लेखक~संजय राय-
♂÷पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम सामने आ गये हैं। पश्चिम बंगाल, असम और केरल में सत्तारुढ़ दल की फिर से सरकार बनने जा रही है। तमिलनाडु और पुडुचेरी में विपक्षी दल के सत्ता में आने की संभावना है। चुनाव भले ही पांच राज्यों में हुए हों, लेकिन भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच चले हाई वोल्टेज प्रचार के कारण देश की नजर विशेष रूप से पश्चिम बंगाल पर टिकी हुई थी।
पश्चिम बंगाल से ममता बनर्जी को सत्ता से बाहर करने के लिये भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के अलावा सभी भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री ममता के किले को तोड़ने में जुटे हुए थे। लेकिन उन्हें उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं मिले।
भाजपा के दबाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक समय ऐसा भी आया जब ममता बनर्जी को कांग्रेस और वाम दलों सहित समूचे विपक्ष को एकजुट होने के लिये गुहार लगानी पड़ी थी। लेकिन कांग्रेस और वाम दलों ने उनकी गुहार को नजरअंदाज करके अलग से चुनावी मोर्चा खोला। इसका फायदा भाजपा को मिला।
पश्चिम बंगाल में 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को केवल 3 सीटें मिली थीं, इस बार पूरा दमखम लगाने के बाद उसके खाते में लगभग 80 सीटें मिलती दिख रही हैं। यह बिलकुल स्पष्ट हो चुका है कि भाजपा बंगाल में प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका में आ चुकी है। इस संख्या में थोड़ा बहुत बदलाव हो सकता है। पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में भाजपा का यह उभार आने वाले समय राज्य की राजनीति में दक्षिणपंथी राजनीति की धारा को तेज करने के लिये पूर्व-पीठिका का काम करेगा, यह बिलकुल स्पष्ट है।
जहां तक वामपंथ और कांग्रेस की बात है, उसे अब अपनी विपक्ष की भूमिका पर विचार करना होगा। सभी सिद्धांतों को परे रखकर, भाजपा के येन-केन प्रकारेण सत्ता हासिल करने के फार्मूले पर अगर राष्ट्रीय स्तर पर लगाम लगाने की कूबत अगर किसी में है तो वह ममता बनर्जी में है। विपक्षी दल इस बात को समझ तो रहे हैं, लेकिन वे ममता को स्वीकार करेंगे, इसे लेकर दुविधा की स्थिति बनी हुई, जिसके आगे भी बरकरार रहने की संभावना है। जाहिर है भाजपा अब देशभर में घूम-घूमकर यह कहेगी कि मुसलमानों के वोट से ममता जीती हैं। इससे भाजपा को फायदा मिलेगा।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणामों का स्पष्ट संदेश यही है कि आने वाले समय में देश की राजनीति में ‘खेला’ होगा और यह खेला धर्म की बुनियाद पर ही आगे बढ़ने वाला है। जो ममता की जीत को देखकर यह कह रहे हैं कि भाजपा हार गयी है, वे शायद गफलत में हैं। भाजपा 3 से 80 पर पहुंचकर अब वहां प्रमुख विपक्ष की भूमिका में आ चुकी है।
आने वाले समय में पश्चिम बंगाल में सत्ता संघर्ष और अधिक तेज होगा। पश्चिम बंगाल का जनादेश देश की राजनीति में हिंदू-मुस्लिम राजनीति की धार को और अधिक तेज करने वाला है और इस ‘खेला’ में कांग्रेस व अन्य क्षेत्रीय तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल किस तरह की भूमिका अख्तियार करते हैं, यह देखना रोचक होगा। सत्ता के इस ‘खेला’ का नुकसान अगर किसी को है तो वह आम जनता है, जो रोजमर्रा के जीवन में घुन की तरह पिस रही है। देश में राजनीति और लोकतंत्र का यह रूप जल्द बदलना चाहिये, खेला ऐसा हो, जो हम सबको मजबूत करे, मजबूर न करे।
÷लेखक दैनिक समाचार पत्र”आज” के नेशनल ब्यूरो इन चीफ़ के पद पर दिल्ली में कार्यरत हैं÷