लेखक~अरविंद जयतिलक
♂÷पश्चिम एशिया (मध्य-पूर्व) एक बार फिर बारुद के ढे़र पर है। अल-अक्सा मस्जिद कंपाउंड में इजरायली पुलिस और फिलीस्तीनियों के बीच शुरु हुआ झड़प अब जंग के रुप में तब्दील हो चुका है। आसमान से बरसती मिसाइलें और बमों से दोनों पक्ष बुरी तरह प्रभावित हंै। अब तक एक सैकड़ा से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और करोड़ों की संपत्ति नष्ट हुई है। चरमपंथी संगठन हमास ने रेगिस्तान के बीच बसे शहर बीर-शिवा और एश्कलोन को निशाना बनाया है तो इजरायल ने गाजा पट्टी स्थित कई महत्वपूर्ण इमारतों के साथ एसोसिएट प्रेस और अल जजीरा के कई महत्वपूर्ण इमारतों को ध्वस्त कर दिया है। इजरायल के हवाई हमले में गाजा के सिटी कमांडर बसीम इस्सा की मौत हो चुकी है जिसे हमास की बड़ी क्षति माना जा रहा है। दोनों देशों के मौजूदा विवाद पर नजर दौड़ाएं तो हालात उस वक्त खराब हुए जब इजरायली सुप्रीम कोर्ट ने पूर्वी जेरुसलम के शेख जर्रा नामक स्थान से फिलीस्तीनियों के सात परिवारों को निकाले जाने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने उन घरों को खाली करने का आदेश दिया जो 1948 में इजरायल के गठन से पहले यहूदी रिलीजन एसोसिएशन के अधीन थे। सुप्रीम कोर्ट केफैसले के बाद फिलीस्तीनियों को निकालक यहूदियों को बसाने की तैयारी हो रही थी उससे फिलीस्तीनी भड़क गए। नतीजतन इजरायल के कई शहर और कस्बे दंगे की चपेट में आ गए। इन शहरों और कस्बों में अरब और यहूदियों के बीच मारकाट जारी है। लोद शहर जो कि अरब और यहूदियों की मिलीजुली आबादी वाला शहर है, वहां स्थिति सबसे अधिक खराब है। हिंसा की वजह से इमर्जेंसी लगा दिया गया है। बिगड़ते हालात के लिए राजनीतिक कारण को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। ध्यान देना होगा कि मार्च में संपन्न हुआ चुनाव बेनतीजा रहा और बेंजामिन नेतान्याहू को देश का अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया। अब चूंकि बहुमत साबित कर स्थायी सरकार बनाने की तय सीमा खत्म हो चुकी है ऐसे में नेतान्याहू की मुश्किलें बढ़ गयी है। फिलहाल उनकी सरकार को स्थिरता तभी मिलेगी जब अरब लोगों की समर्थन वाली पार्टी यूनाइटेड अरब लीस्ट के लीडर मंसूर अब्बास का समर्थन मिलेगा। लेकिन चूंकि यूनाइटेड अरब लीस्ट पार्टी यहूदी विरोधी मानी जाती है ऐसे में बेंजामिन नेतान्याहू के लिए नए सियासी समीकरण को जमीन पर आकार देना आसान नहीं है। ऐसे में नेतान्याहू के विरोधी सक्रिय हैं और हालात को बदतर होने देना चाहते हैं। इससे निपटने के लिए इजरायल ने अपना मिलिट्री आॅपरेशन तेज करने और गाजा बाॅर्डर पर सैनिकों की संख्या बढ़ाने का एलान कर दिया है।
इजरायल के रक्षामंत्री बेनी गैट्स ने कहा है कि हमारी सेना के गाजा पट्टी और फिलीस्तीन में हमले तब तक बंद नहीं होंगे जब तक दुश्मन पूरी तरह शांत नहीं हो जाते। उधर हमास के नेता हानिया ने भी आग उगलते कहा है कि अगर इजरायल जंग बढ़ाना ही चाहता है तो हम भी रुकने को तैयार नहीं हैं और इजरायलियों की जिंदगी नरक कर देंगे। दोनों तरफ के तल्ख तेवर से समझना कठिन नहीं रह जाता कि मध्य-पूर्व के हालात कितने खतरनाक होने वाले हैं। गौर करें तो इजरायल और हमास के बीच मौजूदा टकराव वर्ष 2014 की गर्मियों में 50 दिन तक चले युद्ध के बाद अब तक का यह सबसे बड़ा टकराव है। अच्छी बात है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा दोनों पक्षों से तनाव कम करने की अपील की जा रही है। लेकिन हालात सुधरेंगे इसमें संदेह है। ऐसा इसलिए कि दोनों पक्ष एकदूसरे का इतिहास-भूगोल बदलने पर आमादा है। दोनों के पीछे अंतर्राष्ट्रीय गोलबंदी की सच्चाई भी किसी से छिपी नहीं है।
इजरायल को अमेरिका का खुला समर्थन हासिल है वहीं फिलीस्तीन के कट्टरपंथी संगठन हमास को सीरिया और ईरान का समर्थन हासिल है। ईरान इजरायल के खिलाफ हमास की खुलकर मदद करता है। हमास का अन्य आतंकी संगठनों से भी मिलीभगत है। उसकी मंशा विश्व में इस्लाम का परचम लहराना और इजरायल को नेस्तनाबूंद करना है। अमेरिका ईरान के यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम और मौजूदा तनाव को लेकर पहले से ही भड़का हुआ है। ऐसे में वह नहीं चाहता है कि हमास फिलीस्तीन में मजबूत और इजरायल कमजोर हो। गौरतलब है कि हमास फिलीस्तीनी सुन्नी मुसलमानों की एक सशस्त्र संस्था है जो फिलीस्तीनी राष्ट्रीय प्राधिकरण की मुख्य पार्टी है। इसका गठन 1987 में मिश्र और फिलीस्तीन के मुसलमानों ने किया था। इसके सशस्त्र विभाग का गठन 1992 में हुआ। इसका उद्देश्य इजरायली प्रशासन के स्थान पर इस्लामिक शासन की स्थापना करना है। गाजा पट्टी क्षेत्र में इसका विशेष प्रभाव है। गाजा पट्टी इजरायल के दक्षिण-पश्चिम में स्थित तकरीबन 6-10 किमी चैड़ी और 45 किमी लंबा क्षेत्र है। इसके तीन ओर इजरायल का नियंत्रण है और दक्षिण में मिश्र है। यहां की आबादी तकरीबन 15 लाख के आसपास है। पश्चिम एशिया के संकट को समझने के लिए इजरायल और फिलीस्तीन के इतिहास में झांकना जरुरी है। पश्चिम एशिया में स्थित इजरायल तीन ओर से अरब राज्यों से घिरा हुआ है। 29 नवंबर 1947 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने फिलीस्तीन का विभाजन करके एक भाग ज्यूज यानी यहूदियों को तथा दूसरा भाग अरबों को दे दिया। 15 मई, 1948 को यहूदियों ने अपने हिस्से को इजरायल नाम दिया। इजरायल का क्षेत्रफल तकरीबन 21946 वर्ग किमी तथा आबादी तकरीबन 70 लाख के आसपास है। इजरायलियों ने कठिन परिश्रम से अपने छोटे भू-भाग रेगिस्तान को हरा-भरा कर दिया। फिलीस्तीन पर नजर डालें तो यह भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर स्थित ऐतिहासिक राज्य था जिसकी राजधानी जेरुसलम थी। यह विश्व के महान ऐतिहासिक स्थलों में से एक और यहूदी तथा ईसाई धर्मों का जन्म स्थान है। 1930 के दशक में जर्मनी में नाजी अत्याचारों के कारण भारी संख्या में यहूदी शरणार्थी यहां आकर बसे। इससे यहूदियों और अरबों में शत्रुता बढ़ गयी। वह शत्रुता अब विकराल रुप धारण कर चुक है। गौरतलब यह कि इजरायल के अस्तित्व को अरब जगत स्वीकार नहीं करता है। उनका मानना है कि यहूदियों ने उनकी जमीन पर कब्जा कर उन्हें बेदखल कर दिया। अरब जगत इजरायल को एक खंजर की तरह मानता है जो अरब जगत को काटकर टुकड़ों में विभक्त कर दिया है। बता दें कि इजरायल राज्य की स्थापना के साथ ही अरब-इजरायल युद्ध शुरु हो गए और इजरायल में रहने वाले तकरीबन 7 लाख अरब नागरिक भागकर पड़ोसी राज्यों में शरण लिए। तब 1948 में इजरायल में बसे अरबों के लिए अर्मिस्टाइस रेखा का निर्धारण हुआ जिसके तहत गाजा पट्टी में अरब जो सुन्नी मुस्लिम हैं, रहना सुनिश्चित हुआ। लेकिन 1948 से लेकर 1967 तक इस पर मिश्र का अधिकार रहा। 1967 की छः दिन की लड़ाई में इजरायल ने अरबों को निर्णायक रुप से पराजित कर इस पट्टी पर अपना अधिकार जमा लिया। किंतु 38 वर्ष बाद 2005 में इजरायल ने फिलीस्तीनी स्वतंत्रता संस्था के साथ हुए समझौते के तहत गाजा पट्टी से बाहर हटने का निर्णय लिया और साथ ही उसने गाजा पट्टी और पश्चिमी तट पर स्थित यहूदी बस्तियों को हटाने का भी फैसला कर लिया। लेकिन स्थिति तब बिगड़ गयी जब चरमपंथी संगठन हमास ने 2006 में फिलीस्तीनी संसद के चुनावों में कुल 132 सीटों में 76 सीटें कब्जा ली और इजरायल को मान्यता देने से इंकार कर दिया। उसने 2008 में संघर्ष विराम के बाद भी गाजा पट्टी से इजरायल के दक्षिणी हिस्से पर हमला बोलना शुरु कर दिया। दरअसल हमास का मकसद इजरायल को समाप्त करना है। गौर करें तो मौजूदा संघर्ष के लिए भी सर्वाधिक रुप से हमास ही जिम्मेदार है। सच कहें तो हमास की कट्टरपंथी जेहादी सोच ने ही पश्चिम एशिया यानी मध्य-पूर्व की नियति में जहर घोल दिया है। कभी वह अरब राष्ट्रों के अन्तर्कलह से आक्रांत दिखता है तो कभी लेबनान का गृहयुद्ध उसकी शांति को ग्रहण लगा देता है। कभी इराक-ईरान संघर्ष और खाड़ी युद्ध से भूमध्यसागरीय तट थर्रा उठता है तो कभी इजरायल-फलस्तीन का संघर्ष सर्वनाश का मंजर परोसता है। विश्व समुदाय को समझना होगा कि इजरायल-फिलीस्तीन संघर्ष जितना जल्द समाप्त हो मध्य-पूर्व ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए अच्छा होगा।
÷लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक/सामाजिक समीक्षक हैं÷