★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
{प्रदीप कुमार भुयन की वजह से असम में लागू हुआ NRC,10 साल से लड़ रहे है घुसपैठियों को बाहर करने की लड़ाई}
(लिस्ट से बाहर रहे लोगो के नाम वोटरलिस्ट से हटाए जाने चाहिए, असम की संस्कृति और भाषा पर भी इसने किये हैं हमले कहा प्रदीप भुयन ने)
[प्रदीप ने वर्षों की मेहनत के बाद जुलाई 2009 में सुप्रीम कोर्ट मे डाली थी याचिका,जिस पर उसके आदेश पर चल रही एनआरसी प्रक्रिया]

♂÷असम में एनआरसी की फाइनल लिस्ट जारी हो चुकी है,इस लिस्ट में 19 लाख से अधिक लोग बाहर रह गए हैं।अब उन 19 लाख लोगों को ये साबित करना होगा कि क्यों न उन्हें विदेशी माना जाए।
एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (National Register Of Citizens) बीजेपी के प्रमुख मुद्दों में से एक रहा है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतने बड़े मुद्दे को सबसे पहले किसने उठाया।
एनआरसी के मुद्दे को उठाने वाले गुवाहाटी में शांत और गुमनाम जिंदगी जी रहे हैं।

असम में एनआरसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मुख्य याचिकाकर्ता अभिजीत शर्मा के मुताबिक इस मुद्दे को उठाने के पीछे एक बुजुर्ग सरकारी अधिकारी प्रदीप कुमार भुयन का हाथ है,10 साल पहले 2009 में प्रदीप कुमार भुयन ने इस दिशा में पहल की थी।प्रदीप कुमार ने एनआरसी को लेकर एक याचिका तैयार की थी और स्वयंसेवी संगठन असम पब्लिक वर्क्स (APW) के अध्यक्ष अभिजीत शर्मा को सुप्रीम कोर्ट में याचितकाकर्ता बनने के लिए मनाया था उसके बाद ही एनआरसी का मुद्दा पूरे देश में बहस का विषय बना।
असम में एनआरसी लागू करवाने के लिए तीन लोगों ने कानूनी लड़ाई लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
अभिजीत ने बताया था कि प्रदीप कुमार भुयन, उनकी पत्नी बांती भुयन और सरकारी अफसर नबा कुमार डेका की वजह से ही एनआरसी का मसौदा बन पाया। प्रदीप कुमार भुयन ने एनआरसी के मसले पर कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए अपने पास से मोटी रकम खर्च की है।
प्रदीप कुमार भुयन 1958 बैच के आईआईटी खड़गपुर से पास आउट हैं भुयन शिक्षाविद रहे हैं। 70 के दशक में उन्होंने गुवाहाटी में अंग्रेजी मीडियम स्कूलों की शुरुआत की थी।
एनआरसी का मुद्दा उछलने के बाद भी प्रदीप कुमार भुयन ने मीडिया से दूरी बनाए रखी थी। उन्होंने न किसी से बात की और न ही किसी को इंटरव्यू दिया। एनआरसी की पहली लिस्ट बाहर आने के बाद प्रदीप कुमार भुयन ने कुछ मीडियाकर्मियों से बात की।असम के लोग मानते हैं कि भुयन न होते तो असम में एनआरसी लागू नहीं होता।
84 साल के प्रदीप भुयन ने बताया कि पहली बार 2009 में एनजीओ चलाने वाले अभिजीत शर्मा उनके पास आए।अभिजीत का मानना था कि बाहरी घुसपैठिए असम को बर्बाद कर रहे हैं और एनआरसी का मुद्दा ठंडे बस्ते में पड़ा है।अभिजीत ने ही प्रदीप कुमार भुयन को एनआरसी का मसौदा बनाने के लिए तैयार किया।
प्रदीप कुमार भुयन बताते हैं कि मसौदा बनाना आसान नहीं था, इसके लिए असम मे रह रहे लोगों के डेटा की जरूरत थी उन्होंने 1971 के चुनाव आयोग का डेटा हासिल किया उसके बाद हर चुनाव क्षेत्र के वोटर्स और उसके चुनाव नतीजों की गहराई से पड़ताल की।जुलाई 2009 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में काफी मेहनत के बाद याचिका डाली सुप्रीम कोर्ट ने याचिका मंजूर कर ली।
प्रदीप कुमार ने एनआरसी के मसले पर आंदोलन में हिस्सा लिया था,वो मानते हैं कि सिर्फ राजनीति की वजह से इस मुद्दे को लटकाया जा रहा था, वोटबैंक पॉलिटिक्स असम को बर्बाद कर रही थी।बाहरी घुसपैठिए राजनीतिक ताकत हासिल कर रहे थे,असम के अपने ही लोग सबकुछ देखते हुए कुछ नहीं कर पा रहे थे।
लिस्ट से बाहर रह गए लाखों लोगों का अब क्या होगा,
एनआरसी की वजह क्या लाखों लोगों को दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ रहा है,लाखों लोग प्रताड़ित हुए हैं, हजारों लोगों को हिरासत में रखा गया, क्या ये मानवीय त्रासदी जैसा नहीं बन गया है।
इस सवाल के जवाब
में प्रदीप कुमार कहते हैं एनआरसी की प्रक्रिया इतनी लंबी और मशक्कत वाली है कि इसका असर होना ही था। एक फीसदी की गड़बड़ी भी लाखों लोगों को प्रभावित कर सकती है। सरकार को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए आखिर 1985 से इस मसले को क्यों लटका कर रखा गया।
प्रदीप कुमार का कहना है कि बाहर से आए लोगों को अचानक से देश के बाहर फेंक देना भी ठीक नहीं होगा।सरकार पहले ही कह चुकी है कि एनआरसी लिस्ट से बाहर रह गए लोगों को मौका दिया जाएगा,वो फॉरेन ट्रिब्यूनल में अपील कर सकते हैं हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
प्रदीप कुमार कहते हैं कि सबसे पहले लिस्ट से बाहर रहे लोगों के नाम वोटर्स लिस्ट से हटाए जाने चाहिए।उसके बाद उन्हें वर्क परमिट देकर काम धंधे में लगाया जा सकता है लेकिन ऐसे लोगों को बाहरी मानना पड़ेगा बाहरी घुसपैठ ही असम के लिए सबसे बड़ा खतरा है।असम की डेमोग्राफी से लेकर संस्कृति और भाषा पर भी इसने हमले किए हैं. एनआरसी दशकों की समस्या का समाधान है।
बताया जाता है कि केंद्र में 80 के दशक में जब प्रचण्ड बहुमत से काँग्रेस की राजीव गाँधी सरकार थी तब वह असम में घुसपैठियों के मुद्दे को लेकर असम में NRC लागू करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट गयी थी किन्तु वोटबैंक की पॉलिटिक्स ने काँग्रेस व उसकी सरकार को बैकफ़ुट पर ला दिया था।