लेखक~डॉ.के. विक्रम राव
♂÷आज किस्सा क्रिकेट वाला। गत पखवाड़ा, एडिलेड मैदान (17 दिसंबर 2020)।
केवल 36 रन पर सभी भारतीय बल्लेबाज आउट हो गये थे। हमारा शर्म से सिर झुक गया था।
कल (29 दिसंबर 2020) मेलबोर्न में महाबली आस्ट्रेलिया को आठ विकेट से हरा कर भारत ने भरपूर बदला लिया। गजब की जीत रही। विराट कोहली नहीं खेले। गर्भवती अनुष्का की परिचर्या में थे।
ईशांत शर्मा, मोहम्मद शमी तथा उमेश यादव भी नहीं थे।
ऐसी दीन दशा भारतीय क्रिकेट टीम की शायद ही कभी रही हो। मगर खास बात रही कि हैदराबादवासी, तेलुगुभाषी आटो रिक्शा चालक के बेटे मोहम्मद सीराज ने अपने प्रथम मैच में ही पांच विकेट लेकर दिल खुश कर दिया। क्या संयोग है?
ऐतिहासिक मेलबोर्न स्टेडियम की इसी माह चार वर्ष पूर्व अपनी यात्रा याद आ गयी। तब का एक पोस्ट (24 दिसम्बर 2016) पेश है आप के सामने।
नौश फरमायें। :
खेल हो या सहाफत, आस्ट्रेलिया नायाब है !!
लखनऊ और मेलबोर्न में एक सादृश्य है। जुड़वापन लिये। क्रिकेट दोनों का नशा है। आस्ट्रेलिया में जुनून, तो भारत में सनक। खब्त की हद छूता। चन्द विषमतायें भी हैं। दिन का राजा लखनऊ में जब बीच आकाश पर सवार रहता है, तो मेलबोर्न में वह ढलान पर, अस्ताचल की ओर। यूपी में दिसंबर की गलनभरी ठण्ड, यही माह वहां मई के माफिक गर्मी। अबतक मैंने दक्षिणी गोलार्ध देखा नहीं था। पांचों महाद्वीप जा चुका हूँ। गत सप्ताह (दिसम्बर, 2016) यह अधूरापन भी खत्म हो गया। ब्रिस्बेन, गोल्ड कोस्ट (जयसलमेर जैसा सुनहरा), सिडनी, हेमिल्टन द्वीप आदि देखा। उत्तर प्रदेश तथा विक्टोरिया प्रान्त में पत्रकारी नाता भी है। इलाहाबाद (अब लखनऊ) के दैनिक पायोनियर के संपादक रुडयार्ड किप्लिंग की आरामगाह मैंने मेलबोर्न में देखी, जहां 1931 में वे टहलते थे। इसी कवि ने मुहावरा रचा था ”श्वेतनस्ल का दायित्व”। ब्रिटिश उपनिवेशवाद की दार्शनिक तार्किकता का मूलमंत्र था।
सागरतटीय मेलबोर्न का स्टेडियम पर्यटकों का खास आकर्षण है। इसे जनभूमि (पर मार्क्सवादी शब्दावलि नहीं) कहते हैं। यहां फुटबाल भी खेला जाता है। मगर क्रिकेट ज्यादा, ठीक भारत की भांति। समूचा मैदान जीवन्त प्रतीत होता है। आत्मा सांस लेती हुई। सचिन तेन्दुलकर यहां आराध्य है। हमारे यहां के तैंतीस करोड़ में एक जैसे। लोकप्रिय इतने कि राजधानी मेलबोर्न की विक्टोरिया संसद में आसानी से निर्वाचित हो जायें। भारतीय संसद (राज्यसभा) में तो नामित हुये थे। उनका तब कुछ विरोध भी हुआ था। उनकी मोमवाली बुत सिडनी बन्दरगाह में मदाम तुसाद के संग्रहालय में लगी है, बल्ला उठाये, शतक बनाकर। बाजू में दो गज पर बापू की प्रतिमा लगी है, लुकाटी लिये। मोम के रोगन से निर्मित। दूसरी ओर कोहिनूर जड़ा ताज पहने बर्तानवी मल्लिका एलिजाबेथ द्वितीय खड़ी हैं। इन्हीं के पुरखों से बापू ने बिना खड्ग और ढाल के भारत खाली कराया था।
लौटें स्टेडियम पर। हमारे गाइड मिस्टर रोड ने बताया कि: “यहीं आस्ट्रेलियाई कप्तान विकेट-कीपर एडम गिलक्राइस्ट (ईसाई उपनाम था क्योंकि ईसा का वह निष्ठावान भक्त था) ने 2011 में 122 मीटर, अबतक का सबसे दूरी वाला, छक्का मारा था। जहाँ पर वह गेंद गिरी थी उस सीट को पीले रंग का रखा गया है। निशान के तौर पर। “टेस्ट मैंचों में प्रथम बार कुल सौ छक्के मारने वाले, राष्ट्र के दिल की धड़कन कहे जानेवाले ग्रिलक्राइस्ट का रिकार्ड कोई तोड़ नहीं पाया अब तक,” गाइड की गर्वोक्ति थी। इस पर मेरे पत्रकार-पुत्र विश्वदेव ने चुटकी ली, “इन्तज़ार कीजिये। विराट कोहली आने वाला है यहां। (अफसोस कल दिसम्बर 2020 के मैच में विराट गर्भवती पत्नी की सेवा के कारण खेल नहीं पाये।) “नब्बे हजार दशर्कों की क्षमता वाला मेलबोर्न स्टेडियम डेढ़ सौ साल पूर्व कुल 150 पाउन्ड (आज की दर पर पन्द्रह हजार रुपये) में निर्मित हुआ था। पहला मैच 30 सितम्बर 1854 में खेला गया था।
एक श्रमजीवी पत्रकार होने के नाते मुझे स्टेडियम का पुस्तकालय और प्रेस दीर्घा बड़ी मुफीद लगी। शोध प्रशासन अधिकारी श्रीमती पेटा फिलिप्स ने बताया कि दुनिया के खेल संदर्भालयों में मेलबोर्न स्टेडियम की 1873 में स्थापित यह लाइब्रेरी शीर्ष पर है। वे हर्षित हुईं जब उन्होंने मेरी सहधर्मिणी डा. सुधा राव से जाना कि उनके पिता प्रोफेसर सी.जी. विश्वनाथन बनारस, पन्तनगर तथा लखनऊ विश्वविद्यालयों में पुस्तकालय विभागों के अध्यक्ष रह चुके हैं।
स्टेडियम की मीडिया गैलरी विशाल है। इसे “रान कैसे” नामक दीर्घा कहते हैं। जनाब रोनाल्ड पेट्रिक कैसे आईरिश थे और सेल्टिक भाषा बोलते थे। सेल्टिक जुबान भारत-यूरोपीय बोलियों से उपजी है। वे फुटबाल खेलते थे और विश्वस्तरीय खेल समीक्षक रहे। इसी सप्ताह (27 दिसम्बर) को उनकी नवासी जयन्ति है।
एक अजूबा भी श्रीमती फिलिप्स ने बताया। वेस्टइण्डीज के बल्लेबाज जोय सालोमन मेलबोर्न पिच पर (1961) में बैटिंग कर रहे थे। उनका हैट उनके विकेट पर गिर पड़ा। अम्पायर ने आउट दे दिया। पर दर्शकों के जोरदार विरोध के कारण अम्पायर को अपना निर्णय बदलना पड़ा। वह अश्वेत खिलाड़ी “नाट-आउट” करार दिया गया। तब गेन्दबाज तथा कप्तान थे रिची बेनो, जिनकी टीम को कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में 1959, भारतीय गेन्दबाज जसू पटेल की बालिंग ने पराजित किया था। उसी महीने की घटना है। सपरिवार जसू पटेल लखनऊ के चौक में चिकन कुर्ते-साड़ी खरीदने आये। जब बिल का भुगतान करने लगे, तो वहां के युवकों ने उन्हें पहचान लिया। “अरे यह तो जसू पटेल हैं जिन्होंने आस्ट्रेलिया को कानपुर में हराया था” वे सब बोल पड़े। दुकानदार ने दाम लेने से मना कर दिया। कहा “कृतज्ञ लखनऊ का यह तोहफा है।” पटेल ने आस्ट्रेलिया के चौदह विकेट कानपुर (द्वितीय) टेस्ट मैच (19-24 दिसंबर 1959) में चटकाये थे। यह भारत की आस्ट्रेलिया पर प्रथम विजय थी।
हालांकि स्वतंत्रता प्राप्ति के दो चार महीनों में ही भारत की टीम लाला अमरनाथ की कप्तानी में इसी मेलबोर्न स्टेडियम में अपना पहला विश्वस्तरीय टेस्ट खेलने नवम्बर 1948, उतरी थी। चार मैच हारी थी। बचा एक मैच ड्रा हो गया था। हालांकि बडौदा के विजय हजारे ने दोनों पारी में शतक जड़े थे। इसी सीरीज में महाबली डान ब्रैडमैंन ने यहीं आखिरी टैस्ट मैच खेला था। अपने संस्मरणों में उन्होंने भारतीय कप्तान की चतुराई की चर्चा की थी। मेलबोर्न के समीपस्थ मिलडूला स्टेडियम में भारतीय गेन्दबाजों को धुनते हुये ब्रैडमैंन 99 रन बना चुके थे। तभी वे फेरे में पड़ गये। बाउण्ड्री पर फील्डिंग कर रहे अनजाने, कनिष्ट खिलाड़ी गोगूमल किशनचन्द को कप्तान अमरनाथ ने गेन्द दिया। ब्रेडमन लिखते है की वे “नर्वस” हो गये। किशनचन्द अनजाना था। मेडन ओवर (बिना रन लिये) ब्रेडमन ने दे दिया। फिर अगले ओवर में शतक पूरा किया।

÷लेखक IFWJ के नेशनल प्रेसिडेंट व स्वतन्त्र पत्रकार/स्तम्भकार हैं÷