रही है, तथ्यों को छिपा रही है, सबूत नष्ट कर रही है, और राजनीतिक आकाओं को संतुष्ट करने के लिए मुंबई पुलिस की गरिमा को न्योछावर कर रही है?
देश चीखने लगा, ३०-३० लाख लोग पेटिशन साइन करने लगे, ६०-६० लाख लोग एसएमएस भेजने लगे, लेकिन एम एन सिंह साहब आपका और इन किसी भी पूर्व पुलिस अधिकारियों का कलेजा नहीं काँपा कि पुलिस को इस गर्त में कौन ले जा रहा है? राजदीप सरदेसाई और इंडिया टुडे की पत्रकारिता ने जब पत्रकारिता के सारे उसूलों को धता बता दिया तब भी आप लोगों का कलेजा नहीं काँपा? सामना और संजय राऊत के कहे पर भी आपका कलेजा नहीं काँपा? एम एन सिंह साहब जिन पुलिस अधिकारियों ने अदालत की शरण ली है, उनमें आप सहित कई लोग आइकॉन हैं। देश आपकी ओर आशा और विश्वास से देखता है। ;लेकिन, हुआ उलटा। देश के सामने आपने भी ऐसी ही तस्वीर पेश की है जैसे कि आप सभी भी अपने पुराने आकाओं के इशारे पर काम कर रहे हैं।
कलेजे पर हाथ रख कर पूछिये, सीबीआई जांच हो, इस मामले में क्या मुसीबत थी कि इसे बिहार और महाराष्ट्र के बीच का मामला बनाने की कोशिश की जाए? सीबीआई जांच न हो, इसे मुंबई पुलिस की प्रतिष्ठा से जोड़ दिया जाए? राजनीतिक आका मुंबई पुलिस को ढाल बना लें, और आप सबके माथे पर शिकन भी न आये, क्या बात है एम एन सिंह साहब, साहब, आप सभी की ईमानदारी और मुंबई पुलिस की छवि के प्रति आपकी सजगता की वाह क्या बात है!
याद रखें, कर्मठता, कुशलता, अच्छाई और ईमान जब माथा झुका देते हैं, तब केवल बुराई बचती है, तब केवल न्यस्त स्वार्थ बचते हैं। आप सभी ने एक झटके में दिखा दिया कि आप सभी ईमान के पुतले नहीं रबड़ के खिलौने हैं। चिंतित होइए, एम एन सिंह साहब, देश का एक बड़ा हिस्सा लोकतंत्र, पुलिस और प्रशासन की खामियों के कारण अपराध में डिफेन्स मैकेनिज्म ढूंढने लगा है. इस प्रक्रिया को तेज बनाने से बचिए।
हिन्दीभाषी समाज आप पर गर्व करता है। आपको आदर्श मानता है। अपने समारोहों में आपको बुलाता है। आपका स्वागत सत्कार करता है। फूल मालाएं पहनाता है। उसे निराश मत कीजिये। हाई कोर्ट में आपने जिस याचिका पर दस्तखत किए हैं, वहां से अपना नाम हटाइये। दूसरों को भी समझाइए कि याचिका वापस लें। मुंबई पुलिस की गरिमा याचिका वापस लेने से बचेगी। याचक बने रहने से नहीं।`÷लेखक वरिष्ठ पत्रकार और पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान संस्था के सचिव हैं÷