लेखक~डॉ.के. विक्रम राव
♂÷भूलोक का प्रथम कम्युनिस्ट देश (सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ) का खात्मा करनेवाली तथा उसके महाबली राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव को बर्खास्त करनेवाली त्रिमूर्ति के द्वितीय जननायक स्तानिस्लाव शुष्केविच का 87—वर्ष की आयु में आज निधन हो गया। वे युद्धग्रस्त बेलारुस के प्रथम राष्ट्रपति थे किन्तु बाद में व्लादीमीर पुतिन के तीव्र आलोचक रहे। दूसरे नायक थे रुस गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति बोरिस येल्तिन जो 1994 में ही चले गये थे। तीसरे और अंतिम पुरोधा लिओनिड क्रावचुक (यूक्रेन, सोवियत गणराज्य, के राष्ट्रपति रहे) अब 88 साल के हैं। व्लादीमीर पुतिन को युद्ध अपराधी मानते हैं और यूक्रेन की त्रासदी से व्यथित हैं।
तीस साल पहले गोर्बाचोव को पदमुक्त करने का किस्सा अत्यंत रुचिकर है। बेलारुस की पोलैण्ड से सटी सीमावर्ती विलोवेजकाया पुश्चा राष्ट्रीय उद्यान में रविवार, 8 दिसम्बर 1991, की रंगीन और सर्द संध्या पर यूनेस्को की विश्व धरोहरवाली इस हरी स्थली में सोवियत संघ के तब के पन्द्रह में से तीन प्रदेशों (रुस, यूक्रेन तथा बेलारुस) के पदासीन राष्ट्रपतित्रय साथ थे। गंभीर चिंतन तथा मंथन में। उन लोगों ने सात दशक पुराने सोवियत संघ को छिन्न करने का निर्णय तथा हर राज्य को स्वायत्त गणराज्य बनाने पर फैसला लिया। मास्को में गोर्बाचोव को सूचित किया गया कि रुस, यूक्रेन तथा बेलारुस ने संघ से संबद्धता समाप्त कर दी है। सभी स्वतंत्र राष्ट्र हो गयें हैं। राष्ट्रपति गोर्बाचोव को पदच्युत कर डाला गया है। ऐतिहासिक कदम था। अर्थात लेनिन तथा जोसेफ स्टालिन की इस सृष्टि को मटियामेट कर दिया गया। हालांकि तब की एक सदी पुरानी और आज की स्थिति में गहरा फर्क दिखता है। तब यूक्रेन तथा बेलारुस साथ थे। आज रुस का हमजोली बन गया है बेलारुस। पुतिन का रुस वही पुराना रुख पुन: अख्तियार करने की कोशिश में कि कृत्रिम सोवियत संघ फिर से बने।
उस दिन (आठ दिसम्बर 1991) मनोरह, प्राकृतिक छटा निहारते उसे पुश्चा वन संकुल में वोडका पिये, हर्ष गोलीबारी करते इन तीनों राष्ट्रपतियों ने नये संसार (नया पूर्वी यूरोप) का आगाज किया था। विश्वभर की कम्युनिस्ट पार्टियों के अंत का प्रारंभ कर दिया। विवश गोर्बाचोव ने भी सोवियत लाल सेना के बूते सत्ता संभाले कम्युनिस्ट सरकारों को ताश के पत्तों की भांति गिराना चालू कर गया। समर्थन ले लिया, सहारा छीन लिया। सर्वप्रथम पूर्वी जर्मनी की (बर्लिन शासित) सरकार थी। राष्ट्रपति थे ऐरिक होनेकर। फिर जर्मनी के दोनों भूभाग (पूर्व तथा पश्चिम ) का विलय हो गया। तबसे स्वतंत्र होने का सिलसिला चला। क्रेमलिन (मास्को) का आधिपत्य क्रमश: समाप्त हो गया। उनमें हंगरी, चेकस्लोवाचिया, बलगोरिया, रोमानिया, अलबानिया, पोलैण्ड इत्यादि। सभी देशों ने पहली बार गणतंत्र द्वारा स्वतंत्र चुनाव कराये। लोकशाही आधारित सरकारें बनी।
बेलारुस के दिवंगत राष्ट्राध्यक्ष स्तानिस्लाव शुष्केविच अपने प्रारंभिक जीवन में युवा कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़े रहे। मजदूर और किसानों के विकास के लिये कार्यरत रहें। पेशे से वैज्ञानिक थे। गणितज्ञ भी। कई पाठ्यपुस्कों के रचयिता थे। अकादमिक अध्येता से सक्रिय राजनीति में आये थे। जोसेफ स्टालिन का अमानुषिक, क्रूर राज देख चुके थे। उनके स्वराष्ट्र बेलारुस को मास्को ने उपनिवेश बना रखा था। कच्चा माल मुहैय्या कराये, उसका उत्पाद खरीदे। मुनाफा करोड़ों का केवल रुस गणराज्य को ही होता था।
एक बार जब स्तानिस्लाव ने गोर्बाचोव को हटाया तो उनका लक्ष्य स्पष्ट था कि बेलारुस अपने खनिज पदार्थ का उपयोग स्वराष्ट्रहित में करेगा। आलू उपजाने तथा ट्रैक्टर बनानेवाला बेलारुस एक निर्धन राष्ट्र है। आज तानाशाह एलेक्जेंडर लुकाशुंकोव इस विपन्नता को बढ़ाने का सीधा दोषी है। इस व्यक्ति का सालों से सक्रिय विरोध दिवंगत स्तानिस्लाव आजन्म करते रहे। पहले राष्ट्रीय मतदान में स्तानिस्लाव ने लुशांको को पराजित किया था। किन्तु बाद में अनैतिक चुनावी हथकण्डों से स्तानिस्लाव को हार भुगतना पड़ा। हालांकि अंतिम सांस तक वे लोकतांत्रिक मूल्यों की प्रस्थापना हेतु संघर्षरत रहें। उनकी पत्नी इरिना पति के दुखों की दशकों तक भागीदार रही। लोकशाही के मूल्यों की रक्षा में यह युगल साथ ही यातना भुगतता रहा। अपनी मातृभूमि को मास्को से आजाद करानेवाला यह नायक अन्तत: अपनी ही शासन व्यवस्था द्वारा उपेक्षित रहा।
कैसी ऐतिहासिक विडंबना है कि यूक्रेन को रुस से मुक्त करानेवाला बेलारुस आज उसी यूक्रेन पर हमला कराने का पुतिन का माध्यम बना है, सहअपराधी है। दोनों राष्ट्रों की सीमा सटी हुयी है। भारत का बेलारुस से वर्षों से रिश्ता रहा। चारों ओर जमीन से घिरे इस देश को भारत मछली, दवाइयां और तंबाखू निर्यात करता है। नरेन्द्र मोदी शासन का प्रयास है कि बेलारुस को निर्गुट राष्ट्रमंडल का सदस्य नामित किया जाये। अंतर्राष्ट्रीय संसदीय सम्मेलन का भी सदस्य बनाये। रुस पर अवलंबित न बना रहे। राष्ट्रपति स्व. प्रणव मुखर्जी ने बेलारुस की यात्रा 2015 में की थी। उसके पहले के प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह ने बेलारुस के राष्ट्रपति का नयी दिल्ली में स्वागत किया था। मगर अधुना पुतिन के हमले का क्रियाशील माध्यम बन जाने से बेलारुस से भारत मधुर संबंध नहीं संजो पाया। हालांकि ब्रह्मकुमारी तथा इस्कान हिन्दू धर्म के संगठनों का बेलारुस में केन्द्र है। स्तानिस्लाव के समय ”लाइट आफ कैलाश” शैवमत का संगठन बेलारुस में लोकप्रिय था। किन्तु लुकाशुंकोव ने उसे प्रतिबंधित करा दिया। ईसाई समुदाय के दबाव के कारण।
यूं भी पीड़ित यूक्रेन के प्रति भारतीय संवेदना के कारण बेलारुस को आक्रोश है। मगर मोदी सरकार भारत की न्याय का साथ कैसे छोड़ सकती है ?

÷लेखक IFWJ के नेशनल प्रेसिडेंट व वरिष्ठ पत्रकार/स्तम्भकार हैं÷