★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
{सात साल के एक बच्चे के यौनशोषण का केस पॉक्सो एक्ट में सेंट्रल दिल्ली में हुआ था दर्ज,दोनों पक्षों के द्वारा समझौते के बाद भी हाईकोर्ट ने सुनाया अहम फ़ैसला}
[कोर्ट ने कहा पॉक्सो एक्ट लाया ही इसीलिये गया था कि मौजूदा कानून में बच्चों के साथ अपराध की सही व्याख्या नही थी,इसलिए माँ-बाप या कोई सगा सम्बन्धी समझौता कर इसको ख़त्म नही कर सकता]
(देश में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के लिए साल 2012 में पॉक्सो अधिनियम लाया गया और इसे 14 नवम्बर 2012 में ही लागू कर दिया गया है)
♂÷दिल्ली हाई कोर्ट ने पॉक्सो (POCSO) के तहत एक दर्ज मामले में दोनों पक्ष के समझौते के बाद भी एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया है।
सेंट्रल दिल्ली में सात साल के एक बच्चें के साथ यौनशोषण का मामला दर्ज हुआ था उस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने पॉक्सो के तहत दर्ज एक मामले में दोनों पक्ष के समझौते के बाद भी एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया है।
न्यायालय ने अपने एक फैसले में समझौते के आधार पर पॉक्सो के तहत दर्ज एफआईआर रद्द करने से इनकार करते हुए कहा, ‘पॉक्सो एक्ट लाया ही इसलिए गया था कि क्योंकि मौजूदा कानून में बच्चों के साथ अपराध की सही से व्याख्या नहीं थी। इसलिए मां-बाप या कोई सगा संबंधी समझौता कर इसको खत्म नहीं कर सकता, इससे पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामलों में बच्चों को न्याय नहीं मिलेगा।
बता दें कि देश में पॉक्सो एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act-2012) के तहत कई मामले दर्ज तो हो जाते हैं, लेकिन कई मामलों में दोनों पक्षों के समझौता हो जाने से एफआईआर रद्द भी हो रहे हैं।

साल पहले सेंट्रल दिल्ली में 7 साल के एक बच्चे के साथ यौन शोषण का मामला दर्ज हुआ था। पीड़ित के पिता के साथ विवाद खत्म होने पर आरोपी ने कोर्ट से यह मांग की इस एफआईआर को रद्द कर दिया जाए। इस पर हाई कोर्ट ने आरोपी पक्ष के दलील को ठुकराते हुए कहा कि पीड़ित के पिता को आरोपी पक्ष के साथ समझौते के इजाजत नहीं दी जा सकती, अदालत का काम है बुरी ताकतों के हमले के खिलाफ बच्चों को संरक्षण देना।
दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में समझौते के आधार पर पॉक्सो के तहत दर्ज एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया है।
कोर्ट ने कहा कि बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की मौजूदा कानूनों में सही तरह से व्याख्या नहीं की गई है। पॉक्सो एक्ट लाने का मतलब ही यह है कि बच्चों को सभी तरह के यौन उत्पीड़न से सुरक्षा देना है,ऐसे अपराधों में समझौते की इजाजत देना न्यायहित में नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कहते हैं, दिल्ली हाई कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला है,बच्चों को लेकर एक ऑर्गेनाइज्ड तरीके से क्राइम का खेल चल रहा है। मामला तो दर्ज हो जाते हैं, लेकिन बाद में दवाब या अन्य वजहों से दोनों पक्षों में समझौता हो जाता है। इससे बच्चों को तो न्याय नहीं मिल पाता।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक लगभग हर साल कुल अपराधों में 20 प्रतिशत के आस-पास के केस बच्चों से जुड़े होते हैं। भारत के कुल जनसंख्या का लगभग 38 प्रतिशत हिस्सा बच्चों का है।बच्चों का यौन शोषण एक सामाजिक चिंता का कारण भी है,वयस्कों की तुलना में बच्चों को अपने ऊपर हुए जुल्मों का खुलासा करना मुश्किल होता है,इसी को देखते हुए पॉक्सो अधिनियम लाया गया था।
दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले का दूरगामी असर देखने को मिलेगा।
गौरतलब है देश में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण के लिए साल 2012 में (POCSO) अधिनियम लाया गया और 14 नवंबर 2012 से यह पूरे देश में लागू हुआ था।उस समय कानूनविदों ने कहा था कि यह एक ऐतिहासिक कानून है लेकिन, बीते 8-9 सालों में इस कानून को लेकर कई तरह की शिकायतें आनी शुरू हो गई थीं। दिल्ली हाई कोर्ट के ताजा फैसले के बाद एक बार फिर से इस कानून का गलत इस्तेमाल करने पर रोक लगेगी।