★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
[1985-89 के दौरान पढ़ाई के लिए भारत आए थे कीनियाई रिचर्ड न्यांगका टोंगी]
{200 रुपए की जगह 19,200 रुपए लौटा कर ली राहत की साँस सांसद रिचर्ड न्यांगका टोंगी ने}
♂÷कहते है कर्ज़ को भूलना मुश्किल होता है और ईमानदार देनदार को जब भी अवसर मिलता है वह अपने कर्जदाता का कर्ज़ अवश्य चुकाता है।
ऐसे ही एक विदेशी वीआईपी ने भारत आकर अपने कर्ज़ को साधारण दुकानदार को लौटा कर कर्जमुक्त तो हुए ही साथ ही साथ उन्होंने एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया कि कर्ज़ लौटाना एक बहाना था शायद पुराने दिनों को इसी बहाने फिर से याद करना भी एक मौका था।
न्यांगका टोंगी केन्या देश में सांसद हैं और पिछले रविवार को वे महाराष्ट्र के औरंगाबाद में इस सामान्य दुकानदार परिवार के अतिथि बने ये विदेशी सांसद औरंगाबाद में इस दुकानदार के यहाँ आए थे और वो भी सिर्फ 200 रुपए की उधारी चुकाने के लिए। यद्यपि इन्हें 200 रुपए की उधारी चुकाने के लिए 4,810 किलोमीटर की दूरी तय करने में पूरे 30 साल लग गए, परंतु अब उनके मन से उधारी का यह बोझ हल्का हो गया है।
रिचर्ड न्यागका टोंगी अफ्रीकी देश कीनिया के सांसद होने के साथ ही केन्याई संसद की विदेश मामलों की समिति के उपाध्यक्ष भी हैं। हाल ही में टोंगी भारत यात्रा पर आए थे और उन्होंने अपनी 200 रुपए की उधारी लौटाने के लिए औरंगाबाद भी जा पहुँचे। दिल्ली में निर्धारित कार्यक्रम समाप्त होते ही रिचर्ड न्यागका टोंगी औरंगाबाद में काशीनाथ गवली के घर पहुँचे। काशीनाथ को देखते ही रिचर्ड की आँखें नम हो गईं, तो गवली परिवार के भी सभी लोग भावुक हो गए। रिचर्ड को तब चैन आया, जब उन्होंने काशीनाथ को 200 रुपए लौटा दिए, जिसकी उधारी 1989 से उनके सिर पर थी।
वास्तव में बात यह है कि 80 के दशक में अफ्रीका महाद्वीप से हजारों विद्यार्थी पढ़ाई के लिए भारत आया करते थे। पूर्वी अफ्रीका के केन्या में रहने वाले रिचर्ड न्यागका टोंगी भी ऐसे ही विद्यार्थियों में से एक थे। टोंगी 1985 से 1989 के दौरान महाराष्ट्र के औरंगाबाद में वानखेड़ेनगर स्थित मौलाना आज़ाद कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। इस दौरान टोंगी ने कॉलेज के सामने ही एक कमरा किराए पर ले रखा था। मकान मालिक थे काशीनाथ गवली, जिनकी किराने की एक दुकान भी थी। टोंगी काशीनाथ की दुकान से ही ज़रूरत का सामान खरीदते थे। इन पाँच वर्षों के दौरान टोंगी पर काशीनाथ की 200 रुपए की उधारी हो गई। टोंगी सोचते थे कि वे पढ़ाई पूरी होने के बाद स्वदेश लौटने से पहले उधारी चुका देंगे, परंतु ऐसा हुआ नहीं या हो न सका। पढ़ाई पूरी होते ही रिचर्ड न्यागका टोंगी स्वदेश लौटने की खुशी में बिना उधारी चुकाए ही औरंगाबाद से घर के लिए रवाना हो गए। जल्दबाजी में कमरा खाली कर केन्या पहुँचे टोंगी को घर पहुँच कर याद आया कि काशीनाथ की उधारी चुकाना रह गई।स्वदेश लौटने के बाद रिचर्ड न्यागका टोंगी आगे चल कर राजनीति में शामिल हो गए। वे कीनिया की जुबली पार्टी ऑफ केन्या के नेता हैं और वर्ष 2017 में हुए आम चुनाव में नयबरी लोकसभा लोकसभा क्षेत्र से सांसद के रूप में निर्वाचित हुए। यद्यपि जीवन और राजनीति में लगातार सफलताओं की सीढ़ी चढ़ रहे टोंगी के हृदय को हमेशा काशीनाथ की 200 रुपए की उधारी की बात कचोटती रहती। भारत आने का अवसर मिल नहीं रहा था, परंतु 30 वर्षों के बाद अंतत: उन्हें यह अवसर मिल ही गया। पिछले सप्ताह कीनिया का एक शिष्टमंडल भारत आया, जिसमें रिचर्ड न्यागका टोंगी भी शामिल थे। दिल्ली का कार्यक्रम पूरा होते ही टोंगी गत 7 जुलाई रविवार को पत्नी के साथ औरंगाबाद पहुँचे। औरंगाबाद आ तो गए, परंतु काशीनाथ का घर कैसे ढूँढते। टोंगी को तो काशीनाथ का नाम तक याद नहीं था। 30 साल पहले काशीनाथ जिस वानखेड़े नगर में रहते थे, तब काशीनाथ गवली गंजी पहन कर दुकान चलाया करते थे, वहाँ अब सब कुछ बदल चुका था। हालाँकि रिचर्ड न्यागका टोंगी का भाग्य अच्छा था। दो घण्टों की खोजबीन के बाद वे उसी दुकान के पास जा पहुँचे, जहाँ से तीस साल पहले वे सामान खरीदा करते थे और उनकी भेंट काशीनाथ मार्तंडराव गवली से हो ही गई। रिचर्ड न्यागका टोंगी ने सबसे पहले तीस साल पुरानी उधारी लौटाई, परंतु सिर्फ 200 रुपए नहीं, अपितु 250 यूरो (19,500 रुपए)। इसके बाद ही उन्होंने राहत की साँस ली। काशीनाथ को भी 80 के दशक का अपना ज़माना याद आ गया, जब वे विदेशी विद्यार्थियों को किराए पर कमरे उपलब्ध कराते थे। उनकी किराने की दुकान का नाम श्री कृष्ण प्रोविज़न स्टोर था।