लेखक~डॉ. के.विक्रम राव

♂÷ऑस्ट्रेलिया के सभी अख़बारों का पहला पन्ना काला क्यों और हमारे देश भारत का प्रथम पृष्ठ मोदी जी के विज्ञापन से आए दिन भरें हुए ।
ऑस्ट्रेलिया में एक अभूतपूर्व घटना में सोमवार सुबह देश के अख़बारों का पहला पन्ना काला छापा गया।
अख़बारों ने देश में मीडिया पर लगाम लगाने की कोशिशों का विरोध करने के लिए ये क़दम उठाया है
अख़बारों का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया सरकार का सख़्त क़ानून उन्हें लोगों तक जानकारियाँ ला पाने से रोक रहा है
अख़बारों ने पन्ने काले रखने का ये तरीक़ा इस साल जून में ऑस्ट्रेलिया के एक बड़े मीडिया समूह ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (एबीसी) के मुख्यालय और एक पत्रकार के घर पर छापे मारने की घटना को लेकर जारी विरोध के तहत उठाया।
ये छापे व्हिसलब्लोअर्स से लीक हुई जानकारियों के आधार पर प्रकाशित किए गए कुछ लेखों के बाद मारे गए थे।
ये अभियान चलाने वालों का कहना है कि पिछले दो दशकों में ऑस्ट्रेलिया में ऐसे सख़्त सुरक्षा क़ानून लाए गए हैं जिससे खोजी पत्रकारिता को ख़तरा पहुँच रहा है।
इन अख़बारों का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानूनों की वजह से रिपोर्टिंग पर अंकुश लगाया जा रहा है और देश में एक “गोपनीयता की संस्कृति” बन गई है।
अब बात भारत की तो हमारे यहाँ लगातार पत्रकार मारे जा रहे है ।
शासकीय विद्यालयों द्वारा दिए जाने वाले मध्यान भोजन में नमक रोटी कि रिपोर्टिंग करने पर मुकदमा लगाया जा रहा है ,जेल भेजा जा रहा है।
सरकार कि नीतियों को जनता तक दिखाने पर उन्हें देश विरोधी साबित किया जा रहा है ।
सरकार कि चापलूसी करने वाले पत्रकारों को Y+ श्रेणी कि सुरक्षा दी जा रही है ,फिर भले ही वो पत्रकार ब्लैकमेल करने के आरोप में तिहाड़ जेल हो आया हो ।
महिला पत्रकार कि हत्या पर महिला पत्रकार को कुत्ती तक बोला जाता है और ऐसी सोच वालों को हमारे देश के नेता-प्रधानमंत्री फॉलो करते है ।
भारत मे भी जनता को वही दिखाया जा रहा है ,केवल जो सरकार चाहती है ।खोजी पत्रकारिता का यहाँ भी दमन ही किया जा रहा है ।
बाज़ारू ,सुविधाभोगी हुई पत्रकारिता भारत के लिए अति हानिकारक साबित हो रही है ।
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2019 यानी ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2019’ में नॉर्वे शीर्ष पर है। भारत में बीते साल अपने काम की वजह से कई पत्रकारों की हत्या कर दी गई।
सूचकांक में कहा गया है कि भारत में प्रेस स्वतंत्रता की मौजूदा स्थिति में से एक पत्रकारों के खिलाफ हिंसा है, जिसमें पुलिस की हिंसा, नक्सलियों के हमले, अपराधी समूहों या भ्रष्ट राजनीतिज्ञों का प्रतिशोध शामिल है।
रिपोर्ट में भारत के संदर्भ में हिंदुत्व को नाराज करने वाले विषयों पर बोलने या लिखने वाले पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर घृणित अभियानों पर चिंता जताई गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जब महिलाओं को निशाना बनाया जाता है तो यह अभियान ज्यादा उग्र हो जाता है।
2018 में भारत में मीडिया में ‘मी टू’ अभियान के शुरू होने से महिला संवाददाताओं के संबंध में उत्पीड़न और यौन हमले के कई मामलों से पर्दा हटा था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 2019 के आम चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ भाजपा के समर्थकों द्वारा पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं।
~लेखक आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय अध्यक्ष व वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं।