लेखक~डॉ.के. विक्रम राव
.♂÷पत्रकार से न्यायाधीश बने एनवी रमण ने अंतत: तोतारुपी सीबीआई के पिंजड़े में चिटकनी सरका ही दी। अब नवनामित निदेशक झारखण्ड के सुबोध जायसवाल पर निर्भर करता है कि उड़ान कितनी ऊंची भरते हैं। अभी तक तो सभी निदेशक मियां मिट्ठू ही थे, जो सुना उसे ही रटा। महाराष्ट्र काडर के इस आईपीएस अधिकारी को उद्धव ठाकरे सरकार की पुलिस ट्रांसफर नीति का आलोचक मानते है। सीबीआई निदेशक हेतु त्रिसदस्यीय चयन समिति में रहे लोकसभा में कांग्रेस विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी समस्त प्रक्रिया को टाल जाने के तरफदार थे, निर्णय नहीं। अपने निवास पर ही बैठक की मेजबानी नरेन्द्र मोदी कर रहे थे। वे कम ही बोले। बस प्रधान न्यायाधीश की हां में हां मिला दिया। जस्टिस रमण ने निर्देशित किया कि छह माह में रिटायर हो रहे अन्य प्रत्याशियों का दावा खारिज होगा। अर्थात आवेदक का वर्तमान कार्यकाल छह माह से अधिक हो। यह निर्देश मार्च 2019 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश (अब सांसद) रंजन गोगोई ने दिया था। वर्षों बाद इसका अनुपालन हुआ। मगर उलझन बनी रहेगी कि नये निदेशक सत्ता का सुग्गा बनने से इंकार कर पायेंगे ? या फिर सरकार के कुक्कुट बन बैठेंगे ? क्योंकि ब्रिटेन के प्रबंधन विज्ञान के निष्णात डेविड मेइस्टर ने लिखा है कि : ”आपके उसूल कितने कारगर होते है, यह निर्भर करता है कि उनकी अवहेलना के अंजाम कितने गंभीर हो सकते हैं?” ये युक्ति सीबीआई निदेशक की कार्यक्षमता पर पूरे तौर से लागू होती है। वह अपनी असली शक्ति चीन्हेगा ? सीबीआई के अपने तीनों सूत्रों पर मुस्तैदी से अमल करेगा ? ये सूत्र हैं : ”मेहनत, निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा।” सीबीआई की साख पर ठप्पा लगा है कि वह सियासी दबाव में टरकाऊ हो जाता है। एक रिटायर्ड संयुक्त निदेशक शांतनु सेन की किताब ”सीबीआई इंसाइडर स्पीक्स : बिड़लास टू शीला दीक्षित” में स्पष्ट बातें लिखीं गयीं हैं। उच्चतम न्यायालय द्वारा नामित जांच भी काफी उजागर करती रही है। निदेशक रंजीत सिन्हा की टू—जी तथा कोयला घोटाला में संलिप्तता रही। सोनिया—कांग्रेस के प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह को इन घोटालों का शिल्पी माना जाता रहा है। जबतक भारत पर कांग्रेस का एक छत्र राज था तब तक सीबीआई केन्द्र सरकार की उंगलियों पर निर्बाध थिरकती रही।
अब नजारा बदला है। गत कुछ वर्षों से सभी गैरभाजपाई—शासित राज्यों ने सीबीआई का कार्यक्षेत्र अपने प्रदेशों से खत्म कर दिया है। इनमें पंजाब, आंध्र प्रदेश, बंगाल, छत्तीसगढ़, केरल, राजस्थान, महाराष्ट्र, मिजोरम आदि हैं। असली कारण है कि भ्रष्टाचार इन राज्यों में खुलकर उभरा हैं। सत्तासीन नेता स्वेच्छा से शरीक हैं। मसलन स्वर्ण तस्करी में केरल के कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन, बंगाल के शारदा चिटफण्ड और नारद घोटाला में ममता बनर्जी की सरकार तथा पार्टी ही अभियुक्त है।
इसीलिये सीबीआई के बदलते परिवेश में उसके रोल को जानने हेतु भ्रष्टाचार की इन्द्रधनुषी आकृतियां तथा राजनेताओं की भागीदारी का विश्लेषण करना होगा। सीबीआई के इतिहास पर विहंगम दृष्टि डाले। एक अप्रैल 1963 (विश्व—मूर्ख दिवस) पर स्व. प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा सीबीआई—गठित हुयी थी तो यह सरकारी भ्रष्टाचार के विरोध में जंग की एक अपरिहार्यता तथा तात्कालिकता जैसी रही। भारत के स्वतंत्र होते ही जवाहरलाल नेहरु के चहेते और मुंहलगे वीके कृष्ण मेनन ने ब्रिटेन में भारतीय सेना हेतु दो सौ जीपें खरीदीं। अस्सी लाख का ठेका था। (उस युग में एक रुपये में पचास सेर गेंहू मिलता था)। जीपें कम आई, दाम भी अधिक थे। भारतीय समाचारपत्रों ने रिश्वतखोरी का शोर मचाया। तब गृहमंत्री और इष्टमित्र गोवन्द बल्लभ पंत की मार्फत जांच दबा गयी। उस दौर में राजनेताओं के विरुद्ध वित्तीय घोटालों की हर जांच का ऐसा ही हस्र हुआ।
याद कीजिये किस प्रकार पीवी नरसिम्हाराव ने झारखण्ड मुक्तिमोर्चा के शिबू सोरेन (झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमेन के परम पूज्य पिताश्री) को रकम देकर अविश्वास प्रस्ताव को बहुमत से गिरवाया था। यदि दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायामूर्तिद्वय वाइके सबरवाल और डीके जैन न जुटते तो बस सब रफा—दफा हो जाता। सीबीआई के निदेशक थे के. विजयरामा राव। अपने तेलुगुभाषी, हमवतनी प्रधानमंत्री को बचाने में यह दूसरे राव ओवरटाइम करते रहे। बोफोर्स काण्ड के हीरो इतालवी बिचौलिये ओक्तेवियो क्वात्रोची को सलामती से भारतभूमि से बाहर जाने में राजीव गांधी ने महान मदद की थी। यह सर्वविदित है।
अब गौर करें गायपट्टी पर। बिहार के लालू प्रसाद का चारा घोटाला तो सभी जानते है। इसे सीबीआई पहले दबाती रही। एचडी देवेगौड़ा की करतूत थी। मगर घोटाला उलझा वर्षों बाद। लालू यादव हाल ही में रांची जेल से छूटे हैं। भला हो सीबीआई के उपनिदेशक उपेन्द्र विश्वास का कि चारा घोटाले की जड़ तक गये। हमारे उत्तर प्रदेश में क्या हुआ? ज्ञात आय के स्रोतों से अधिक सम्पत्ति में मुलायम सिंह यादव पर जांच हुयी। मगर सोनिया—कांग्रेस ने संसद में भारत—अमेरिका नाभिकीय संधि पर समाजवादी पार्टी के वोट पाने हेतु जांच ही दबवा दी।
सबसे ताजातरीन रहा शरद पवार के चेले नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल पटेल का। इन्होंने कमाऊ हवाई रुट पर निजी कंपनी को उड़ाने की अनुमति दी। एयर इण्डिया को घाटेवाली रुट पर जहाज उड़ाने का आदेश दिया। नतीजन एयर इंडिया की बधिया ही बैठ गयी। सीबीआई की जांच टलती जा रही है। ममता बनर्जी के मंत्रियों द्वारा चिट फंड आदि घोटालों के कारण अभी इस पार्टी के चार मंत्री घर ही में नजरबंद है। हालांकि बंगाल से सीबीआई दरबदर हो गयी।
इसी लम्बे मगर दुखद इतिहास की पृष्टभूमि में प्रधान न्यायाधीश रमण की प्रेरक पहल आह्लादकारी है। फलस्वरुप सीबीआई की साख सजेगी। क्या सीबीआई लकीर ही पीटते रहेगी अथवा एक हिम्मती बाज बनकर भ्रष्टों को लूट से बाज आने हेतु डरायेगी ? वर्ना न्यायिक कोर्ट राम भरोसे ही चला करते हैं, चलते ही रहेंगे।

÷लेखक IFWJ के नेशनल प्रेसिडेंट व वरिष्ठ पत्रकार/स्तम्भकार हैं÷