लेखक~डॉ.के. विक्रम राव
♂÷पंजाब विधानसभा निर्वाचन में अभियान का यह प्रश्न खास मुद्दा बन रहा है। अमूमन पार्टियां विचार करती रहती है कि नयी सरकार का मुख्यमंत्री कौन हो? लाजिमी है कि वह कुशल तथा योग्य हो। अनुभवी हो, जनप्रिय हो, जिताऊ हो। मगर वरिष्ठ कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने अपनी ही पार्टी से मांग की है कि मुख्यमंत्री की अपेक्षित विशिष्टताओं पर विचार शुरु कर दें। तिवारी कांग्रेस के ग्रुप—23 के सदस्य है जिनसे सोनिया गांधी असहमत रहती है। ये जिंजर (अदरक) ग्रुप जो पार्टी की लगातार पराजय से गत दशक से खिन्न है।
दो अनिवार्य अर्हतायें पंजाब के मुख्यमंत्री में मनीष तिवारी ने सुझाया है। यह पंजाब के कांग्रेस के परिवेश में विशेषकर है। पहला है और बुनियादी भी : यही कि मुख्यमंत्री ”विदूषक, मसखरा या जोकर” जैसा न हो। अर्थात संयमित हो, गंभीर हो, विचारशील हो। मतदान में मुफ्तखोरी को बढ़ाने जैसा, लुभावने वायदे न करे। जनता द्वारा खारिज न किया जा चुका हो। सुशासन हेतु प्रतिबद्ध हो। मगर आशंका है कि यदि यही गुण कांग्रेस अध्यक्ष के निर्वाचन के समय भी उठे तो? मां, बेटा, बेटी तो तब प्रारंभिक चक्र में ही कट जायेंगे।
मनीष तिवारी के प्रस्ताव अपनी समग्रता में प्रगतिशील, दूरगामी सुधार के सूत्र है। सबसे पुराने राजनीतिक दल के विस्तार और विकास हेतु यह मार्गदर्शक हैं। तिवारी का यह सुविचारित फार्मूला कारगर प्रतीत होता हैं। कारण यही कि पंजाब के कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू तथा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी दोनों हलके—फुलके व्यक्तित्व वाले हैं। एक टीवी पर्दे का जानामाना हंसोड़ा है। दूसरा (चन्नी) सुशासन के मानदण्डों से कोसो दूर है। तिवारी ने जो क्षमतायें निगदित की है उनमें सुनील झाखड जो पिछले तीन आम चुनाव हार चुकें हैं स्वत: दरकिनार हो जायेंगे। अचरज है कि झाखड राज्य चुनाव अभियान समिति के मुखिया हैं। अर्थात खुद हारे हुये किसे विजयी बना पायेंगे? पार्टी तथा शासन के दोनों मुखिया भी स्तर के निचले पायदान वाले हैं। अभी प्रत्याशियों का चयन बाकी है कि कौन सक्षम है?
सेनापति का जो चुनाव हो उसके सर्वोच्च भूमिका में गुणदोष जांच आवश्यक है। यहां मतलब मुख्यमंत्री चन्नी के चरित्र से है। उन्हें प्रियंका वाड्रा ने मुखिया नामित किया। केवल दलित जाति का होने के नाते। उनके सजातीय रामदासिया सिख 32 प्रतिशत वोटर हैं। अब गौर फरमाइये मुख्यमंत्री पर। इन पर एक महिला आईएएस अधिकारी द्वारा लगाये गये ”यौन अपराध” के आरोप की जांच पंजाब राज्य महिला आयोग कर रहा है। इस पर गमनीय है कि इस नारी को चन्नी साहब मोबाइल पर कामुक सुझाव प्रेषित करते रहे। रेत खनन काण्ड में इस नेता पर दोषारोपण हो चुका है। अपने शासकीय आवास का प्रवेश द्वार तुड़वाकर मुख्यमंत्री ने पूर्व दिशा वाला बनवाया। महंगी नयी सड़क सो अलग। गृह प्रवेश चन्नी ने हाथी पर सवार होकर किया। उनके निजी ज्योतिषी ने ऐसा परामर्श दिया था।
मुख्यमंत्री का एक दुर्लभ चित्र प्रकाशित हुआ है जिसमें एक महिला आवेदक को अवांछित रीति से मुख्यमंत्री अवैध संबंध हेतु फुसला रहे हैं। यूं भी इस दलित राजनेता से महिला कर्मचारी मिलने से हिचकती रहतीं हैं।
उधर नवजोत सिद्धू तो जानेमाने टीवी चैट शो में हल्की—फुलकी टिप्पणियों के लिये प्रसिद्ध हैं। इसीलिये मनीष तिवारी ने व्यवहारिक गांभीर्य को अनिवार्य आवश्यक गुण निर्धारित किया है। किन्तु सिख—बहुल पंजाब में केवल सरदार ही सीएम बनना लाजिमी है। वर्ना मजहबी विषमता उभर सकती है। इस चुनावी दौड़ में भाजपा तो बिलकुल निचले पायदान पर है। अकाली और कांग्रेस ही स्पर्धा में हैं।
गौरतलब बिन्दु यह हो सकता है कि कप्तान अमरिन्दर सिंह की लोक—कांगेस पार्टी का समर्थन मिलने से सहयोगी पार्टी भी विरोधी का प्रभावी सामना कर सकती है। यदि सोनिया—कांग्रेस पंजाब में सत्ता पर नहीं लौटती है तो भारतवर्ष के मानचित्र में यह राष्ट्रव्यापी पार्टी पश्चिमी भाग से बिल्कुल ही सिकुड़ जायेगी। दक्षिण, पश्चिमोत्तर तथा पूर्वोत्तर में लुप्त होती जा रही है। कांग्रेस बस बालुई राजस्थान और आदिवासी छत्तीसगढ़ तक ही रहेगी। मुगल सम्राट अकबर की तुलना में बहादुर शाह जफर केवल चान्दनी चौक—लाल किले तक सीमित हो गये थे। सिर्फ लघु भारत का राज ही हाथ में रह गया था। नेहरु—कांग्रेस के विशाल राज्य के सामने सोनिया—कांग्रेस का शासन सिकुड़ता जा रहा है। अगर पंजाब भी छूट गया तो यह केवल आंचलिक पार्टी ही रह जायेगी।
भूगोल का यह क्रूर व्यंग होगा कांग्रेस के साथ।

÷लेखक IFWJ के नेशनल प्रेसिडेंट व वरिष्ठ पत्रकार/स्तम्भकार हैं÷