★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
{400 साल पहले 31 दिसंबर वर्ष 1600 में लंदन में अंग्रेजो ने मसाले व चाय के व्यापार हेतु किया था गठन ईस्ट इंडिया कम्पनी का}
[मुग़ल काल के दौरान बादशाह जहाँगीर से इजाज़त लेने के बाद भारत से काली मिर्च,मसाले व चाय को समुन्द्री रास्तों के जरिये ब्रिटेन योरोप भेजने लगी कम्पनी]
(वर्ष 1857 में भारत मे अंग्रेजी राज के खिलाफ हुई क्रान्ति का ठीकरा कम्पनी पर फोड़ते हुए ब्रिटिश राजशाही व सरकार ने इसका किया राष्ट्रीयकरण)
[मुम्बई के गुजराती परिवार जन्मे संजीव मेहता ने सिडेनहैम कॉलेज से पढ़ने के बाद अब पत्नी बच्चों के साथ रहते हैं लंदन में,मिल चुकी है ब्रिटिश नागरिकता]
♂÷31 दिसम्बर वर्ष 1600 यानी आज से ठीक 420 साल पहले, जिस ईस्ट इंडिया कम्पनी के नाम पर भारत में मुख्यतः काली मिर्च, मसालों का व्यापार करने आये अंग्रेजो ने भारत को अपना गुलाम बना लगभग 200 वर्षों से ज्यादे वक़्त तक भारत मुक़द्दर लिखतें रहे आज उस कम्पनी का मालिक एक भारतीय है।
जिन अंग्रेजो के राज में कभी सूरज नही डूबता था आज उन्ही अंग्रेजों के मूल देश ब्रिटेन में बैठकर कभी हिंदुस्तान को ग़ुलाम बनाने में सर्वाधिक प्रमुख भूमिका निभाने वाली 420 साल पुरानी कम्पनी का मालिक आज भारतीय मूल का है,जिसका नाम संजीव मेहता है।
31 दिसंबर वो तारीख है, जब 420 साल पहले लंदन में ये ऐतिहासिक कंपनी बनी थी,वज़ह थी कि पुर्तगाल द्वारा भारत से मसालों ख़ासकर काली मिर्च को ब्रिटेन में बहुत ही ऊँचे दरों पर बेचकर भारी मुनाफ़ा कमाना बताना भी बड़ी वज़ह मानी गयी थी,जिसने करीब दो सौ सालों तक भारत में कहर ढाया। करीब डेढ़ सौ साल पहले यह कंपनी खत्म हो गई थी और फैक्ट यह है कि नये सिरे से बनी इस कंपनी की कमान अब एक भारतीय के पास है। यह अपने आप में रोचक ही नहीं, एक ऐतिहासिक बात है कि जिस कंपनी ने भारत पर व्यापार की आड़ में देश पर शासन और अत्याचार किए, अब उसके मालिक का नाम भारतीय मूल के ब्रिटेन के उद्योगपति संजीव मेहता है।

मुग़ल बादशाह जहाँगीर के दौर में उनकी इजाज़त से व्यापार शुरू करने वाली ईस्ट इंडिया कम्पनी हालांकि अब यह साम्राज्यवादी उपनिवेश का प्रतीक नहीं है और सिर्फ कारोबार से वास्ता रखती है लेकिन दिलचस्प यह है कि सदियों पहले की तरह अब भी इस कंपनी का एक प्रमुख कारोबार चाय और मसालों से ही जुड़ा है।
1857 में जब भारत की पहली स्वतंत्रता क्रांति हुई तो इसे ब्रिटेन ने गदर या विद्रोह के तौर पर समझा गया,जो भी हो, लेकिन इसका असर काफी बड़ा हुआ और इससे परतन्त्र भारत से लेकर सात समंदर पार ब्रिटिश राजशाही तक हिल उठी थी। ब्रिटिश प्रशासन और हुकूमत ने यह विद्रोह होने की नौबत आने का ठीकरा ईस्ट इंडिया कंपनी के सिर फोड़ा।इस स्वतंत्रता संग्राम के बाद 1858 में भारत सरकार एक्ट बनाकर ब्रिटिश सरकार ने कंपनी का राष्ट्रीय करण कर दिया।
इसका मतलब यह हुआ कि भारत का राज कंपनी के हाथ से निकलकर सीधे ब्रिटेश के राजवंश के पास गया।कंपनी को खत्म किए जाने की कवायद शुरू हो चुकी थी और 1873 में ईस्ट इंडिया स्टॉक डिविडेंड रिडेम्प्शन एक्ट बना, जिसे 1 जनवरी 1874 से प्रभावी किया गया, 1 जून 1874 को कंपनी औपचारिक तौर पर खत्म हो गई, जब उसके तमाम पेमेंट कर दिए गए।
19वीं सदी में कंपनी खत्म किए जाने के बाद यह लंबे अरसे तक निष्क्रिय पड़ी रही और सिर्फ इतिहास और किताबों की चीज़ बनकर रह गई।इसे नए सिरे से शुरू करने की कवायद 2003 में शुरू हुई, जब चाय और कॉफी के कारोबार के लिए इसके शेयरहोल्डरों ने इसे दोबारा चालू करने के बारे में कोशिश की।
भारतीय मूल के उद्यमी संजीव मेहता ने इस पूरी कवायद में काफी मेहनत मशक्कत से 2005 में कंपनी का नाम अपने नाम किया,फिर मेहता ने इसे चाय, कॉफी और अन्य खाद्यों के क्षेत्र में फोकस करते हुए पूरी तरह कंपनी को रूपांतरित कर दिया। संजीव मेहताा ने इस बारे में कई बार मीडिया से बातचीत करते हुए दोहराया है।
इतिहास गवाह है कि ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी एक आक्रामकता के नज़रिये से बनी थी, लेकिन वर्तमान कंपनी हमदर्दी को केंद्र में रखती है, जिस कंपनी ने भारत को गुलाम रखा, उसका मालिकाना हक पाना… यह वास्तव में ऐसा एहसास है जैसे खोया हुआ साम्राज्य हासिल कर लिया जाए।
इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने कई क्षेत्रों में विस्तार किया और इसी साल सितंबर में यह कंपनी इसलिए चर्चा में थी क्योंकि इसने एक तरह से सिक्कों की टकसाल का परमिट हासिल कर लिया था, जिसमें 1918 में ब्रिटिश इंडिया में आखिरी बार बनाई गई सोने की मुहर के लिए परमिट भी शामिल था।अब यह कंपनी यात्रा, सिगार, जिन, लाइफस्टाइल, नैचुरल रिसोर्स और फूड जैसे कई सेक्टरों में दखल रखती है।
वर्तमान ईस्ट इंडिया कंपनी कई सेक्टरों में सक्रिय है।
लंदन में अपनी माइक्रोबायोलॉजिस्ट पत्नी एमी और बेटे अर्जुन व बेटी अनुष्का के साथ रहने वाले मेहता मुंबई में रहने वाले एक गुजराती परिवार में पैदा हुए थे।मेहता के दादा गफूरचंद मेहता 1920 के दशक से ही यूरोप में हीरे का कारोबार शुरू कर चुके थे, जिसे उनके पिता महेंद्र ने और फैलाया,गफूरचंद 1938 में भारत लौट आए थे।
संजीव मेहता की शिक्षा पहले मुंबई के सिडेनहैम कॉलेज में हुई और फिर उन्होंने लॉस एंजिल्स में रत्नों की शिक्षा हासिल की। 1983 में अपने पिता के हीरे के कारोबार से जुड़ने के बाद उन्होंने खाड़ी देशों, हांगकांग और अमेरिका में कारोबार फैलाया। 1989 में भारत से लंदन जाकर बस गए मेहता ने भारत को घरेलू उत्पाद एक्सपोर्ट करने का बिज़नेस भी बनाए रखा।
फार्मा सेक्टर के कारोबारी ससुर जशुभाई शाह की मदद से मेहता ने रूस में भी अपना व्यापार स्थापित किया।हिंदुस्तान लिवर के उत्पादों को कई देशों में एक्सपोर्ट करने वाले मेहता ने कई क्षेत्रों में एंपायर खड़ा किया।यही नहीं, भारत के महिंद्रा और यूएई के लूलू ग्रुप के साथ ही कई औद्योगिक समूहों के निवेश भी उन्होंने हासिल किए।