★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
{मोदी जैसी है उनके मंत्री रामेश्वर तेली की कहानी, शादी नहीं की और ठेले पर सब्जियां बेचकर किया गुजारा}
[दो बार विधायक व डिब्रूगढ़ से सांसद चुने गए रामेश्वर को पीएम मोदी ने बनाया केन्द्रीय राज्यमन्त्री]
(रामेश्वर ने ऑल असम टी ट्राइब स्टूडेंट्स यूनियन से बतौर छात्र नेता पोलिटिकल कैरियर की शुरुआत कर पहुँचे है सँघर्षो के बूते शिखर पर)
♂÷ये हैं रामेश्वर तेली, जो मोदी सरकार में राज्य मंत्री हैं। तेली डिब्रूगढ़ से सांसद हैं। असम के दुलियाजान क्षेत्र से दो बार विधायक रह चुके तेली साल 2014 में डिब्रूगढ़ से भाजपा के टिकट पर पहली बार सांसद बने थे लेकिन बीते पांच सालों में वे राष्ट्रीय राजनीति में कोई खास पहचान नहीं बना सके। बावजूद इसके तेली को नरेन्द्र मोदी सरकार में मंत्री बनाया गया।
कभी खेतों में ठेला खींचने वाले तेली ने इससे पहले अपने राजनीतिक जीवन में इतनी बड़ी जिम्मेदारी कभी नहीं निभाई। 48 साल के तेली चाय जनजाति समुदाय से आते हैं। तेली असम से मंत्रिमंडल में शामिल एक मात्र चेहरा है। 30 मई की शाम जैसे ही तेली ने मंत्री पद की शपथ ली, उनका नाम अचानक राष्ट्रीय फलक पर चर्चा में आ गया।
तेली का परिवार सालों पहले छत्तीसगढ़ से असम के चाय बागानों में काम करने आया था और हमेशा के लिए यहीं बस गया। ऑयल इंडिया कंपनी में काम करने वाले तेली के छोटे भाई भुवनेश्वर तेली बताते हैं कि सालों पहले हमारे दादा-परदादा छत्तीसगढ़ से यहां चाय के बागानों में काम करने आए थे। हम चार भाई बहनों में रामेश्वर सबसे बड़े हैं और हम सभी का जन्म यहीं हुआ। हमारा बचपन काफी आर्थिक तंगी में गुजरा। पिता बुद्धू तेली ड्राइवर थे और मां दुक्का तेली चाय बागान में मजदूरी करती थी। रामेश्वर भैया और मैं चाय की गुमटी के सामने पान सुपारी का डाला लगाया करते थे। कई दफा हमने रास्ते के किनारे सब्जियां बेची है। तेली के सहायक देबजीत दत्ता कहते हैं कि 10 साल तक विधायक और पिछले पांच साल से लोकसभा सांसद होने के बाद भी तेली दुलियाजान के टिपलिंग पुराना घाट इलाके में पांस और टिन के बने घर में अपनी मां के साथ रहते हैं। साल 2011 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद तेली आजीविका के लिए मुर्गी पालन के काम में लग गए थे। कई बार खेत में सामान ढोने के लिए वे खुद ठेला खींचते थे।
आर्थिक स्थिति के कारण तेली यादा पढ़ाई नहीं कर सके लेकिन समाज के लिए कुछ करने का जज्बा उनमें शुरु से था। अपने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में वे इतने व्यस्त हो गए कि उन्होंने शादी तक नहीं की। तेली के पिता का देहांत हो चुका है और परिवार में अब भी उनके कई चाचा ठेला चलाकर, गैस सिलेंडर की डिलीवरी कर और अखबार बेचकर अपना गुजारा करते हैं। बकौल भुवनेश्वर हम बेहद साधारण लोग हैं। भैया को आज यह मुकाम यहां के लोगों की बदौलत ही मिला है। हमारी मां बहुत खुश है। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि चाय बागा में काम करने वाली एक मजदूर का बेटा एक दिन देश का मंत्री बन जाएगा।
रामेश्वर तेली ने ऑल असम टी ट्राइब स्टूडेंट्स यूनियन में बतौर छात्र नेता काम करते हुए इलाके में राजनीतिक जमीन तैयार की। तेली जिस विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र से आते हैं उन सीटों पर चाय जनजाति के मतदाताओं के वोट निर्णायक होते हैं। छात्र संगठन में काम करने के दौरान ही तेली ने अपने इलाके के चाय जनजाति समुदाय के लोगों में अच्छी पकड़ बना ली थी। तेली 12 जुलाई 1999 को भाजपा में शामिल हुए। असम की राजनीति में यह वो दौर था जब क्षेत्रीय पार्टी असम गण परिषद के शासन के बाद कांग्रेस बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। उस समय प्रदेश में भाजपा काफी कमजोर पार्टी मानी जाती थी। पिछली मोदी सरकार में रेल राज्य मंत्री रहे राजेन गोंहाई असम भाजपा के अध्यक्ष थे और उस दौर में यहां भाजपा का टिकट मिलना इतना मुश्किल काम नहीं था।
लिहाजा चाय जनजाति के मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए 2001 के विधानसभा चुनाव में तेली को भाजपा ने दुलियाजान से टिकट दे दिया। ये एक ऐसी सीट थी जहां कांग्रेस को हराना लगभग नामुमकिन था लेकिन तेली ने उस साल भारी मतों से जीत दर्ज की और ऊपरी असम से भाजपा के इकलौते विधायक बने। इस तरह दूसरी बार भी तेली दुलियाजान विधानसभा से चुने गए लेकिन साल 2011 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार झेलनी पड़ी। लोगों का आरोप था कि तेली बतौर विधायक अपने इलाके का उतना विकास नहीं करा पाए जितना दूसरे इलाकों का हुआ।
डिब्रूगढ़ लोकसभा सीट पर चाय जनजाति के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। साल 2014 में नरेन्द्र मोदी की लहर थी और तेली को टिकट दिया गया था। इस बार भी ऐसा ही हुआ लोग मोदी को वोट डालने निकले थे। डिब्रूगढ़ लोकसभा सीट का इतिहास रहा है। इससे पहले चाय जनजाति से आने वाले कांग्रेस के पवन सिंह घटवार यूपीए-2 की मनमोहन सिंह सरकार में राज्य मंत्री बनाए गए थे। तेली भी उसी चाय जनजाति से हैं।