★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
{आईएएस गोपीनाथ ने नौकरी से इस्तीफ़ा देते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन के खिलाफ मैंने छोड़ी नौकरी}
[पूर्व आईएएस गोपीनाथ ने कहा कि आर्टिकल 370 ख़त्म करना सरकार का अधिकार है किंतु लोकतंत्र में लोगो को ऐसे फ़ैसले पर प्रतिक्रिया देने का भी हक़ है]
(2018 में केरल में आई बाढ़ के दौरान पहचान छिपाकर स्वयंसेवको के साथ राहत कार्यों में हिस्सा लेने वाले गोपीनाथ ने अपने इस्तीफे में कश्मीर इश्यू का नही किया है ज़िक्र)

♂÷पूर्व आईएएस अफसर कन्नन गोपीनाथ ने रविवार को कहा कि घाटी के लोगों को अनुच्छेद 370 को लेकर मनाया जाना चाहिये, लेकिन उन्हें विचार प्रकट करने का मौका न दिए जाने से ऐसा नहीं हो सका। कश्मीर में “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन” के खिलाफ अपने विचार प्रकट करने के लिये कन्नन ने नौकरी से इस्तीफे का दावा किया है।
2012 बैच के अधिकारी गोपीनाथन (32) उस वक्त सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने 2018 में केरल में आई बाढ़ के दौरान अपनी पहचान छिपाकर स्वयंसेवकों के साथ राहत और बचाव कार्यों में हिस्सा लिया था। संघ शासित प्रदेशों दमन और दीव तथा दादरा एवं नागर हवेली के ऊर्जा विभाग में सचिव रहे गोपीनाथन ने पिछले बुधवार को इस्तीफा दे दिया था। उनके त्यागपत्र में कश्मीर मुद्दे का कोई जिक्र नहीं था।
गोपीनाथन ने रविवार को कहा, “मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहता हूं लेकिन सेवा में रहते मेरे लिये ऐसा करना नामुमकिन था. इसमें कई नियम-कायदे होते हैं।
केरल के कोट्टायम जिले के निवासी गोपीनाथन ने कहा कि अनुच्छेद 370 का निरसन “चुनी हुई सरकार का अधिकार है” लेकिन लोकतंत्र में लोगों को ऐसे फैसलों पर प्रतिक्रिया देने का अधिकार है।
उन्होंने कहा, “कश्मीर पर फैसला लिये जाने के करीब 20 दिन बाद भी वहां लोगों को इस पर प्रतिक्रिया देने की अनुमति नहीं है और लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह स्वीकार्य नहीं है।निजी तौर पर, मैं इसे स्वीकार नहीं कर सका साथ ही ऐसे समय में अपनी सेवाएं भी जारी नहीं रख सकता था।
उन्होंने कहा, “यह ऐसी चीज नहीं है जिसे मैं अपने देश में स्वीकार कर सकूं. मुझे पता है कि मेरी स्वीकृति से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन मैं यह जाहिर करना चाहता था कि यह सही नहीं है। हमें उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अनुमति देनी चाहिए, अगर उन्हें यह पसंद नहीं है तो हम उन्हें समझाने की कोशिश कर सकते हैं, हम उन्हें बंद करके और और विचार व्यक्त करने से रोककर नहीं मना सकते।