★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★

{राहुल गांधी कैम्प शिवसेना के साथ सरकार बनाने के थी खिलाफ,पवार ने अहमद पटेल,मल्लिकार्जुन खड़गे व दिग्विजयसिंह से बात कर सोनिया गांधी को मनाया}
[पूरी गोटी सेट करने के बाद शरद पवार 18 नवम्बर को मिले सोनिया से,सरकार बनाने की सहमति के बाद तय होने लगे CMP व सरकार की रूपरेखा]
(पवार ने सोनिया से मिलने के बाद प्लान B के तहत की थी पीएम मोदी शाह से मीटिंग कि तीनों दलों में गठबंधन न हो पाने की दशा में एनसीपी बीजेपी के साथ जाने पर करेगी विचार)

♂÷महाराष्ट्र में आखिरकार उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बन ही गयी।
शिवसेना की कट्टर हिंदुत्व वाली राजनीति के चलते काँग्रेस सरकार में शामिल होने या समर्थन देने के लिए शुरुआती दौर में एकदम तैयार नही थी और राहुल गाँधी कैम्प किसी भी हाल में काँग्रेस को शिवसेना के साथ जाने के खिलाफ थी।ऐसे में जहाँ एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने सधी चाल से असम्भव से माने जाने वाले गठबंधन को अस्तित्व में लाते हुए उद्धव ठाकरे सरकार बनवा दिया तो वहीँ एक बार फ़िर काँग्रेस में सोनिया व प्रियंका गाँधी गुट राहुल कैम्प पर भारी पड़ गया।
इसके पहले भी राहुल गांधी अपने चहेते माधवराव सिंधिया को मध्यप्रदेश में व सचिन पायलट को राजस्थान में मुख्यमंत्री नही बनवा पाए थे वहां पर काँग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया व प्रियंका गाँधी के वफ़ादार कमलनाथ व अशोक गहलौत मुख्यमंत्री हैं।
मालूम हो कि एक बार तो इस गठबंधन के औपचारिक ऐलान की देरी ने महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार की संभावनाएं ही खत्म कर दीं थी।शनिवार सुबह जब देवेन्द्र फडणवीस और अजित पवार ने मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली, तो तीनों पार्टियों का एक धड़ा इसके लिए सरकार बनाने के औपचारिक ऐलान में देरी को जिम्मेदार ठहराने लगा, ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर देरी हुई क्यों।
सूत्रों की मानें तो 24 अक्टूबर को नतीजे आने के कुछ घंटों बाद ही शिवसेना ने एनसीपी से सम्पर्क साध लिया था और 12 नवंबर को फडणवीस के इस्तीफे तक एनसीपी और शिवसेना दोनों में सहमति भी बन गई थी, लेकिन मामला दिल्ली में अटका हुआ था।
सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस में राहुल गांधी कैंप शिवसेना के साथ सरकार बनाने के एकदम खिलाफ था। ऐसे में कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी की हां के बाद राहुल गांधी कैंप के नेताओं ने शिवसेना पर नई शर्तें थोपनी शुरू कर दीं जिनमें वीर सावरकर से किनारा करना, हिन्दू राष्ट्रवाद से अलग होना, मराठी राजनीति से अलग करने जैसे विवादित मुद्दे शामिल थे।राहुल गांधी कैंप के नेताओं ने शर्त रखी कि गठबंधन के औपचारिक ऐलान से पहले शिवसेना इन मुद्दों से अपने आपको अलग करने का ऐलान करे,राहुल गांधी कैंप के जो नेता इस तरह की शर्त रख रहे थे उनमें केसी वेणुगोपाल का नाम सबसे आगे आ रहा है।कश्मीर की राजनीतिक मजबूरी के नाते राज्यसभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद भी इस सरकार के गठन के खिलाफ थे। ऐसे में मोर्चा संभाला एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने।
सूत्रों की मानें तो उद्धव ठाकरे और एनसीपी में सहमति बनने के बाद राहुल गांधी के विरोध के बाद भी कांग्रेस को अपने साथ लाने का जिम्मा एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने संभाला।सूत्र बताते हैं कि सोनिया गांधी से बात करने से पहले शरद पवार ने अहमद पटेल, मल्लिकार्जुन खड़गे, दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं से बात की,अहमद पटेल तो पवार के प्रस्ताव पर फौरन तैयार हो गए और दिग्विजय सिंह भी सरकार बनाने पर सहमत थे, लेकिन दिग्वजिय और अहमद पटेल की राजनीतिक अदावत अभी भी मामले में रोड़ा अटका रही थी। ऐसे में पवार ने इन दोनों नेताओं से अलग-अलग बात करने के बाद इन दोनों से एक साथ बात की और उनको सोनिया गांधी को मनाने का जिम्मा दिया, साथ ही तय हुआ कि सरकार कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर चलेगी। मल्लिकार्जुन खड़गे के रुख को देखते हुए पवार ने इस पूरी राजनीति से उन्हें अलग रखना ही उचित समझा।
सूत्रों की मानें तो शरद पवार सोनिया गांधी से मुलाकात से पहले कांग्रेस की अगली चाल को पूरी तरह समझ लेना चाहते थे और जब 18 नवंबर को कांग्रेस सरकार बनाने पर सहमत हो गई, तब एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात की। सूत्र बताते हैं कि इस मुलाकात में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सरकार बनाने पर सहमति तो दे दी थी, लेकिन सरकार की रूपरेखा क्या होगी इस पर सहमति नहीं बन पाई थी।
सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार की मुलाकात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से हुई।एनसीपी से जुड़े सुत्रों का दावा है कि शरद पवार और प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात में महाराष्ट्र में सरकार बनाने पर भी चर्चा हुई और पवार ने पीएम को ये भरोसा दिलाया कि एनसीपी-शिवसेना-कांग्रेस गठबंधन न हो पाने की हालत में एनसीपी बीजेपी के साथ जाने पर विचार कर सकती है, लेकिन महाराष्ट्र बीजेपी के नेताओं की हड़बड़ी ने पूरा खेल बिगाड़ दिया।