★श्यामजी मिश्र★
★मुम्बई★
[बिन भाषायी अस्मिता के राष्ट्र नही होता मजबूत,९ अगस्त से प्रारंभ होगा अंग्रेजियत भगाओ अभियान]
{२५ दिसंबर को मनाया जायेगा भारतीय भाषा स्वाभिमान और स्वातंत्र्य दिवस}
[पत्रकार सिद्धार्थ आर्य के सारस्वत अभिनन्दन समारोह में जुटी सहित्यिक-सामाजिक-राजनीतिक जगत से सम्बद्ध प्रख्यात हस्तियां]
(सांताक्रुज के मौलाना अबुल कलाम आज़ाद सभागार में सम्पन्न हुआ साहित्यिक कार्यक्रम)
♂÷प्रख्यात लेखिका श्रीमती पुष्पा भारती ने भारतीय भाषाओँ की समृद्धि के लिए एक मज़बूत भारतीय भाषा स्वाभिमान और स्वातंत्र्य आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया है। जिसका लक्ष्य भारतीय भाषाओँ को जड़ से सींचना, उन्हें विस्तार देना, उनके आपसी जुड़ाव को मज़बूत करना और सम्पूर्ण लोक मानस को वाणी की वास्तविक आज़ादी देना है।
उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया है कि हम लोगों पर अभी भी अंग्रेजियत का भूत सवार हैं, जिसके चलते हम न तो अपनी राष्ट्रीय अस्मिता को मज़बूत कर पा रहे हैं, और न ही अपने किये-कराये का समुचित मूल्यांकन कर पा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि एक सुनिश्चित भाषायी अस्मिता के बिना हमारी विकास और बढ़ाव की सारी कोशिशें अधूरी रहेंगी। साथ ही, हमें संस्कृत को भी मज़बूत करना होगा। संस्कृत ही भारतीय वांग्मय का भी, और भारतीय भाषाओँ को जोड़ने का, उनकी सम्पृक्ति का आधार है।
श्रीमती भारती मौलाना अबुल कलाम आज़ाद सभागार , सांताक्रुज, मुंबई में पत्रकार सिद्धार्थ आर्य के सारस्वत अभिनन्दन समारोह में बोल रही थीं। इस समारोह में आर्य के अभिनन्दन के जरिये मुंबई का हिंदी समाज तमिल, तेलुगु, कन्नड़, गुजराती, मराठी और बांग्ला के उन विद्वानों और मनीषियों का भी स्मरण और नमन कर रहा था जिन्होंने हिंदी की सेवा और समृद्धि में अविस्मरणीय योगदान दिया है।
इस अवसर पर आर्य परिवार से जुड़े रहे तमिल महाकवि श्री सुब्रह्मण्य भारती, और सिद्धार्थ आर्य के ताऊ और उनके पिता,बनारस के आज अखबार के पूर्व सम्पादक भास्कर, विदर्भ हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री रहे भीष्म आर्य को आदरांजलि अर्पित की गई।
विधा भास्कर की सुपुत्री श्रीमती इंदु गोपाल भी कार्यक्रम में सम्मिलित हुई।
श्रीमती पुष्पा भारती ने कहा कि यह बड़े दुःख और चिंता की बात है कि सारी भारतीय भाषाएँ जड़ से उखड़ती जा रही हैं, लेकिन हम अनजान और बेपरवाह बने हुए हैं,अंग्रेजी की पढ़ाई गाँव-गाँव के प्राथमिक स्कूलों तक फ़ैल गयी है इससे भारतीय भाषाओँ, भाषायी शिक्षा, और साहित्य और संस्कृति को बहुत नुकसान हो रहा है। श्रीमती भारती ने चेताया कि हमारे मूल्यबोध भी बदल रहे हैं, इसका दूरगामी परिणाम बहुत घातक होगा।
उन्होंने कहा कि जो समाज अपनी भाषा, बोली को अवमानना से देखे या देखने को मज़बूर हो, वह समाज समर्थ और शक्तिशाली बनने की कल्पना भी नहीं कर सकता।
हमें अपने समाज और साहित्य को जोड़ना होगा, भारतीय भाषाओँ को बहुत जमीनी स्तर से सींचना होगा, और अपनी भाषा और बोली को स्वाभिमान और समृद्धि का संकल्प देना होगा। उससे मनुष्य की निर्मिति होती है।हमें इस निर्मिति को काँप माटी में बसाना होगा।
उनके इस उद्बोधन के साक्षी बने मुंबई के हिंदी समाज के पुरोधा व्यक्तित्व मिठाईलाल सिंह, पत्रकार मनमोहन सरल, सुदीप, विश्वनाथ सचदेव, फ़ीरोज़ अशरफ, प्रकाश बाल जोशी, विमल मिश्र , महाराष्ट्र के पूर्व गृह राज्य मंत्री कृपाशंकर सिंह, हिंदी भाषी नेता जय प्रकाश सिंह,शिवाजी सिंह, समाजसेवी दिलीप सिंह , एसएनडीटी विश्वविद्यालय की पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. माधुरी छेड़ा, मुंबई विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. रतन कुमार पांडे। कार्यक्रम में साहित्य , पत्रकारिता और समाज के लोगों ने बड़ी संख्या में सहभागिता की।
इस अवसर पर कवयित्री संध्या यादव की कविताओं की संगतिक समीक्षा भी की गयी , और अमृता सिन्हा और अभिषेक चौहान द्वारा काव्य पाठ भी किया गया। इस मौके पर भाषायी शिक्षा को कमजोर करनेवाले मनपा शिक्षण सेवक घोटाले की भी जांच किये जाने की मांग की गयी।
कार्यक्रम पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित किया गया। मंच संचालन पत्रकार ओम प्रकाश ने किया।