★आज़ादी के बाद का पहला ऐसा आम चुनाव जो लड़े जा रहे लफ्फाजियों व सौतिया डाह पर★
●नेहरू काल मे उनके दामाद इन्दिरा पति फ़िरोज ने उठाये थे जीप घोटाले किन्तु 72 साल बाद भी घोटालेबाजो को कोई भी सरकार नहीं भेज पायी जेल●
लेखक=मुकेश सेठ
=15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश दासता से मुक्ति दिवस मानिये या फिर अखण्ड हिन्दुस्तान को दो खण्ड करने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अन्तिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत वर्ष का सत्ता हस्तांतरण भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू को कर दिया।
यू तो लगभग 50 वर्षो तक कॉंग्रेस पार्टी की केंद्र व प्रदेशों में सरकारें अनवरत चुनाव डर चुनाव पश्चात भी सत्ता सुख लेती रही तो वही विपक्ष के पास उस दौर में काँग्रेस के अति लोकप्रिय जननेताओं की अपेक्षा पहाड़ क़द वाले जननायक नेता व नेतृत्व की कमी थी।
उन 5 दशकों के दौर में हुए लोकसभा के चुनावों के इतिहास में दर्ज़ पन्नो को पलटा जाए तो यही हर्फ़ मिलते है कि तब भी काँग्रेस समेत सभी राजनैतिक दलों ने गरिमा व गम्भीरता से जन मुद्दों को लेकर ही चुनावी रणभूमि में उतरे थे।
हालाँकि महात्मा गाँधी के कद से दबी या यूं कहें तो उनकी अजेय लोकप्रियता के कंधे पर सवार रही काँग्रेस की अंग्रेजो से राजनैतिक संघर्ष में विजय प्राप्ति के दावे आज़ाद भारत मे पहले ही दिन से नेहरू एंड काँग्रेस कर केन्द्र व प्रदेशों में सत्ता सुख लेते रहे।
इतिहास बन चुके उन दौर के आम चुनाव हो या गत 2014 के सभी लोकसभा चुनाव जनमुद्दों पर ही देश की सभी राजनैतिक दलों ने लड़े है।
काँग्रेस ने 15 अगस्त 1947 में आज़ादी के पश्चात ही गाँव-ग़रीब-गृहस्थ की बात करनी शुरू कर दी थी,ग़रीबी को अमीरी में बदल डालने के दिवास्वप्न दिखा-दिखा कर 5 दशकों से ऊपर तक देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू से लेकर इन्दिरा, राजीव गाँधी तक लगभग भारत के भाग्यविधाता बन दिल्ली की कुर्सी पर बैठने आते जाते रहे किन्तु काँग्रेस के मुद्दे वही रहे कि देश से ग़रीबी मिटा कर ही दम लेंगे।
आज़ादी के दिन से ही देश मे इतने मुद्दों पर चुनाव लड़ चुके है राजनीतिक दल की लगता है कि अब उनके पास अब जनमुद्दों पर बात करने व गाँव-ग़रीब-गृहस्थ की ज़मीनी आवश्यकताओं व उनको आज भी जीवन एक बोझ बनी रह जाने वाली दुश्वारियों से मुक्तिदाता का इंतेज़ार आज भी है।
केन्द्र-प्रदेश सरकार को सम्भाल रही दलों को ये बखूबी मालूम है कि चुनाव में मुद्दो को मुर्दो की तरह क़ब्र में पहुँचा कर ही अपनी पूर्व की बातों वादों को मतदाताओं के दिमाग़ से डिलीट कर सत्ता की सीढ़ी चढ़ी जा सकती है।
काँग्रेस ने नेहरू-इन्दिरा युग तक प्रत्येक सरकार पर लगाने वाले सदन में उनके ही दामाद इंदिरा पति रायबरेली सांसद फ़िरोज गाँधी थे।
पाकिस्तान के आक्रमण के दौरान ही जीप घोटाले को पीएम नेहरू के दामाद द्वारा उठाते ही देश में हंगामा सा बरप पड़ा, नेहरू अपने प्रिय मित्र व रक्षामंत्री मेनन से इस्तीफा ले किसी तरह से फ़िरोज,विपक्षियो व देश के मुँह को तत्कालिक तौर पर भले ही बन्द कर दिया किन्तु देश आज तक घोटाले के जिम्मेदारों को जेल के पीछे नही देख सका।
नेहरू की करिश्माई छवि कह लीजिए या नेहरू की क़िस्मत की उनके दौर में विपक्ष के पास ऐसा कोई भी ऐसा जननेता नही था जिसके पीछे देश की जनता चलना चाहती रही हो।नेहरू की रहस्यमय बीमारी से हुए निधन के पश्चात छोटे कद वाले ईमानदार व सख्त व कठोर निर्णय लेने वाले बड़े नेताओं में शुमार लालबहादुर शास्त्री ने देश के प्रधानमंत्री पद को सम्भालने के साथ ही पाकिस्तान की हिमाकत को जूते तले रौंद देने वले पीएम शास्त्री की रूस के ताशकन्द में पाक पीएम भुट्टो से समझौते के पश्चात रहस्यमय मौत हुई।
एक बार फिर से काँग्रेस पार्टी ने मुड़कर नेहरू की लाडली इन्दिरा को पीएम बनाया।
इंदिरा गाँधी ने भी चाहे वो लोकसभा चुनाव रहे या असेंबलियों के गरीबी-ग़रीबी जप कर सत्ता में आती रही।
इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी बैनर तले समूचे विपक्ष ने तानाशाह बन बैठी”इंदिरा इज ए इंडिया-इंडिया इज ए इंदिरा”का जाप करने वाली काँग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया इमरजेंसी के मुद्दे पर।
किन्तु आपसी राजनैतिक महत्वाकांक्षा व नेताओं में एक दूसरे से बड़े कद के गुरुर होने के परिणाम स्वरूप जनता पार्टी की मोरार जी देसाई सरकार 5 वर्ष के कार्यकाल को पूरा नही कर पाते हुए धराशायी हो गयी।
ततपश्चात हुए आम चुनाव में इन्दिरा की काँग्रेस ने एक फ़िर गाँव गरीब गृहस्थ की बात शुरू कर ग़रीबी हटाओ के मुद्दे पर सवार होकर दिल्ली की सल्तनत पुनः हासिल की।
पँजाब में अकालीदल की बढ़ती राजनैतिक गरूर को थामने के लिए इन्दिरा गांधी ने भिंडरावाले को उभारने शुरू किए जो उनके लिए भस्मासुर ही साबित हुआ।
सत्ता संघर्ष में दौड़ रही इंदिरा को अपनी भूल का अहसास तब हुआ जब स्वर्णमंदिर में भिंडरावाला के उग्रवादियों ने कब्जा जमा लिया जिसको मुक्त कराने के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को बजरिये सेना”ऑपरेशन ब्लूस्टार”चलाने पड़े।
इन्दिरा के द्वारा पंजाबियों के सर्वाधिक पवित्र स्वर्णमंदिर में सेना भेजने व कत्लोगारत से क्षुब्ध होकर उनके ही सुरक्षाकर्मी रहे सतवंत-बेअंत व केहर सिंह ने प्रधानमंत्री इन्दिरा पर गोलियों की बारिश कर प्राण ले लिए थे।
इस खौफ़नाक हत्याकाण्ड से उस 1984 के दौर में दिल्ली समेत देश भर के अनेक हिस्सों में निर्दोष सिक्खों के क़त्लेआम तक कांग्रेसी सत्ता के संरक्षण में हुआ था।
तत्कालिक तौर पर शहीद कर दी गयी पीएम इंदिरा के पायलट पुत्र राजीव गांधी को कुछ घण्टे बाद ही देश चलाने के लिए प्रधानमंत्री पद की शपथ दिल दी गयी।
कुछ दिनों पश्चात कांग्रेश ने पीएम राजीव गाँधी के नेतृत्व में लोकसभा का चुनाव लड़ा व इन्दिरा गांधी की शहादत व उनकी हजारों बनाई गई राजनैतिक अस्थियो को चुनावी वाहनों पर इन्दिरा के चित्र लगा खूब घुमाया,नतीजा आज़ाद भारत के राजनीतिक इतिहास में नौसिखिये राजनेता व जहाज़ उड़ाने वाले राजीव गाँधी ने आयरन लेडी अपनी माँ की शहीदी को खूब भुना एक तरफा क्लीन स्वीप कर 4 सौ सीट से भी ज्यादे जीत कर ऐतिहासिक बहुमत वाली सरकार के प्रधानमंत्री बन बैठे।
उनकी ही कैबिनेट में वित्त व रक्षामंत्री रहे राजा मांडा विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मिस्टर क्लीन की इमेज बनाने वाले पीएम राजीव गाँधी,सोनिया गांधी,अमिताभ बच्चन एन्ड टीम पर स्वीडन की बोफ़ोर्स तोप ख़रीद सौदे में 64 करोड़ की दलाली लिए जाने के सनसनीखेज आरोप लगाते हुए इस्तीफ़ा दे डाला।
इतिहास के पन्ने गवाही देते है कि कथित मिस्टर क्लीन राजीव गाँधी की लार्ज स्केल मेजोरिटी गवर्नमेंट को जनतादल पार्टी के तले नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफ़ोर्स दलाली को राष्ट्रीय मुद्दा बनाते हुए राजीव सरकार को चलता कर ख़ुद दिल्ली की गद्दी पर शोभायमान हुए,ये दीगर बात है कि अपनी प्रत्येक जनसभाओं में एक पर्ची लहरा कहने वाले राजा मांडा वीपी सिंह की दिल्ली की कुर्सी पर बैठते ही राजीव एंड टीम को जेल भेज दूँगा को कर नही पाए।
एक बार फिर देश के सामने एक ऐसे मुद्दे को लेकर बीजेपी के आदमकद नेता लालकृष्ण आडवाणी सामने आये जिसने यक़ीनी तौर पर भारत की राजनीति में धर्म को गहरे तक घुसा डाला।
वीपी सिंह सरकार को समर्थन दे रही बीजेपी ने लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में राममंदिर मुद्दे को लेकर देश भर में चुनावी रथ दौड़ा डाली।
इतिहास कहता है कि श्रीराम ने हाँफती भाजपा को सत्ता का स्वाद चखने में सर्वाधिक भूमिका निभाई है,और जनता राम लला हम आयेंगे-मन्दिर वही बनायेंगे, बच्चा -बच्चा राम का जन्मभूमि के काम का समेत तमाम नारे को मुद्दे बना बीजेपी के इतिहास पुरुष बनते जा रहे आडवाणी ने सिर्फ बीजेपी को ही सत्ता संभालने लायक नही बनाया अपितु आरएसएस सदस्य व अपने राजनैतिक शिष्य नरेंद्र दामोदर दास मोदी से प्रधानमंत्री मोदी में बदलने की ताक़त भी दी थी।
पिछले 2014 के आमचुनाव में जनता ने अनवरत 10 वर्षो के दो कार्यकाल में यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार जिसकी रिमोट 10 जनपथ से सुपर पीएम के नाम से उस दौर में जानी जाने वाली काँग्रेस व यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने चलाई थी से बुरी तरह से भड़क चुकी थी।
क्योकि आये दिन हज़ारो लाखों करोड़ के घोटाले उजागिर होते रहे,विभागीय केंद्रीय मंत्री जेल जाते रहे तो दूसरी तरफ पाकिस्तान भारतीय सीमा पर सैनिको को शहीद भी करता था तो अपने आतंकियों के जरिये दुनिया का सर्वाधिक दुस्साहसिक आतंकी हमला मुम्बई पर करवा दिया था जिसमे 300 से भी ज्यादे आम नागरिकों समेत जाबांज पुलिस कर्मियों,अधिकारियों को भी शहीद होना पड़ा था।
उन्ही घपले घोटाले व आये दिन आतंकी हमलों से डरी सहमी भारत देश मे तेजी के साथ गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी ने देश की मजबूत राजनैतिक नेतृत्त्व की शून्यता में अपने को फ़िट करना शुरू कर दिया।
नतीजा 2014 के लोकसभा चुनाव में मजबूर नही मजबूत सरकार व अबकी बार मोदी सरकार के नारे व मुद्दे ने देश के जनमानस पर ऐसा मोदी मैजिक बीजेपी व अमित शाह एन्ड टीम ने कर डाला कि पहली बार मोदी-शाह वाली बीजेपी ने मजबूत बहुमत ला देश का सुल्तान मोदी को बना डाला।
वही देश के इतिहास में 2019 का आमचुनाव एक ऐसे चुनाव के रूप में दर्ज़ होता जा रहा है जोकि आज़ाद भारत में पहली बार मुद्दा विहीन होकर सौतिया डाह वाली भाषा व गली के छिछोरे की तरह लफ्फाजियों पर एक दूसरे पर हमले कर लड़े जा रहे है।
राजनेताओं की जुबां से गाँव-गरीब-गृहस्थ लोप हो चुके है।
पीएम पद को अपने लिए सुरक्षित मानने वाला गाँधी परिवार के चश्मों चिराग़ काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी हो या उनकी महासचिव बहन प्रियंका वाड्रा गाँधी भी इधर-उधर की बाते कर रहे है,राहुल गाँधी को काँग्रेस गम्भीर राजनेता के तौर पर पेश करने के प्रयास करती रही किन्तु राजनैतिक राजपरिवार में जन्मे राहुल अपनी जमीनी समझ मे शून्य होने के चलते देश के जनमानस में तेजी से हास्य के पात्र बनते जा रहे है तो उधर शोरशराबे के साथ प्रियंका वाड्रा गाँधी को लॉन्च करने में यूज़ वक़्त तो कामयाब दिखी काँग्रेस लखनऊ में किन्तु जिस तरह से प्रियंका भी मुद्दों की बजाय मोदी पर निजी हमले में खुद को संलग्न करती जा रही है व बनारस से मोदी के विरुद्ध चुनाव लड़ने की मन्शा जाहिर कर मजबूत नेता की छवि बनाई थी उसको भी अब चुनावी मैदान से भाग जाने के चलते ख़ुद भगोड़े नेता के8 इमेज ब्रांडिंग कर एक बड़ी राजनैतिक भूल की है।
जिसकी भरपाई शायद ही अब काँग्रेस व राहुल-प्रियंका कर पाए।
चुनावी युद्ध मे हार जीत तो होते रहे है अजेय मानी जाने वाली इंदिरा को राजनारायण ने भी हराया था किंतु वो भी इन्दिरा की राजनैतिक हत्या नही कर पाए थे।
प्रियंका को राजनीतिक अजेय योद्धा बनते जा रहे पीएम मोदी के मुकाबिल बनारस सीट से चुनाव लड़ जाने से ख़ुद को घसीट रही काँग्रेस के पोलिटिकल बॉडी में बूस्ट अवश्य आता तो वही प्रियंका भी दिलेर राजनेता की छवि में देश दुनियां में खुद को प्रस्तुत कर पाने में सफ़ल रहती।
चूंकि मोदी को हराने की बात सभी विपक्षी कर रहे है किंतु मजबूर उम्मीदवार नही उतार पाए है ऐसे में ये काँग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा गाँधी के सामने सुनहरा अवसर था गैर कंग्रेसी विपक्षियो को अपने पीछे उम्मीदवार के रूप में समर्थन लेकर चलाने व मोदी के मुकाबले देश की राजनीति का नेतृत्व करने के लिए।
मोदी-शाह की टीम ने राजनीति को अब पोलिटिकल इवेन्ट में बदल जनमत से झोली भरना बखूबी सीख चुकी है,जिसका ताज़ा तरीन उदाहरण पिछले दिनों पीएम मोदी की बनारस सीट से बीजेपी प्रत्याशी के रूप में कई गयी विशालतम जनसमुद्र वाली रोड शो हो या फिर नामांकन के दौरान तमाम प्रदेशो के मुख्यमंत्रियों,केंद्रीयमंत्री लोगो की भीड़ गवाह रही है।
यानी याद आ रहा है बीजेपी का नारा-मोदी है तो मुमकिन है।
