★श्यामजी मिश्रा★
★वलसाड़★
{उधोगपति व समाजसेवी आरआर मिश्रा व आशुतोष मिश्रा ने कावड़ियों पर पुष्पवर्षा कर किया स्वागत}
[प्रतिवर्ष वलसाड़ के गुदलाव के चंद्रमौलेश्वर महादेव मंदिर कावड़ यात्रा निकाल ताड़केश्वर महादेवमन्दिर मन्दिर में किया जाता है जलाभिषेक]

♂÷वलसाड शहर में श्रावण के पहले सोमवार को कांवड़ यात्रा निकाली गई। यह कांवड़ यात्रा कोसबा स्थित राम मंदिर से रवाना होकर तड़केश्वर महादेव मंदिर पर संपन्न हुई। शिवभक्त रास्ते भर हर हर महादेव व बम बम भोले का जयघोष कर रहे थे। आजाद चौक, छीपवाड़, बेचर रोड, धरमपुर रोड होते हुए यह कांवड़ यात्रा तड़केश्वर महादेव मंदिर पर पहुंची। इसी तरह गुदलांव स्थित शिव मंदिर से भी कांवड़ यात्रा निकाली गई जो गुदलांव से कैलाश रोड होते हुए तड़केश्वर महादेव मंदिर पर संपन्न हुई। इन कांवड़ियों के ऊपर उत्तर भारतीय समाज के प्रमुख व वरिष्ठ समाजसेवक तथा उद्योगपति आर आर मिश्रा व आशुतोष मिश्रा ने पुष्पवर्षा कर सभी कांवड़ियों का स्वागत किया। कांवड़ियों के लिए शर्बत की भी व्यवस्था की गई थी। आपको बता दें कि सबसे पहले वलसाड में उत्तर भारतीय समाज के प्रमुख आर आर मिश्रा ने कांवड़ यात्रा की शुरूआत की थी, जो प्रति वर्ष सावन महीने में वलसाड के गुदलांव स्थित चंद्रमौलेश्वर महादेव मंदिर से कांवड़ यात्रा निकाली जाती है और ताड़केश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है। आर आर मिश्रा ने बताया कि सनातन परंपरा अनुसार श्रावण मास में की जाने वाली कांवड़ यात्रा का बहुत महत्व है। हर साल लाखों श्रद्धालु सुख-समृद्धि की कामना के लिए इस पावन यात्रा के लिए निकलते हैं। श्रावण के महीने में कांवड़ लेकर जाने और शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा होती है। भगवान शिव को समर्पित इस कांवड़ यात्रा में वलसाड के श्रद्धालु गुदलांव के चंद्रमौलेश्वर महादेव मंदिर से पवित्र जल लेकर गाजे-बाजे के साथ करीब आठ से दस किलोमीटर पैदल चलकर वलसाड के ही प्रसिद्ध ताड़केश्वर शिव मंदिर में अपने ईस्ट देव का जलाभिषेक करते हैं। जलाभिषेक से प्रसन्न होकर भगवान शिव अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
आर आर मिश्रा ने कांवड़ यात्रा जुड़ी जानकारी साझा करते हुए कहा कि पुराणों के अनुसार इस यात्रा की शुरूआत समुद्र मंथन के समय हुई थी। समुद्र मंथन के दौरान निकले हलाहल विष को पीने के बाद भगवान शिव का गला नीला हो गया था। साथ ही उनके शरीर में बुरा असर पड़ रहा था, जिसे देखकर देवता चिंतित हो उठे। विष के प्रभाव को कम करने के लिए चिंतित देवताओं ने पवित्र और शीतलता का पर्याय गंगाजल शिव के शरीर पर चढ़ाया। गंगाजल से शिवजी का जलाभिषेक करने के कुछ ही समय बाद देवताओं की मेहनत रंग लाई और भोलेनाथ का शरीर सामान्य होने लगा। इसी कार्य को आगे बढ़ाते हुए कांवड़िये हरिद्वार से गंगाजल लेकर नीलकंठ महादेव के ऊपर चढ़ाते हैं। यह कांवड़ यात्रा सदियों से चली आ रही है। यहां तक कि भगवान श्रीराम, भगवान श्री परशुराम भी कांवड़ यात्रा की शुरूआत की थी। सावन के महीने में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व है। सावन का महीना महादेव को काफी प्यारा है। इसलिए इस महीने के आरंभ से ही लाखों की संख्या में शिवभक्त कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं।